बिल घोटाले में निगम की जांच पूरी, 188 फाइल की लिस्टिंग, जांच 20 तक ही सीमित रही, बड़ा अधिकारी जिम्मेदार नहीं

आईएएस व अपर आयुक्त सिद्दार्थ जैन की कमेटी ने जांच की है। इसमें दस साल की 188 फाइल को लिस्ट किया गया जो आरोपी पांचों फर्म की है। यह 107 करोड़ के भुगतान की थी, जिसमें से 81 करोड़ का भुगतान हो गया।

Advertisment
author-image
Sandeep Kumar
New Update
PIC
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

संजय गुप्ता @ INDORE.  इंदौर नगर निगम बिल घोटाले की जांच के लिए निगमायुक्त शिवम वर्मा ( Municipal Commissioner Shivam Verma ) द्वारा बनाई गई जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। आईएएस व अपर आयुक्त सिद्दार्थ जैन (Siddharth Jain ) की कमेटी ने जांच की है। इसमें दस साल की 188 फाइल को लिस्ट किया गया जो आरोपी पांचों फर्म की है। यह 107 करोड़ के भुगतान की थी, जिसमें से 81 करोड़ का भुगतान हो गया। हालांकि कमेटी ने लिस्टिंग जरूर की लेकिन इनकी जांच नहीं की है जांच केवल 20 फाइल तक सीमित रही, जिस पर निगम ने एफआईआर ( FIR ) कराई थी। करीब 400 पन्नों से ज्यादा की इस रिपोर्ट में किसी भी बड़े अधिकारी की संलप्तिता नहीं पाई गई है। 

ये खबर भी पढ़िए...जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया का फैसला, पत्नी से अननैचुरल सेक्स रेप नहीं

इसलिए किसी अपर आयुक्त व विभागीय अधिकारी की संलिप्तता नहीं

द सूत्रों को मिली जानकारी के अनुसार कमेटी ने 20 फाइल का बारीकी से अध्ययन किया और इसे जुड़े हर अधिकारी, कर्मचारी का बयान लिया है। लेकिन जांच में सामने आया है कि यह पूर खेल ऊपर के ऊपर हो गया है। इसमें फाइल विभाग से चली ही नहीं है, इसलिए किसी अधिकारी की संलप्तिता विभागीय स्तर पर नहीं है। यह फाइल पूरी तरह से फर्जी रूप बनी, इसके लिए आईडी का गलत उपयोग किया गया, टेंडर नंबर से लेकर आवक-जावक नंबर, वर्कआर्डर, मेजरमेंट बुक यह सभी दस्तावेज दूसरी फाइल का उपयोग किया गया। इसलिए अपर आयुक्त हो या अन्य विभागीय अधिकारी इनकी कोई संलिप्तता नहीं है।

ये खबर भी पढ़िए...शिवराज के साथ एक दिन - ऐसा क्यों लग रहा है कि ये मामा का पहला चुनाव है!

ऑडिट और एकाउंट की मिलीभगत 

1-सूत्रों के अनुसार इसमें पाया गया है कि इसमें ऑडिट और एकाउंट विभाग की लापरवाही के साथ ही दोनों की मिलीभगत और संलप्तिता है। 

2- कारण है कि यह फाइल विभाग से बनी ही नहीं चाहें ड्रेनेज विभाग हो, उद्यान, जनकार्य या यातायात। इन विभाग को इन फाइलों की जानकारी ही नहीं हैं क्योंकि यह फर्जी तरीके से ऊपर स्तर पर कुछ लोगों ने फर्जी फर्मों के साथ मिलकर बनाई और सीथे ऑडिट और एकाउंट विभाग स्तर पर खेल किया गया। 

ये खबर भी पढ़िए...Weather Update : मध्य प्रदेश के 14 शहरों में टेम्प्रेचर 40 डिग्री पार, छत्तीसगढ़ में भी हीटवेव का अलर्ट

कमेटी ने मुख्य तौर पर यह पांच बिंदु पाए

1-फाइलों की इंट्री के लिए गलत तौर से आईडी का उपयोग किया गया। लेखा विभाग की इंट्री जरूर सही थी, उन्होंने इसे माना भी। उन्होंने साफ कहा कि हमने इंट्री की है क्योंकि यह फाइल आडिट से मंजूर होकर आई है तो हमे इंट्री करना ही थी।

