इंदौर के डेली कॉलेज में अंदरूनी कलह... चंडोक का इस्तीफा, हेड गर्ल ने लगाए सनसनीखेज आरोप, खुले खत में कई खुलासे

इंदौर के डेली कॉलेज में अंदरूनी कलह बढ़ गई है। बोर्ड सदस्य सुमित चंडोक ने इस्तीफा दिया, जबकि हेड गर्ल ने गंभीर आरोप लगाए। कॉलेज की व्यवस्था पर सवाल उठाए गए, और एक खुले खत में वित्तीय और अनुशासनात्मक विफलताओं की ओर इशारा किया गया।

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Photograph: सुमीत चंडोक

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INDORE. देश के नामचीन शैक्षणिक संस्थानों में गिना जाने वाला मध्यप्रदेश का इंदौर का डेली कॉलेज इन दिनों विवादों और आरोपों के दलदल में फंसा हुआ है। कभी अनुशासन, उत्कृष्ट शिक्षा और गौरवशाली विरासत का प्रतीक माना जाने वाला यह संस्थान आज अपने ही भीतर से उठे सवालों से हिल गया है। ताजा घटनाक्रमों ने कॉलेज के प्रशासनिक ढांचे को कटघरे में खड़ा कर दिया है। पूरे सिस्टम की पारदर्शिता और नैतिकता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। 

पहला झटका: बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से सुमित चंडोक का इस्तीफा

डेली कॉलेज बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में पैरेंट नॉमिनी के तौर पर लंबे समय से सक्रिय सुमित चंडोक ने अचानक इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा कॉलेज की अंदरूनी उठापटक और बोर्ड के भीतर चल रही गुटबाजी की तरफ इशारा करता है। सूत्रों का कहना है कि 9 सदस्यों वाले बोर्ड की बैठकें अक्सर अधूरी रहती हैं और कुछ गिने-चुने सदस्य ही फैसले ले रहे हैं। नतीजा, मनमर्जी, नाराजगी और गहराता अविश्वास। यही नहीं, कॉलेज प्राचार्य डॉ. गुनमीत बिंद्रा के कामकाज पर भी लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं।

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दूसरा झटका: डेली कॉलेज हेड गर्ल इस्तीफा

डेली कॉलेज इंदौर में हेड गर्ल के एक पत्र में किए गए खुलासे ने कॉलेज के प्रशासन और शिक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस पत्र में कॉलेज फेकल्टी और स्टाफ पर गंभीर आरोप लगाते हुए हेड गर्ल ने इस्तीफा दे दिया। पत्र में उसने दावा किया कि उसे लगातार दखलंदाजी का सामना करना पड़ा और अपमानित किया गया।

बता दें कि यह हेड गर्ल इंदौर के एक उद्योगपति की बेटी है। उसने अपने इस्तीफे में शिक्षा संस्थान के भीतर के भ्रष्टाचार और असंवेदनशीलता का पर्दाफाश किया। छात्रा का कहना है कि मैं हमेशा से टॉपर रही हूं, इसलिए मुझे हेड गर्ल नियुक्त किया गया था, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने मुझे काम करने का मौका नहीं दिया। मुझे हमेशा अपमानित किया गया और मेरे साथ दुर्व्यवहार हुआ। मुझे बार-बार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। छात्रा ने यह भी आरोप लगाया कि एमयूएन के सचिवालय को जानबूझकर भंग किया गया। वह बोलीं- कोई मेरे साथ खड़ा नहीं हुआ और मुझे डांटा गया। अब मैं इस्तीफा दे रही हूं।

छात्रों का पत्र : दबाव या साजिश?

डेली कॉलेज विवाद के बाद 12वीं कक्षा के छात्रों ने प्रबंधन के पक्ष में पत्र लिखा, जिसमें हेड गर्ल के व्यवहार की आलोचना की गई। लेकिन यह पत्र संदिग्ध लगता है। क्या यह छात्रों का स्वतंत्र निर्णय है या प्रबंधन के दबाव का नतीजा? पत्र में कहा गया कि हेड गर्ल मनमानी कर रही थी, लेकिन हेड गर्ल के आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 

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क्या है असली मुद्दा?

यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ, जब हेड गर्ल ने एमयूएन 2025 के चयन प्रक्रिया पर आपत्ति जताई। वह मेरिट के बजाय कुछ खास छात्रों को लेने पर अड़ी थी। इसके बाद पूरे कॉलेज प्रशासन और स्टाफ ने मिलकर यह तय किया कि आयोजन में केवल योग्य और काबिल छात्र ही शामिल हों, जिससे कॉलेज की प्रतिष्ठा बनी रहे। हेड गर्ल के इस्तीफे ने सवाल उठाया है कि क्या कॉलेज प्रशासन और स्टाफ सच में छात्रों की भलाई के लिए काम कर रहा है या अपनी मनमानी कर रहे है?

तीसरा झटका: खुला खत और चौंकाने वाले आरोप

इसी बीच एक खुले खत ने कॉलेज की साख पर करारा प्रहार किया है। पहचान छिपाकर लिखी गई इस चिट्ठी में शिक्षा, अनुशासन, वित्तीय पारदर्शिता और नैतिक मूल्यों की भारी गिरावट को सामने रखा गया। इस चिट्ठी में लिखा है, मेरा बेटा और उसका पूरा बैच अच्छे परिणाम पाने के लिए बाहरी कोचिंग पर निर्भर रहे। इसके बावजूद स्कूल ने इन परिणामों का श्रेय अपने नाम कर लिया।

यदि डेली कॉलेज अपने छात्रों को सफलता के लिए तैयार ही नहीं कर पा रहा तो इसके नाम और भवनों से परे इसकी वास्तविक उपयोगिता क्या है? काउंसलिंग की स्थिति भी उतनी ही चिंताजनक है। सभी छात्रों को बाहर के काउंसलरों से क्यों सलाह लेनी पड़ती है? यदि स्कूल का काउंसलर छात्रों से जुड़ नहीं पा रहा, तो उसकी नियुक्ति का औचित्य क्या है?

विश्वसनीय रिपोर्टें बताती हैं कि जूनियर स्कूल के कुछ शिक्षक देर रात पार्टियों के बाद नशे की हालत में या हैंगओवर में स्कूल आते हैं। कुछ ने तो शौचालयों में उल्टी तक की है। 

चिट्ठी में सवाल उठाए गए हैं कि अनुशासन समिति कहां है और इसे कौन चलाता है? कॉलेज में अब अनुशासन का कोई ठोस ढांचा नजर नहीं आता है, जबकि गलत जगह पर लगातार माइक्रो-मैनेजमेंट किया जा रहा है।

आरोप है कि डेली कॉलेज के खाते में लगभग 100 करोड़ रुपए हैं, जबकि गैर-लाभकारी संस्था होने के नाते, कानूनन हर साल दिसंबर के अंत तक खाते का निपटान होना चाहिए। बोर्ड बार-बार बैंकों को क्यों बदलता है? इसके पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या है? यह अस्पष्टता वित्तीय प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

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धीरज लुल्ला करते हैं फैसलों में हस्तक्षेप 

इस खुले खाते में कहा गया है कि बोर्ड के सदस्य धीरज लुल्ला प्राचार्य के दफ्तर और निवास पर पहुंचकर फैसलों को प्रभावित करते हैं। हर दिन के काम में हस्तक्षेप करते हैं। फीस वसूली का दबाव बनाया जाता है।

एक पैरेंट ने आरोप लगाया कि फीस 20 दिन लेट होने पर धमकियां दी गईं, बच्चा प्रतियोगिता और परीक्षा से वंचित किया गया। जबकि बोर्ड का एक सदस्य 45 लाख रुपए से ज्यादा बकाया रखे हुए है, फिर भी उसे कोई छुआ तक नहीं। प्रिंसिपल खुले मंचों पर नाटक करती हैं। छात्र उन्हें मजाक में सोप ओपेरा क्वीन कहने लगे हैं।

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डेली कॉलेज की पहचान पर संकट का साया

तीनों घटनाओं चंडोक का इस्तीफा, हेड गर्ल की विदाई और खुले खत के आरोपों ने डेली कॉलेज की नींव हिला दी है। सवाल अब सिर्फ यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत, बल्कि यह है कि क्या डेली कॉलेज अब भी एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था है या यह चंद लोगों की कठपुतली बनकर रह गया है?

जहां कभी उत्कृष्ट शिक्षा, अनुशासन और नैतिक मूल्यों की गूंज थी, वहां अब आरोप, इस्तीफे और गिरावट की गूंज सुनाई दे रही है। यह स्थिति सिर्फ कॉलेज की साख पर धब्बा नहीं, बल्कि उन सैकड़ों बच्चों और अभिभावकों की उम्मीदों पर भी चोट है, जो इसे अब तक अपने सपनों का संस्थान मानते थे।

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