मध्य प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति का एक और शर्मनाक मामला पाटन सिविल अस्पताल में सामने आया है। 108 एंबुलेंस सेवा, जो आपातकालीन स्थिति में मरीजों की जान बचाने के लिए जानी जाती है, अब सवालों के घेरे में है। एक गंभीर घटना के दौरान, एंबुलेंस चालक का नशे में होना और मरीज के परिजनों से पैसे मांगना न केवल सेवा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि सरकारी व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करता है।
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सिविल अस्पताल पाटन का मामला
सूरज चक्रवर्ती अपनी बीमार बेटी को लेकर पाटन सिविल अस्पताल पहुंचे थे। अस्पताल में डॉक्टरों ने प्राथमिक इलाज के बाद बच्ची को बेहतर उपचार के लिए जबलपुर रेफर कर दिया। डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने 108 एंबुलेंस सेवा को कॉल किया। थोड़ी देर में एंबुलेंस अस्पताल परिसर में पहुंची, लेकिन जब सूरज चक्रवर्ती ने चालक से बात की तो उन्हें महसूस हुआ कि चालक नशे में है। मरीज की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें पहले ही मानसिक तनाव था, और ऐसे में एंबुलेंस चालक की स्थिति ने उन्हें और परेशान कर दिया।
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शराबी चालक ने की शर्मनाक हरकतें
नशे में धुत चालक ने मरीज के पिता से पैसों की मांग शुरू कर दी। जब सूरज चक्रवर्ती ने पैसे देने से इनकार किया और स्थिति की शिकायत अस्पताल प्रशासन से की, तो चालक ने वहां मौजूद गार्ड शुभम यादव के साथ अभद्रता करनी शुरू कर दी। शुभम ने चालक को शांत करने और स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन नशे में होने के कारण चालक ने और ज्यादा गाली-गलौज करना शुरू कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम ने अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी मचा दी।
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तेज रफ्तार में एंबुलेंस लेकर चालक फरार
अस्पताल प्रशासन ने स्थिति को संभालने की पूरी कोशिश की। अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारियों ने मिलकर चालक को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने किसी की बात नहीं सुनी। इसके बाद एंबुलेंस चालक एंबुलेंस लेकर अस्पताल परिसर से फरार हो गया । इस दौरान मौजूद मरीज और उनके परिजनों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। अस्पताल प्रबंधन ने तुरंत अधिकारियों को घटना की सूचना दी और मरीज के लिए दूसरी एंबुलेंस का इंतजाम किया। बताया जा रहा है कि यह एंबुलेंस शाहपुरा इलाके की थी।
अस्पताल के गार्ड परिजनों ने बताई आपबीती
शुभम यादव जो अस्पताल में बतौर गार्ड कार्यरत हैं, उन्होंने घटना की पूरी जानकारी दी। शुभम के अनुसार, “ एंबुलेंस चालक परिजनों से रुपयों की मांग कर रहा था । मैंने एंबुलेंस चालक को समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह न केवल गाली-गलौज करने लगा, बल्कि मुझसे झगड़ने पर उतारू हो गया। इसके बाद भी जब एंबुलेंस चालक नहीं माना तो मैंने उसे दो-तीन झापड़ भी लगाए। इसके बाद एंबुलेंस चालक एंबुलेंस लेकर वहां से भाग गया । मरीज की हालत को देखते हुए मैंने तुरंत दूसरी एंबुलेंस का प्रबंध करने के लिए कहा।” वहीं, पीड़ित के पिता सूरज चक्रवर्ती ने कहा, “ऐसी सरकारी सेवाओं पर भरोसा करना मुश्किल हो गया है। मेरे बेटे की हालत गंभीर थी। उसे जबलपुर रेफर किया गया था जिसके लिए एंबुलेंस मंगवाई गई थी । लेकिन चालक ने शराब पी रखी थी और इस बात पर उसे डॉक्टर ने भी डांटा था जिसके बाद चालक तेजी से एंबुलेंस लेकर वहां से भाग गया जिस समय भी कोई दुर्घटना हो सकती थी और इस घटना ने हमारी परेशानी को और बढ़ा दिया। जिम्मेदारों को इस पर सख्त कदम उठाना चाहिए।”
पाटन के मामले को सीएमएचओ बता रहे कटंगी का
इस मामले में पाटन सीएससी के गार्ड सहित परिजनों के भी बयान सामने आए हैं हालांकि जब मीडिया ने सीएमएचओ संजय मिश्रा से सवाल किया तो उन्होंने इस मामले को कटंगी का बताया। सीएमएचओ संजय मिश्रा ने बताया कि कटंगी अस्पताल से यह मामला सामने आया था। जब 108 एंबुलेंस एक बच्चे को लेने के लिए पहुंची थी। एंबुलेंस के चालक संदीप ने शराब पी हुई थी। अस्पताल में मौजूद गार्ड और परिजनों ने इस बात का विरोध किया जिसके बाद चालक वाहन से भाग गया। आरोपी एंबुलेंस चालक संदीप को तत्काल प्रभाव से नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। संजय मिश्रा ने कहा कि 108 एंबुलेंस एक आकस्मिक में चिकित्सा सुविधा है और इस तरह की लापरवाही बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी, जिस तरह पहले भी कुछ ड्राइवर सहित एक ईएमटी को भी सेवा से हटाया जा चुका है और यदि इस तरह की कोई भी शिकायत प्राप्त होती है तो तत्काल इसी तरह कार्यवाही की जाएगी।
सरकारी सेवाओं पर खड़ा हुआ सवाल
इसके पहले भी कमीशन के चक्कर में मरीजों को निजी अस्पताल में भेजने की घटना सामने आ चुकी है। अब यह घटना 108 एंबुलेंस सेवा की कार्यशैली और उसके प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करती है। एंबुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाओं में कार्यरत चालकों की जिम्मेदारी मरीज की जान बचाने की होती है। लेकिन नशे में धुत चालक और पैसे की मांग जैसी घटनाएं इस सेवा की गुणवत्ता और संचालन पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। क्या इन चालकों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है? क्या इन्हें काम पर रखने से पहले उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का सही मूल्यांकन किया जाता है? इन सवालों का जवाब देना सरकार और संबंधित विभागों की जिम्मेदारी बनती है।
यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा को उजागर करती है। पाटन सिविल अस्पताल के इस मामले ने न केवल सरकारी सेवाओं की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि मरीजों की सुरक्षा के प्रति बरती जा रही लापरवाही को भी उजागर कर दिया है। प्रशासन को ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए न केवल सख्त कार्रवाई करने बल्कि आपातकालीन सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों की निगरानी और प्रशिक्षण पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
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