2-ऑडिट ने अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभाई, इनकी भूमिका संदिग्ध है। क्योंकि फर्जी फाइल को जांच कर आगे बिल पेमेंट के लिए पहुंचना इन्हीं का काम था। इन्होंने फाइल की जांच और मिलान नही नहीं की। इसी स्तर पर पूरी फाइल देखी जाती है कि इसमें टेंडर नंबर वर्कआर्डर, टेंडर निविदा सिमित रिपोर्ट, मेजरमेंट बुक व अन्य सभी दस्तावेज लगे होते हैं। इसकी यहां एक कॉपी होती है और फाइल फिर मूल विभाग को लौटाई जाती है। लेकिन यह फाइल मूल विभाग को लौटी नहीं, क्योंकि यह फर्जी फाइल थी। यहां से भुगतान के लिए लेखा विभाग चली गई।

3-लेखा शाखा ने भी इस फाइल की गंभीरता से नहीं देखा, दो कर्मचारियों की लापवाही के साथ संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

4-जांच कमेटी ने साथ ही फर्मों के कामों का ब्यौरा दिया है, आखिर क्यों इन 5 फर्मों के काम को फर्जी माना गया है। क्योंकि कमेटी ने पाया कि जैसे देखा वर्कआर्डर 10 जब इसकी फाइल निकाली गई तो वर्कआर्डऱ् 10 अलग ही है, वह इस फर्म के काम की है ही नहीं। यानि उन्होंने दूसरे टेंडर, वर्कआर्डर आदि दस्तावेजों का उपयोग किया है। 

ये खबर भी पढ़िए...भोपाल की लेडी डॉक्टर से जयपुर में रेप, डॉक्टर ने दोस्ती में दिया धोखा

188 फाइल की जांच की अनुशंसा भी कर दी कमेटी ने

कमेटी ने साथ ही इन फर्म के साल 2015 से अभी तक के काम की लिस्टिंग बनाई है, कि उन्होंने कौन-कौन से काम किए हैं और इनका उन्हें कितना भुगतान हुआ है। पूरे 188 काम की लिस्ट बनाई गई है। साथ कमेटी ने अनुशंसा कर दी है कि लेखा विभाग इन सभी 188 फाइल को देखें कि कब कितना भुगतान हुआ और सही काम हुआ कि नहीं। फिर साथ ही कमेटी ने कहा कि इस भुगतान की पूरी राशि सामने आने के बाद इन फर्म से उसकी वसूली की विधिक कार्रवाई की जाए। यह निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाई गई है।

इन दो फर्म को भी अब जांच में लिया, केस दर्ज

ताजा मामला दो और फर्म का सामने आया है। ड्रेनेज विभाग से संबंधित चार बड़े भुगतान का है। इसमें क्रिस्टल इंटरप्राइजेस, 53 जूनी कसेरा बाखल (डायरेक्टर इमरान खान) को 2.43 करोड़ का भुगतान किया गया। ऐसे ही एक अन्य फर्म ईश्वर इंटरप्राइजेस 15-ए पलसीकर कॉलोनी ( डायरेक्टर मौसम व्यास ) को 2.49 करोड़ का भुगतान किया गया। एमजी रोड पुलिस ने इन दोनों कंपनियों के डायरेक्टर को आरोपी बनाया है। इसके साथ ही इनकी गिरफ्तारी को लेकर टीमों ने अलग-अलग स्थानों पर दबिश दी है। इन फर्म की जानकारी पुलिस की जांच में आया था। उधर निगम के गिरफ्तार हुए कैशियर राजकुमार साल्वी की दो फर्म गुरूकृपा इंटरप्राइजेस और निशान क्रिएशन भी सामने आई है। अब इन्हें भी जांच में लिया जाएगा। 

उधर उच्च स्तरीय कमेटी बनी

इंदौर नगर निगम के बिल घोटाले की जांच के लिए सीएम डॉ. मोहन यादव ने उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है। वाणिज्यिक कर विभाग के प्रमुख सचिव अमित राठौर इस कमेटी के अध्यक्ष है। साथ ही सचिव वित्त विभाग अजीत कुमार और लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।

महापौर की मांग पर सीएम और मंत्री विजयवर्गीय का फैसला

महापौर पुष्यमित्र भार्गव इस घोटाले में एफआईआर होने के बाद से ही उच्चस्तरीय जांच की मांग उठा रहे थे और इसके लिए औपचारिक पत्र भी लिखा था। महापौर का मानना है कि इस मामले में कई और बड़े लोग है, और जांच निगम स्तर पर नहीं हो सकती है। इसके बाद नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी कहा था कि सीएम से बात हुई है, जल्द सख्त कार्रवाई होगी। सोमवार को जब सीएम इंदौर में थे, तब फिर बात हुई। इसके बाद सीएम ने अब कमेटी बना दी है।

