संजय शर्मा @ BHOPAL. भ्रष्टाचार ( Corruption ) के आरोपों में घिरे रहने वाला लघु उद्योग निगम की कारगुजारियों फिर सुर्ख़ियों में हैं। हाल ही में निगम ने MSME की गाइड लाइन ताक पर रखकर टेंडर बुलाए हैं। अधिकारी कमीशन वसूली के लालच में चहेतों को ठेका दिलाने में दूसरी संस्थाओं के कार्यक्षेत्र में दखल से भी परहेज नहीं कर रहे। MSME के भण्डार क्रय नियम जिससे रोकते हैं निगम उन्हें ही तोड़ रहा है। ऐसे में टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवालों के घेरे में है। यही नहीं बड़ी राशि की टेंडर प्रक्रिया के लिए जैम पोर्टल की बाध्यता को भी निगम में माना नहीं जा रहा।
भ्रष्ट तंत्र इन नियमों की अनदेखी करता
लघु उद्योग निगम की टेंडर प्रक्रिया के लिए MSME डिपार्टमेंट ने भण्डार क्रय और सेवा उपार्जन नियम बनाया है। लेकिन कमीशन से जेबें भरने के लिए निगम की भ्रष्ट तंत्र इन नियमों की अनदेखी करता आ रहा है। विभागों को जो सामान या उपकरण उपलब्ध कराये जाते हैं उनके लिए भी निगम द्वारा बाजार से ज्यादा कीमत वसूलने की शिकायतें कई बार सामने आ चुकी हैं। हाल ही में ऐसे ही नए मामले भी सामने आए हैं। इनमें अधिकारियों की मनमानी फिर साफ़ उजागर हो रही है और भ्रष्टाचार की परतें खुलती दिख रही हैं।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदने 14 दिन में 6 टेंडर
निगम ने 3 जनवरी को दो टेंडर डिसप्ले पैनल, स्मार्ट टीवी और आउटडोर एलईडी वीडियो वॉल और लैपटॉप, डेस्कटॉप कंप्यूटर खरीदने के लिए टेंडर जारी किया था। इसके तुरंत बाद 12 जनवरी को डिजिटल पोडियम और 15 जनवरी को दो टेंडर जारी कर डिजिटल कॉपियर यानी फोटो कॉपी मशीन के दो अलग- अलग मॉडल्स के रेट मंगाए। इससे दो दिन बाद 17 जनवरी को भी निगम ने सीसीटीवी सर्विलांस सिस्टम, कैमरे का टेंडर जारी कर दिया। यानी कि निगम ने हाई टेक्नोलॉजी वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए 14 दिन में ताबड़तोड़ छह टेंडर जारी कर डाले। ड्रोन हायर टेक्नोलॉजी पर आधारित उपकरण है। इसके लिए स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन नोडल एजेंसी है और उसके द्वारा पहले ही रेट कॉन्ट्रैक्ट किया जा चुका है। वहीं मेनपॉवर एजेंसी के रजिस्ट्रेशन के लिए भी सेडमैप अधिकृत है लेकिन अपने चहेतों को टेंडर देने के मोह में निगम उसके कार्य क्षेत्र में भी दखल दे रहा है।
यह हैं लघु उद्योग निगम की टेंडर गाइड लाइन
लघु उद्योग निगम सालों से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा है। इसलिए MSME विभाग ने साल 2022 में नियमों को संशोधित कर नई गाइड लाइन बनाई थी। गाइड लाइन के नियम -20 के बिंदु 13( ब )( 2 ) में साफ़ उल्लेख है कि हाई टेक्नोलॉजी वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान की खरीद निगम नहीं कर सकता। लेकिन यहां भी निगम MSME के भण्डार क्रय और सेवा उपार्जन नियम को अनदेखा कर गया। टेंडर और भुगतान प्रक्रिया में शामिल अधिकारी इतने हावी हैं की वे ही निगम की हर गतिविधि को कण्ट्रोल करते हैं। कभी अपने चहेतों को टेंडर दिलाने का मामला हो या फिर सामग्री सप्लाई करने वाली फर्म से कमीशन की वसूली का। निगम बदनामी झेलता रहा है।
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सीएम ने दी थी निगम बंद करने की चेतावनी
निगम में खुलेआम भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी की बेहिसाब शिकायतों से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान भी आहत थे। अपने कार्यकाल में कैबिनेट मीटिंग के दौरान ही उन्होंने निगम के तत्कालीन अधिकारी को फटकार लगा दी थी। उन्होंने सबके सामने निगम को बंद कर देने की मंशा तक जताई थी। यहीं नहीं शिवराज कैबिनेट में निगम की वित्तीय सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव पर बड़ी संख्या में मंत्रियों ने सामूहिक आपत्ति दर्ज कराई थी। तब मंत्रीमंडल के सदस्य उमाशंकर गुप्ता ने तो यहां तक कहा था की इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। तत्कालीन मंत्री गोपाल भार्गव ने निगम से खरीदी में कीमत बाजार से ज्यादा होने और सामान घटिया होने का तर्क रखा था। उन्होंने निगम को भ्रष्टाचार का अड्डा भी कहा था।