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INDORE. दिल्ली ब्लास्ट के आतंकवादियों के अल फलाह यूनिवर्सिटी से तार जुड़े हैं। इस यूनिवर्सिटी का संचालन एक ट्रस्ट के जरिए किया जाता है। यह ट्रस्ट एक समय महू में रहने वाले जवाद अहमद सिद्दीकी ने स्थापित किया है।
सिद्दीकी के महू के होने के खुलासे के बाद मध्यप्रदेश पुलिस में हड़कंप मच गया है। सिद्दीकी पेशे से इंजीनियर है। वह करोड़ों की धोखाधड़ी में तिहाड़ जेल में भी बंद हो चुका है। इसके फिलहाल दुबई में छिपे होने की बात कही जा रही है।
सिद्दीकी की इस तरह से हुई शुरुआत
सिद्दीकी के पिता मोहम्मद हम्माद कभी महू के शहर काजी हुआ करते थे। उनकी तीन संतानें हुईं। इनमें जवाद सबसे बड़ा बेटा था। दूसरा बेटा हमूद और तीसरा बेटा मोहम्मद अरफान था। अरफान विदेश भाग गया और फिर नहीं लौटा। उनका तीन मंजिला मकान महू के पत्ती बाजार मोहल्ला में है।
यह वही एरिया है, जहां हाल ही में महू में देर रात उपद्रव हुआ था। बताया जाता है कि एक समय बैंक में कुर्क हुआ यह मकान कहने को तो खाली है, लेकिन इसमें कुख्यात हिस्ट्रीशीटर माजिद चमड़ेवाला रहता है।
वैष्णव इंजीनियरिंग कॉलेज से जुड़ा
जवाद ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। शुरू से ही फितरती जवा इंदौर के वैष्णव पॉलिटेक्निक कॉलेज में शिक्षक बन गया था। बाद में प्रबंधन ने नौकरी से निकाल दिया था।
इसके बाद उसने महू में अल फलाह इन्वेस्टमेंट और अल फहद इन्वेस्टमेंट नाम से चिटफंड कंपनियां खोलीं थी। इस कंपनी से वह धोखाधड़ी में उतर गया था। बाद में जब वह इसमें घिरने लगा तो 50 करोड़ से ज्यादा की धोखाधड़ी कर 2000 में वह महू से परिवार सहित भाग गया था।
मुंबई ब्लास्ट 1993 के बाद चिटफंड में खेल
सूत्रों के अनुसार, साल 1993 के दौरान, जब देश में मुंबई सीरियल ब्लास्ट हुआ था। इसी दौरान जवाद अहमद सिद्दीकी महू में अल-फलाह चिटफंड कंपनी चला रहा था।
पिता काजी थे, इसलिए समाज में साख थी। ऐसे में लोग इससे तत्काल जुड़ने लगे। सिद्दीकी ने लोगों को रुपए दोगुना-तिगुना करने का लालच दिया था। इस तरह उसने करोड़ों जमा कर लिए थे।
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दिल्ली में चार सौ बीसी का केस, जेल गया
नई दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन में उस पर और उसके भाई के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इस एफआईआर संख्या 43/2000 में आईपीसी की धारा 420, 409, 406, 468, 471 और 120बी लगाई गई है।
एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि जवाद अहमद सिद्दीकी अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक थे। साथ ही, सऊद अहमद सिद्दीकी इसके निदेशकों में से एक थे। उन्होंने कथित तौर पर एक आपराधिक साजिश को आगे बढ़ाया। साथ ही,बड़ी संख्या में निवेशकों को अपनी कंपनियों में जमा करने के लिए प्रेरित किया।
गबन की राशि लगभग 7.5 करोड़ रुपए बताई गई थी। सिद्दीकी बंधु इसमें जेल गए और तिहाड़ में रहे। यह फर्जीवाड़ा निवेशकों के फर्जी दस्तावेज, साइन आदि के जरिए हुआ।
महू से कमाए रुपए से ही रखी यूनिवर्सिटी की नींव
बताया जाता है कि महू में ठगी से राशि कमाई थी। उसी से सिद्दीकी ने फरीदाबाद में अस्पताल और अल फलाह यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी। आतंकी गतिविधियों में पकड़े गए डॉ. मुजम्मिल शकील और उमर नबी मोहम्मद इसी यूनिवर्सिटी के छात्र थे।
यूनिवर्सिटी को संचालित करने वाला अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट उसी जवाद अहमद सिद्दीकी ने स्थापित किया था। यह फिलहाल ट्रस्ट का अध्यक्ष और कुलाधिपति बताया जाता है।
जावद बनना चाहता था अधिकारी, पीएससी इंटरव्यू दिए
यह भी जानकारी सामने आई है कि जवाद ने जीएसआईटीएस से इंजीनियरिंग की थी। वह अधिकारी बनना चाहता था। उसने पीएससी सिविल सर्विस की तैयारी की थी। साथ ही, तीन बार इंटरव्यू भी दिया था, लेकिन सफल नहीं हो सका।
जवाद का मुनीम, खालिक बाऊजी भी इसी राह पर निकला था। महू में उसने अपना काम संभाला और एक बोन क्रशर प्लांट खोला, फिर गोल्डन पब्लिक स्कूल महू में खोला। बाद में इंदौर में एक शोरूम भी खोला था।
बताया जाता है कि साल 1990 के करीब खालिक की सुपारी छोटा राजन को मिली थी। तब उसे किडनैप किया गया था, लेकिन बाद में वह छूट गया था। अब वह मंडलेश्वर के पास कहीं रहता है।
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