यह सभी हो चुके गिरफ्तार

पुलिस द्वारा जहान्वी इंटरप्राइजेस के राहुल बडेरा, मैसर्स क्षितिज इंटरप्राइज की रेणु बडेरा, मैसर्स किंग कंस्ट्रक्शन के मो. जाकिर और मैसर्स न्यू कंस्ट्रक्शन के मो. साजिद, लेखा विभाग नगर निगम के पूर्व विनियमित क्लर्क राजकुमार साल्वी, उपयंत्री उदय भदौरिया और कम्प्यूटर ऑपरेटर चेतन भदौरिया को हिरासत में लिया गया है। इनमें से उक्त नगर निगम में कार्यरत कर्मियों की सेवाएँ समाप्त कर दी गई हैं। सहायक यंत्री अभय राठौर को निलंबित किया गया है। वह पुलिस द्वारा आरोपी बनाए जाने के बाद से ही फरार है। 

ऑडिट पर कार्रवाई का भी पत्र

आयुक्त नगरीय प्रशासन एवं विकास के पत्र के आधार पर वित्त विभाग द्वारा नगर निगम में वित्त विभाग के पदस्थ लोकल फण्ड के समर सिंह परमार, उप संचालक जगदीश ओहरिया और रामेश्वर परमार को शासकीय कार्य में लापरवाही बरतने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा रही है।

इंजीनयर अभय राठौर को लेकर क्या बोली कमेटी

पुलिस की जांच में ठेकेदारों ने इंजीनियर अभय राठौर का नाम लिया कि वही फर्जी फाइल बनवाता था और भुगतान का 50 फीसदी तक हिस्सा उसे ही जाता था। इसके बाद आरोपी बनाया गया और दस हजार का ईनाम घोषित हुआ, वह अभी फरार है। उधर निगम की जांच में एक बार फरार होने से पहले राठौर के बयान हुए जिसमें इन फाइलों में उसने अपनी जगही फर्जी साइन होने की बात कही। जांच कमेटी ने राठौर को लेकर यही लिखा कि उनकी भूमिका है कि नहीं यह पुलिस विवेचना का विषय है क्योंकि उनके बाद में कमेटी के सामने नहीं आने के चलते जांच पूरी नहीं हो सकी। 

बाकी आरोपियों की भूमिका

उधर पुलिस जांच में बाकी आरोपियों की भूमिका अब लगभग क्लीयर हो गई है-



राहुल वढेरा- जान्हवी इंटरप्राइजेस का ठेकेदार, माना कि फाइल को लिखने और पूरी प्रक्रिया करवाने में माहिर है। वह कम्प्यूटर पर फर्जी फाइल तैयार करता था। राठौर को 50 फीसदी हिस्सा जाने के बाद बाकी राहुल और किंग इंटरप्राइजेस के जाकिर का मिलता था। 

उदय भदौरिया- सब इंजीनियर है जो जोन 11 में है। इसकी निशानदेङी पर निगम के आईटी सेल से एक सीपीयू जब्त किया है। इसका काम भुगतान की फाइलों का पोर्टल पर अपलोड करना।

चेतन भदौरिया-  विजयनगर जोन में डाटा इंट्री ऑपरेटर, इससे पूछताछ के बाद विजयनगर जोन से सीपीयू जब्त किया। इसमें कई फर्जी का के डेटा है।

(उदय और चेतन भदौरिया इंजीनयर राठौर के रिश्तेदार है और नौकरी पर भी उन्हीं ने लगवाया था)

राजकुमार साल्वी- एकाउंट शाखा का कैशियर यही फर्जी फर्म के भुगतान की फाइल डील करता था। यह भुगतान के बदले में 15 फीसदी कमीशन लेता था। बाद में खुद दो फर्म बना ली।

मोहम्मद साजिद और जाकिर- यह दोनों मोहम्मद सिद्दकी के बेटे हैं। साजिद की नींव कंस्ट्रक्शन तो जाकिर की किंग कंस्ट्रक्शन कंपनी है, सिद्दकी की ग्रीन है। फर्मों के दस्तावेज तैयार करने में मदद करने में साजिद की भूमिका थी। वहीं अहम भूमिका जाकिर की थी वह वढेरा की तरह पूरी फाइल बनवाने में जुटा था।

अपर आयुक्त सिद्दार्थ जैन बिल घोटाले की जांच इंदौर नगर निगम बिल घोटाले निगमायुक्त शिवम वर्मा Municipal Commissioner Shivam Verma