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जमीन अधिग्रहण के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने शासन की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई है। जस्टिस जी.एस. आहलूवालिया ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि अपील दायर करने में हुई देरी के तथ्य “चौंकाने वाले” हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे विभागीय अधिकारी जानबूझकर यह सुनिश्चित कर रहे थे कि अपील समयसीमा में दायर न हो, ताकि इसका लाभ विपक्षी पक्षकारों को मिल सके। मामले में कोर्ट ने जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
कार्यपालन यंत्री की भूमिका संदिग्ध
मामला हरसी उच्च स्तरीय नहर, संभाग क्रमांक-1 डबरा से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए पाया कि कार्यपालन यंत्री (ईई) ने अपील की प्रक्रिया को जानबूझकर टालते हुए पहले एक वर्ष तक निर्णय की प्रमाणित प्रति तक नहीं मांगी। जबकि 26 जुलाई 2022 को जमीन अधिग्रहण पर आदेश पारित हो गया था, परंतु अपील दायर करने की अनुमति 13 अगस्त 2023 को ही ली गई। इसके बाद भी आदेश की प्रमाणित प्रति लेने के लिए 8 जुलाई 2024 तक इंतजार किया गया और प्रति मिलने के बाद भी अपील दाखिल करने में 11 महीने का समय और बर्बाद कर दिया गया। अंततः अपील 18 जून 2025 को पेश हो सकी।
हाईकोर्ट ने अपर मुख्य सचिवसे मांगा शपथपत्र
कोर्ट ने इस विलंब को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार से सवाल किया कि क्या सचमुच राज्य जानबूझकर ऐसी अपीलें समयसीमा से बाहर दायर कर रहा है ताकि उन्हें गुण-दोष के आधार पर नहीं, बल्कि देरी के आधार पर ही खारिज किया जा सके। इस पर शासन की ओर से पेश अधिवक्ता अवस्थी ने सफाई दी कि ऐसी कोई मंशा नहीं है। हालांकि, अदालत ने पाया कि आवेदन में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि कार्यपालन यंत्री और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई हुई या नहीं।
इसी आधार पर जस्टिस आहलूवालिया ने जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा को आदेश दिया कि वे दो सप्ताह के भीतर शपथपत्र दायर करें। इसमें यह स्पष्ट करें कि अपील दाखिल करने में देरी के लिए जिम्मेदार कार्यपालन यंत्री व अन्य अधिकारियों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई है। यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई है तो अपर मुख्य सचिव को यह बताना होगा कि क्यों वे इस तरह की लापरवाही और प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर 2025 को होगी।
तीन साल में अपील दाखिल करने की कहानी
ग्वालियर जिला कोर्ट के द्वारा 26 जुलाई 2022 को जमीन अधिग्रहण पर आदेश पारित हुआ। इसके बाद 13 अगस्त 2023 को विधि विभाग से अपील की अनुमति मिली। 8 जुलाई 2024 को आदेश की प्रमाणित प्रति लेने आवेदन किया गया। फिर 11 जुलाई 2024 को प्रमाणित प्रति मिल गई। आखिरकार 18 जून 2025 को तीन साल बाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल हो सकी।
मुआवजा विवाद की जड़
असल विवाद जमीन अधिग्रहण मुआवजे का है। भू-अर्जन अधिकारी ने आवेदकों की जमीन को असिंचित मानते हुए मुआवजा तय किया था। लेकिन अदालत ने इसे सिंचित भूमि मानते हुए उचित मुआवजा देने का आदेश दिया। इसी आदेश के खिलाफ शासन ने देर से अपील की है।
हाईकोर्ट के मुताबिक यह समय-सीमा और देरी की प्रक्रिया बताती है कि अधिकारियों ने गंभीर लापरवाही की है। अदालत ने अब साफ कर दिया है कि इस पूरे मामले में विभागीय जिम्मेदारी तय होगी और अपर मुख्य सचिव को सीधे जवाब देना होगा।
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