पीडब्ल्यूडी में ठेकेदारों से साठगांठ के बेहिसाब मामले लेकिन सरकार को फुरसत ही नहीं

मध्‍य प्रदेश में लोक निर्माण से लोक कल्याण की टैग लाइन के अर्थ को घपलेबाजों ने बदल दिया है। अब लोक कल्याण से ज्यादा ठेकेदारों के कल्याण का मकसद ही नजर आ रहा है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. वैसे तो मध्य प्रदेश में बेहिसाब घोटाले हैं जिनकी गिनती कर पाना मुश्किल है लेकिन कुछ पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़े कर जाते हैं। इन्हें देखकर समझ आता है कि इन घपलों में पूरा तंत्र ही शामिल है। लोक निर्माण से लोक कल्याण की टैग लाइन का भाव ही विभागीय अधिकारियों के गड़बड़झालों ने बदल दिया है।

अब इसमें लोक कल्याण से ज्यादा ठेकेदारों के कल्याण की प्रबल नजर आने लगी है। लोक निर्माण विभाग के अधिकारी ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए बड़े प्रोजेक्ट में जिस तरह नियमों के बाहर जाकर धांधली कर रहे हैं उससे विभाग की कार्यशैली ही सवालों के घेरे में है। 

निर्माण कार्यों की गुणवत्ता से समझौता कर निर्माण एजेंसी को लाभ पहुंचाते आ रहे लोक निर्माण विभाग के अधिकारी अब इससे भी आगे निकल गए हैं। रीवा संभाग में लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री की कारगुजारी ने केवल इकलौते मामले से नहीं बल्कि ऐसे अन्य गड़बड़ियों से पर्दा उठाया है। पिछले वर्षों में हुए करोड़ों रुपए की लागत के दूसरे निर्माण कार्यों के भुगतान की जांच की मांग भी उठ रही है। 

पहुंचाया 2.59 करोड़ का लाभ 

लोक निर्माण विभाग में अधिकारी निर्माण एजेंसियों के फायदे के लिए किस स्तर तक जाकर सरकार से धोखाधड़ी कर रहे हैं इसे समझना जरूरी है। दरअसल रीवा संभाग में साल 2017 से 2022 के बीच सतना जिले के सेमरिया बनकुइंया से खमरिया- गोरइयां के बीच 46.70 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कराया गया था। इसके लिए पीडब्ल्यूडी द्वारा दिल्ली की एसआर कंस्ट्रक्शन कंपनी को ठेका दिया गया था।

इस सड़क के निर्माण में एजेंसी ने गुणवत्ता की अनदेखी के साथ ही निर्धारित से कहीं ज्यादा समय लिया था। एजेंसी पर जुर्माना लगाने की जगह कार्यपालन यंत्री ने उसे लाभ पहुंचाया। इसके लिए कार्यपालन यंत्री ने विभागीय नियम तोड़े और कलेक्टर के पत्र को भी दबा दिया। अब मामला उजागर होने पर ईओडब्ल्यू द्वारा मामला दर्ज किया गया है। 

ठेकेदार के लिए रची साजिश 

साल 2017 में अनुबंध के बाद एसआर कंस्ट्रक्शन ने सतना जिले में सड़क निर्माण शुरू किया था। निर्माण कार्य निर्धारित समय सीमा में पूरा न होने के कारण विभाग द्वारा एजेंसी का 2.59 करोड़ रुपए का भुगतान रोक दिया गया। ठेकेदार द्वारा इस राशि के लिए रॉयल्टी चुकाने से संबंधित खनिज शाखा का पत्र पेश किया गया।

इसी पत्र को तत्कालीन कार्यपालन यंत्री मनोज द्विवेदी ने भुगतान की अनुशंसा का आधार बनाया। हकीकत यह है कि यह पत्र खनिज शाखा ने जारी ही नहीं किया था। इस पत्र को माध्यम बनाकर गलत तरीके से भुगतान की अनुंशसा कार्यपालन यंत्री द्वारा की गई थी।

हेराफेरी यहीं तक सीमित नहीं रही बल्कि गुपचुप भुगतान के लिए कार्यपालन यंत्री ने पत्र को कार्यालय के डिस्पेच रजिस्टर पर भी दर्ज नहीं कराया। द्विवेदी ने विभाग के अकाउंटेंट की टीप को नजरअंदाज कर रोके गए ढाई करोड़ के भुगतान की अनुमति दे दी। इस भुगतान की वजह से लोक निर्माण विभाग को सीधे तौर पर ढाई करोड़ रुपए की क्षति पहुंचाई गई। 

