दिल्ली ब्लास्ट में लिंक जवाद सिद्दीकी के मकान को सीधे तोड़ा क्यों नहीं, महू कैंट बोर्ड कठघरे में

दिल्ली ब्लास्ट मामले में जवाद सिद्दीकी के मकान को तोड़ने पर सवाल उठे हैं। महू कैंट बोर्ड ने इस पर नोटिस जारी किया था। वहीं, अब मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया है।

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Sanjay Gupta
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INDORE. दिल्ली ब्लास्ट मामले में अल फलाह यूनिवर्सिटी का ट्रस्ट जुड़ा हुआ है। ट्रस्ट के साथ महू के जवाद अहमद सिद्दीकी का भी लिंक सामने आया है। अब महू प्रशासन और पुलिस अपनी छवि सुधारने में जुटी हैं। वहीं, इसी मामले में महू कैंट बोर्ड की नोटिस कार्रवाई सवालों के घेरे में आ चुकी है। वहीं सालों से वारंटी उसके भाई हमूद को भी अब धोखाधड़ी में गिरफ्तार किया गया है। इसके पहले वह 25 सालों से फरार था और महू पुलिस चुप थी।

क्या किया बोर्ड ने

बोर्ड ने 19 नवंबर को सिद्दीकी के मकान को तोड़ने का नोटिस दिया था। इसमें तीन दिन में कार्रवाई की बात कही गई थी। इस नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट में अब्दुल माजिद ने वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागड़िया के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें शुक्रवार, 21 नवंबर को आदेश जारी हुआ और स्टे हो गया है।

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स्टे लंबा मिला है, 15 दिन का नहीं

पहले यह जानकारी आ रही थी कि स्टे 15 दिन का है। वहीं, यह इससे अधिक समय का है। लिखित आदेश में है कि याचिकाकर्ता आदेश से 15 दिन के भीतर दस्तावेज के साथ इस नोटिस का जवाब देगा। सुनवाई का उचित अवसर देकर तर्कपूर्ण आदेश दिया जाएगा।

यह कार्रवाई होने के बाद यदि आदेश याचिकाकर्ता के खिलाफ आता है तो दस दिन तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी। यानी 15 दिन में जवाब याचिकाकर्ता देगा। फिर आदेश तोड़ने का आदेश आता है तो कम से कम 10 दिन तक और कार्रवाई नहीं होगी। यानि आदेश विपरीत हुआ तो वह फिर एक बार हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकेगा।

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महू बोर्ड का नोटिस क्यों सवालों में

1- महू बोर्ड ने हाईकोर्ट में जवाब दिया कि याचिकाकर्ता को पूर्व में नोटिस दिया गया था। वहीं, सामने वरिष्ठ अधिवक्ता बागड़िया ने बताया कि नोटिस इससे पहले 23 नवंबर 1996 को दिया गया था। ऐसे में 29 साल बाद नोटिस का क्या तर्क है।

2- महू बोर्ड ने 23 नवंबर 1996 को अवैध निर्माण के खिलाफ कारण बताओ नोटिस दिया था। फिर 2 दिसंबर 1996 को धारा 185 का नोटिस दिया था। अंततः 27 मार्च 1997 को मकान तोड़ने का आदेश धारा 256 में दे दिया गया था, तो मकान तोड़ा क्यों नहीं?

3- सवाल यह है कि महू बोर्ड को मकान तोड़ना था, तो क्यों 3 दिन का समय दिया गया। अगर पहले से नोटिस था, तो इसे तुरंत तोड़ा जा सकता था। 24 घंटे का समय देकर इसे तुरंत तोड़ देना चाहिए था।

4- फिर सवाल 28 साल तक महू बोर्ड क्यों सोया रहा? इस बात को लेकर हाईकोर्ट में शासकीय अधिवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता के बीच बहस भी हुई। शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि इन्होंने 28 सालों में जवाब नहीं दिया, ये कहां थे? तब वरिष्ठ अधिवक्ता ने भी कहा कि यह नोटिस देकर क्यों भूल गए, ये कहां थे? इस पर दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई।

5- यदि महू कैंट बोर्ड उचित समय का नोटिस देकर तोड़ने की बात कह रहा है तो फिर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन क्यों नहीं हुआ? वहीं, यदि पुराने नोटिस पर कार्रवाई की बात करना चाहता है तो फिर सीधे 24 घंटे में तोड़ा क्यों नहीं? जबकि सभी को पता है कि सिद्दीकी आतंकवादी गतिविधियों में लिंक हुआ है और ईडी ने भी केस दर्ज कर छापे मारे हैं। पहले ही वारंट थे और फरार थे। फिर बोर्ड और महू पुलिस इतने सालों से कर क्या रही थी?

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जवाद सिद्दीकी हिबा कर चुके मकान

यह मकान मूल रूप से जवाद सिद्दीकी के पिता का था, जो शहर काजी थे। पिता ने जवाद को हिबा (दान) किया था। इसके बाद जवाद ने सालों पहले यह अपने यहां काम करने वाले अब्दुल माजिद को हिबा कर दिया। जब नोटिस दोबारा मिला तो माजिद ने केस दायर किया था।

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सालों पुराने केस में महू पुलिस चुप रही

इसके पहले महू पुलिस ने जवाद के भाई हमूद को पुराने केस में हैदराबाद से गिरफ्तार किया था। जबकि यह चिटफंड और आर्थिक फ्रॉड के केस साल 2000 और इससे पहले के हैं। वहीं, महू पुलिस ने कभी सक्रियता नहीं दिखाई। अब दिल्ली ब्लास्ट में लिंक निकलने के बाद पुलिस जागी और हमूद को पकड़ा।

आरोप है कि हमूद ने चिटफंड कंपनी खोलकर पैसा दोगुना करने का झांसा दिया। महू थाने के टीआई कमल सिंह गेहलोद ने बताया कि साल 2000 में जवाद ने अपने भाई हमूद के साथ मिलकर उसी के नाम पर चिटफंड कंपनी खोली थी।

लोगों को पैसा दोगुना करने का लालच देकर इसमें निवेश कराया था। इसके बाद सारा पैसा लेकर दोनों भाई परिवार समेत महू से भाग निकले थे। अभी हमूद हैदराबाद में रिचकॉम प्राइवेट लिमिटेड के नाम से शेयर मार्केट में निवेश फर्म चला रहा था।

इंदौर ग्रामीण एसपी यांगचेन डोलकर भूटिया का कहना है कि हमूद के खिलाफ महू थाने में साल 2000 में धोखाधड़ी के तीन केस दर्ज किए गए थे। इसके अलावा 1988 में मारपीट और जान से मारने की कोशिश की धाराओं में भी केस दर्ज थे। हमूद पर 10 हजार रुपये का इनाम घोषित था।

हमूद ने 1995 और 1996 में अल-फहद फिनकॉम नाम से निवेश कंपनी खोली थी। इसमें जवाद और हमूद डायरेक्टर थे। इनकी पत्नियां भी इसमें शामिल थीं। करीब दो साल कंपनी चलाई। इसके बाद पैसा लेकर फरार हो गए।

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