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Photograph: (The Sootr)
INDORE. करीब डेढ़ सौ साल से एजुकेशन और अनुशासन का प्रतीक रहा इंदौर का डेली कॉलेज अब नए दौर में कदम रखने जा रहा है। वर्ष 1948 में अस्तित्व में आए इस नामी स्कूल के नियमों में 77 साल बाद बदलाव का आदेश आया है। रजिस्ट्रार, फर्म्स और सोसायटीज इंदौर ने फैसला दिया है कि कॉलेज की सोसायटी को और पारदर्शी व लोकतांत्रिक बनाना होगा।
इसके लिए हर साल कम से कम एक एजीएम यानी Annual General Meeting होगी। इसमें सभी सदस्य हिस्सा ले सकेंगे। सचिव 15 दिन पहले सूचना देंगे। कोरम कुल सदस्यों का 3/5 होगा। बैठक में बजट, ऑडिट और बड़े फैसलों पर चर्चा होगी। अब इस फैसले के बाद पूर्व छात्र, दानदाताओं और अन्य सदस्यों को एजीएम में अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। यह बदलाव इसलिए खास है, क्योंकि अब तक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सिर्फ नौ सदस्य ही सारे बड़े फैसले लेते थे, जिसमें 85 करोड़ रुपए का बजट भी शामिल था।
संदीप पारेख की लड़ाई से बदलाव
यह सब ओल्ड डेलियन संदीप पारेख की शिकायत से शुरू हुआ। उनका आरोप था कि डेली कॉलेज सोसायटी में 4 हजार से ज्यादा सदस्य हैं, जिनमें 3804 पूर्व छात्र, 253 नए दानदाता और 55 पुराने दानदाता शामिल हैं, लेकिन इनका कोई हक नहीं था। सारे फैसले सिर्फ 9 लोगों का बोर्ड लेता था।
पारेख ने इसे गलत बताते हुए कहा था कि सोसायटी में सालाना बैठक (AGM) का कोई नियम ही नहीं है। यह मध्यप्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1973 के खिलाफ है। उन्होंने सितंबर 2024 में सहायक रजिस्ट्रार से शिकायत की। जब बात नहीं बनी तो उन्होंने इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
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कोर्ट का आदेश और सुनवाई
29 नवंबर 2024 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि रजिस्ट्रार छह हफ्तों में इस मामले को सुलझाएं और सभी पक्षों को सुनें। इसके बाद 30 दिसंबर 2024 को पहली सुनवाई हुई। पारेख ने कहा कि इतनी डेली कॉलेज में 1600 बच्चे पढ़ते हैं, 350 कर्मचारी काम करते हैं, 85 करोड़ का बजट है, लेकिन सदस्यों की कोई सुनवाई नहीं। यह गलत है।
कॉलेज की ओर से उस दिन कोई नहीं आया। बाद में कॉलेज के वकील अशुतोष निमगांवकर और डीन ओम सिंह चौहान ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि 1948 से नियम ऐसे ही हैं और सिर्फ 9 सदस्य ही सोसायटी के असली सदस्य हैं, लेकिन सुनवाई में रजिस्ट्रार ने इसे गलत माना।
कई बार टली सुनवाई
सुनवाई कई बार टली। फरवरी और मार्च 2025 में तारीखें बदलीं। आखिरकार, 2 अप्रैल 2025 को पारेख और उनके वकील राघव राज सिंह ने पूरी बात रखी। उन्होंने कहा कि सभी सदस्यों को बैठक में बुलाने, बजट पर चर्चा करने और नियम बदलने का हक मिलना चाहिए। वहीं, कॉलेज की ओर से कहा गया कि पुराने नियम ठीक हैं। दान देने से कोई स्वतः सदस्य नहीं बनता, लेकिन रजिस्ट्रार ने पारेख के पक्ष की बात मानी।
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नए नियम क्या कहते हैं?
रजिस्ट्रार ने अब मध्यप्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रेशन के तहत आदेश दिया कि डेली कॉलेज के नियम बदलने होंगे। रजिस्ट्रार ने कहा कि अगर सोसायटी ये बदलाव नहीं करती, तो वे खुद नियम दर्ज करेंगे।
ये हैं नए नियम1. सदस्यों की परिभाषा: पुराने दानदाता, नए दानदाता और पूर्व छात्र (ओल्ड डेलियंस) को स्पष्ट रूप से सदस्य माना जाएगा। |
क्यों है यह बदलाव खास?
यह फैसला डेली कॉलेज को और मजबूत बनाएगा। 77 साल बाद पहली बार नियम बदले जा रहे हैं, जो इसे ज्यादा खुला और लोकतांत्रिक बनाएंगे। अब चार हजार से ज्यादा सदस्यों की आवाज सुनी जाएगी। बजट पर नजर रखने और गलत फैसलों को रोकने में ये मदद करेगा।
जानकारी के मुताबिक रजिस्ट्रार, फर्म्स और सोसायटीज का आदेश डेली कॉलेज प्रबंधन को मिल गया है। अभी संस्थान के जवाब का इंतजार है। क्या वे नए नियम मानेंगे या फिर कोर्ट जाएंगे? यह देखना बाकी है।
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इस तरह मचा है बवाल
गौरतलब है कि देश के नामचीन शैक्षणिक संस्थानों में गिना जाने वाला डेली कॉलेज इन दिनों विवादों और आरोपों के दलदल में फंसा हुआ है। कभी अनुशासन, उत्कृष्ट शिक्षा और गौरवशाली विरासत का प्रतीक माना जाने वाला यह संस्थान अपने ही भीतर से उठे सवालों से हिल गया है। ताजा घटनाक्रमों ने कॉलेज के प्रशासनिक ढांचे को कटघरे में खड़ा कर दिया है। पूरे सिस्टम की पारदर्शिता और नैतिकता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
डेली कॉलेज बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में पैरेंट नॉमिनी के तौर पर लंबे समय से सक्रिय सुमित चंडोक ने अचानक इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा कॉलेज की अंदरूनी उठापटक और बोर्ड के भीतर चल रही गुटबाजी की तरफ इशारा करता है।
वहीं, डेली कॉलेज में हेड गर्ल के एक पत्र में किए गए खुलासे ने कॉलेज के प्रशासन और शिक्षा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस पत्र में कॉलेज फेकल्टी और स्टाफ पर गंभीर आरोप लगाते हुए हेड गर्ल ने इस्तीफा दे दिया। पत्र में उसने दावा किया कि उसे लगातार दखलंदाजी का सामना करना पड़ा और अपमानित किया गया।
इसी बीच एक खुले खत ने कॉलेज की साख पर करारा प्रहार किया है। पहचान छिपाकर लिखी गई इस चिट्ठी में शिक्षा, अनुशासन, वित्तीय पारदर्शिता और नैतिक मूल्यों की भारी गिरावट को सामने रखा गया। इस चिट्ठी में कई सवाल उठाए गए हैं। लिखा है, यदि डेली कॉलेज अपने छात्रों को सफलता के लिए तैयार ही नहीं कर पा रहा तो इसके नाम और भवनों से परे इसकी वास्तविक उपयोगिता क्या है? काउंसलिंग की स्थिति भी उतनी ही चिंताजनक है। सभी छात्रों को बाहर के काउंसलरों से क्यों सलाह लेनी पड़ती है? यदि स्कूल का काउंसलर छात्रों से जुड़ नहीं पा रहा, तो उसकी नियुक्ति का औचित्य क्या है?
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