वेतन विभाग से काम ठेकेदार का

कार्यपालन यंत्री मनोज द्विवेदी ने जिस ठेकेदार एजेंसी को ढाई करोड़ का फायदा पहुंचाने अपने ही विभाग से धोखाधड़ी की थी वह तीन साल बाद सामने आई है। ईओडब्ल्यू ने तत्कालीन कार्यपालन यंत्री द्विवेदी और निर्माण एजेंसी एसआर कंस्ट्रक्शन और हेराफेरी में सहयोग करने वाले कर्मचारियों पर अपराध दर्ज किया है।  

अब सवाल यह है कि विभागीय अधिकारी रोके गए ढाई करोड़ के भुगतान पर तीन साल चुप्पी क्यों साधे रहे ? ठेकेदार को भुगतान करने के दौरान एसई, सीई के स्तर पर आपत्ति दर्ज क्यों नहीं की गई। जबकि सड़क का निर्माण निर्धारित अवधि में पूरा न होने पर एजेंसी को नोटिस जारी होने की बात किसी से छिपी नहीं थी।

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वेतन घोटाले पर साधे रहे चुप्पी

लोक निर्माण विभाग में अधिकारी अपने लाभ के लिए कैसे नियमों की मर्यादा लांघ रहे हैं इसका दूसरा उदाहरण शिवपुरी जिले का वेतन घोटाला है। पांच साल कार्यपालन यंत्री कार्यालय से वेतन के नाम पर फर्जीवाड़ा जारी रहा। सात करोड़ से ज्यादा फर्जी कर्मचारियों के नाम पर बांटे गए लेकिन किसी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया या जानबूझकर देखते रहे।  अब भी इस केस में वसूली अधूरी ही है।

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दोगुना भुगतान के लिए हेराफेरी

जबलपुर और भोपाल संभाग में 100 से ज्यादा पुल और सड़क निर्माण के लिए एलएन मालवीय इंफ्रा को कंसल्टेंसी का काम दिया गया था। इस काम के लिए विभाग द्वारा 12.25 करोड़ रुपए का अनुबंध किया गया और भुगतान 26.11 करोड़ रुपए कर दिया। यानी कंपनी को 13.86 करोड़ का फायदा पहुंचाया गया। गए। यही नहीं एलएन इंफ्रा के पास जो काम थे उनमें 47 प्रतिशत ही काम हुआ था। नियम से बाहर भुगतान होने पर विभाग के शीर्ष अधिकारी चुप्पी साधे रहे। 

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लापरवाही से करोड़ों का फटका

लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से हर साल विभाग को बेहिसाब नुकसान हो रहा हैं। कहीं गुणवत्ता की अनदेखी से निर्माण एजेंसी मुनाफा बटोरकर ले जाती है और जर्जर सड़क की रखरखाव पर विभाग को खर्च करना पड़ता है। कभी एजेंसी चयन में उदासीनता की वजह से निर्माण कार्य समय से कई महीने या साल देरी से पूरा होता है और निर्माण सामग्री की लागत बढ़ने का खामियाजा विभाग को उठाना होता है। इसी साल अधिकारियों की लापरवाही से पीडब्ल्युडी को करोड़ों का नुकसान हुआ है। 

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गलत ड्राइंग-डिजाइन से नुकसान

राजधानी के ऐशबाग क्षेत्र में रेलवे ओवरब्रिज की गलत डिजाइन की वजह से लोक निर्माण विभाग की जमकर फजीहत हुई है। 90 डिग्री एंगल के मोड़ की वजह से अब इसमें नए सिरे से सुधार किया जाना है। इस पर जो करोड़ों रुपए खर्च होंगे उसका भार सरकारी खजाने पर आएगा। इसी तरह बीना में  T आकार के पुल पर वाहनों का गुजरना दुश्वार है। मोड़ पर बार- बार जाम लगता है। इंदौर के Z आकार के पुल ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों की लापरवाही की परतें खोल दी है। एक जैसी गलतियां अधिकारी बार-बार कर रहे हैं। 

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