MPPSC की भर्ती में देरी का कारण केवल 3 सदस्य, केरल, कर्नाटक जैसे राज्यों में सदस्य संख्या सुनकर चौंक जाएंगे

MPPSC की भर्ती में देरी का प्रमुख कारण आयोग के केवल तीन सदस्य हैं। यह अन्य राज्यों के मुकाबले मप्र के आयोग में सदस्य संख्या काफी कम है। पढ़ें द सूत्र की ये खबर...

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Sanjay Gupta
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  • केरल जैसे छोटे राज्य के आयोग में 18 सदस्य, मप्र में केवल 3

मप्र लोक सेवा आयोग (पीएससी) की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2022 के इंटरव्यू अभी भी चल रहे हैं और कई बड़े पदों के विषयों के इंटरव्यू बाकी हैं। तीन साल से यह भर्ती जारी है। ऐसे ही कई अन्य परीक्षाओं की भर्ती केवल इंटरव्यू के लिए रुकी हुई हैं। इसका कारण 'द सूत्र' ने पहले बताया था।

आयोग में कुल 5 सदस्य (चेयरमैन सहित) होते हैं, लेकिन 20 सालों के इतिहास में कभी मप्र पीएससी में पूरे पांच सदस्य नहीं रहे। अभी तो चेयरमैन सहित तीन ही सदस्य हैं। यानी पांच की भर्ती मप्र सरकार कभी नहीं कर पाई।

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द सूत्र ने बाकी आयोग को खंगाला

इसके बाद 'द सूत्र' ने देश के कई अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग की जानकारी खंगाली। यह चौंकाने वाला है। मप्र से एक तिहाई आबादी वाला केरल राज्य हो या आबादी के लिहाज से अन्य छोटे राज्य, इनके आयोग के सदस्यों की संख्या चौंकाने वाली है। इस मामले में मप्र लोक सेवा आयोग कहीं नहीं ठहरता है।

विविध राज्यों के आयोग में सदस्यों की संख्या

  • मप्र लोक सेवा आयोग - 5 स्वीकृत (लेकिन अभी पदस्थ 3 ही), जनसंख्या करीब नौ करोड़

  • केरल लोक सेवा आयोग - 18 सदस्य, जनसंख्या करीब 3.5 करोड़

  • कर्नाटक लोक सेवा आयोग - 16 सदस्य, जनसंख्या करीब 7 करोड़

  • राजस्थान लोक सेवा आयोग - 10 सदस्य, जनसंख्या करीब 7 करोड़

  • पंजाब लोक सेवा आयोग - पहले 10, अब 5 हैं, जनसंख्या करीब पौने तीन करोड़

  • तमिलनाडु लोक सेवा आयोग - 15 सदस्य, जनसंख्या करीब 7.30 करोड़

MPPSC की भर्ती में देरी का कारण को एक नजर में समझें...

  • मप्र पीएससी में 5 सदस्य की स्वीकृति है, लेकिन वर्तमान में केवल 3 सदस्य ही हैं। यह स्थिति पिछले 20 वर्षों से बनी हुई है, जिससे आयोग में काम में देरी हो रही है।

  • केरल, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु जैसे राज्यों में आयोग में अधिक सदस्य हैं, जैसे केरल में 18 सदस्य हैं, जबकि मप्र में तीन ही हैं, जो काम की गति को प्रभावित कर रहा है।

  • 2005 से 2025 तक मप्र सरकार ने आयोग में केवल 13 सदस्यों की नियुक्ति की है, जबकि संविधान के तहत सदस्यों की नियुक्ति के लिए कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है।

  • आयोग में कम सदस्य होने के कारण इंटरव्यू प्रक्रिया धीमी हो रही है। उदाहरण के लिए, राज्य सेवा परीक्षा 2023 के इंटरव्यू 40 दिन से ज्यादा समय में पूरे होंगे, जबकि पांच बोर्ड होते तो यह 15 दिन में हो सकते थे।

  • कई महत्वपूर्ण परीक्षाओं जैसे असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती, ग्रंथपाल परीक्षा, क्रीड़ा अधिकारी परीक्षा और चिकित्सा अधिकारी के इंटरव्यू अभी बाकी हैं, जिनकी तारीखों का निर्धारण नहीं हो पाया है।

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मप्र लोक सेवा आयोग में इस तरह बचे तीन लोग

  • आयोग में वर्तमान चेयरमैन डॉ. राजेश लाल मेहरा हैं, ये बतौर सदस्य जुलाई 2017 में आयोग में आए, फिर 2020 तक सदस्य रहे और इसके बाद चेयरमैन पद पर हैं।
  • आयोग में सदस्य डॉ. कृष्णकांत शर्मा हैं, जो दिसंबर 2021 में सदस्य बने।
  • आयोग में एक अन्य सदस्य, प्रोफेसर नरेंद्र कोष्ठी हैं, जो 1 मार्च 2024 को ही सदस्य बने थे।

यह हुए रिटायर

आयोग में जुलाई 2019 में नियुक्त हुए चंद्रशेखर रायकवार 9 जुलाई 2025 को रिटायर हो गए।

देखिए हालत: 20 साल में कभी पांच योग्य उम्मीदवार नहीं मिले

अब सरकार की हालत देखिए, बीते 20 सालों में 2005-06 से अभी 2025 तक मप्र सरकार ने आयोग में केवल 13 सदस्यों की नियुक्ति की है। यानी आयोग में कभी भी पूरे सदस्य नहीं रहे और हमेशा तीन-चार सदस्यों (चेयरमैन सहित) के साथ ही आयोग का काम चलता रहा।

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मजे की बात यह है कि रिटायरमेंट का तो पहले से तय होता है

संविधान के प्रावधान के तहत राज्य लोक सेवा आयोग में पदस्थापना से 6 साल तक या अधिकतम 62 साल की उम्र तक कार्य करने का प्रावधान है। वहीं संघ लोक सेवा आयोग में यह अधिकतम उम्र 65 साल है। यानी नियुक्त सदस्य कब तक आयोग में काम करेगा, यह पहले दिन से ही तय होता है। इसके बाद भी सरकार द्वारा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए कभी भी समय पर फाइल नहीं चलाई जाती।

सदस्य बनने के लिए खास योग्यता भी कोई जरूरत नहीं

संविधान के प्रावधान के तहत देखें तो सदस्य के लिए विशेष योग्यता भी नहीं है। केवल आधे से अधिक सदस्य दस साल तक केंद्र या राज्य सरकार के अधीन काम किए हुए होने चाहिए। साथ ही इसमें ज्यूडिशरी सेवा वाले भी हो सकते हैं। बस वह लाभ के पद पर नहीं हो।

बाकी सदस्यों के लिए तो यह भी अनिवार्यता नहीं है। यानी आयोग के लिए सदस्य चुनना कोई बड़ी बात नहीं है। मप्र में हजारों की संख्या में लोकसेवक मौजूद हैं, ज्यूडीशरी सेवा वाले भी हैं, इसके साथ ही प्रोफेसर सहित कई ऐसे योग्य लोग मौजूद हैं जिन्हें सदस्य बनाया जा सकता है। इनकी नियुक्ति मप्र शासन की अनुशंसा पर राज्यपाल के जरिए की जाती है। एक बार नियुक्त हो चुके सदस्य की दूसरी बार नियुक्ति नहीं होती है।

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बीते 20 सालों में केवल इनकी हुई नियुक्ति

  • 2006 में- शोभा पैठणकर

  • 2007- प्रकाश भर्तुनिया

  • 2012- विपिन ब्योहर, एनके तनेजा, एसपी गौतम

  • 2016- भास्कर चौबे

  • 2017- आरएल मेहरा, सीमा शर्मा

  • 2019- चंद्रशेखर रायकवार

  • 2020- देवेंद्र सिंह मरकाम और रमन सिंह सिकरवार

  • 2021- डॉ. कृष्णकांत शर्मा

  • 2024- नरेंद्र कोष्ठी

जानें क्यों जरूरी है आयोग में सभी सदस्य

आयोग में बाकी प्रशासनिक काम तो चलते रहते हैं, भले ही सभी पांच लोग पूरे हों या नहीं। लेकिन इनकी सबसे अहम जरूरत इंटरव्यू के लिए होती है। किसी भी इंटरव्यू के लिए इसमें आयोग के एक सदस्य की उपस्थिति होना अनिवार्य होती है।

यदि चेयरमैन सहित चारों सदस्य होते हैं तो कुल पांच बोर्ड सदस्य बन सकते हैं। लेकिन जैसे अभी केवल तीन लोग हैं, तो बोर्ड तीन ही बन सकते हैं। औसतन एक बोर्ड में हर दिन 15 अभ्यर्थियों के इंटरव्यू हो सकते हैं, यानी जो इंटरव्यू हर दिन 70-80 के हो सकते थे, वह अब केवल 50 तक ही सीमित हो जाएंगे। यानी इंटरव्यू की प्रक्रिया लंबी चलेगी, इसके चलते प्रक्रिया में देरी होगी।

अभी यह सभी इंटरव्यू होना है, जिसके लिए तारीख नहीं तय हो रही

अभी वर्तमान में राज्य सेवा परीक्षा 2023 के इंटरव्यू 7 जुलाई से शुरू हुए हैं। इसमें 800 उम्मीदवार के इंटरव्यू होने हैं, यानी पांच बोर्ड होने पर जो प्रक्रिया 15 दिन में पूरी हो सकती थी, वह अब 40 दिन से ज्यादा में पूरी होगी। यानी तब तक बाकी इंटरव्यू रुके रहेंगे।

  • अभी असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2022 के कई विषयों के इंटरव्यू बाकी हैं।
  • सहायक संचालक ग्रामोद्योग तकनीकी के इंटरव्यू शेड्यूल तय नहीं।
  • राज्य सेवा परीक्षा 2024 के इंटरव्यू 18 अगस्त से होंगे।
  • फिर असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2024 के भी इंटरव्यू होने हैं, जो लंबे चलते हैं।
  • ग्रंथपाल परीक्षा 2022 के इंटरव्यू बाकी हैं, क्रीड़ा अधिकारी 2022 के भी बाकी हैं।
  • चिकित्सा अधिकारी 2024 के भी होने हैं।

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