एमपी में ई-अटेंडेंस से रुकेगा काल्पनिक कर्मचारियों के नाम पर फर्जी वेतन भुगतान

मध्यप्रदेश में ई-अटेंडेंस व्यवस्था सरकार की मंशा के बावजूद सफल नहीं हो रही है। कर्मचारी वर्ग इस व्यवस्था के विरोध में है। वेतन में कटौती के बाद कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है। नगरीय निकायों में यह व्यवस्था कमजोर साबित हो रही है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL.मध्यप्रदेश सरकार की मंशा के बावजूद विभागों में ई-अटेंडेंस व्यवस्था सफल नहीं हो पा रही है। ऑनलाइन उपस्थिति के प्रयासों को कर्मचारी वर्ग ही पलीता लगाने में जुटा है। हालांकि वेतन में कटौती से विभागों में ई-अटेंडेंस लगाने वाले कर्मचारियों का आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। अब भी हजारों कर्मचारी इससे बचने की कोशिश कर रहे हैं।

नगरीय निकायों में ई-अटेंडेंस की स्थिति सबसे कमजोर है। प्रदेश के बड़े नगर निगम के अलावा नगरपालिका और नगर परिषद में भी अब तक यह आंकड़ा 60 फीसदी पहुंच सका है। अधिकारियों की कोशिशें कर्मचारियों के असहयोग और विरोध के कारण सफल नहीं हो पा रही हैं।

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ई-अटेंडेंस अनिवार्य

मध्य प्रदेश सरकार ने सभी विभागों और नगरीय निकायों में ई-अटेंडेंस अनिवार्य कर दी है। अब कर्मचारियों का वेतन इसी व्यवस्था पर आधारित है। ऑनलाइन उपस्थिति में चूक और समय पर काम पर न पहुंचने पर वेतन में कटौती हो रही है। 

इसके बावजूद अधिकारी और कर्मचारी ई-अटेंडेंस का विरोध कर रहे हैं। नगरीय निकायों में स्थिति सबसे खराब है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर नगर निगमों में ऑनलाइन उपस्थिति 60 से 65 फीसदी तक है। इसका कारण नगरीय निकायों में आउटसोर्स अमले की अधिकता है।

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अब भी 60 फीसदी ही ई-अटेंडेंस 

आउटसोर्स होने की वजह से कर्मचारियों की संख्या लगातार बदलती रहती है। इस वजह से फेस रिकॉग्निशन के आधार पर उपस्थिति की व्यवस्था में भी बदलाव करना पड़ता है। इंदौर नगर निगम में कर्मचारियों की संख्या 25,445 है। लेकिन एक माह से जारी सख्ती के बावजूद 13,600 कर्मचारियों ने ही ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करना शुरू किया है।

इससे मिलती-जुलती स्थिति भोपाल नगर निगम की है। यहां कर्मचारियों की संख्या तो 19,996 है, लेकिन 12,500 ही ई-अटेंडेंस लगा रहे हैं। जबलपुर नगर निगम में 8,782 में से केवल 5,400 की ऑनलाइन उपस्थिति हो रही है। वहीं ग्वालियर नगर निगम में दर्ज 8070 कर्मचारियों में से केवल 5,969 ही फेस रिकॉग्निशन सिस्टम पर नियमित दर्ज हो रहे हैं। 

वेतन के गोलमाल पर हो रही कसावट 

नगरीय निकायों में आउटसोर्स कर्मचारियों के नाम पर वेतन का फर्जीवाड़ा कई बार सामने आ चुका है। निगम या नगरपालिकाओं में जनप्रतिनिधि और अधिकारियों की साठगांठ से काल्पनिक नामों पर भी वेतन भुगतान होता रहा है। जितनी संख्या में कर्मचारी निकायों में दर्ज होते हैं। वास्तव में उतनी संख्या में जमीनी स्तर पर नजर ही नहीं आते। फेस रिकॉग्निशन उपस्थिति व्यवस्था से इस धांधली पर कसावट की शुरुआत हो गई है। 

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कर्मचारियों की मनमानी पर अंकुश 

नई व्यवस्था के प्रभावी होने के बाद भोपाल नगर निगम के कर्मचारियों का आधा वेतन कट चुका है। ऑफलाइन उपस्थिति और आधार बेस उपस्थिति के चलते अब तक कई कर्मचारी बिना काम के ही वेतन ले रहे थे। अपने संपर्कोँ के सहारे ये कर्मचारी उपस्थिति दर्ज करने के बाद गायब हो जाते थे। लेकिन, उन्हें वेतन पूरा मिल जाता था। फेस रिकॉग्निशन सिस्टम के कारण अब वे कर्मचारी ही वेतन ले पाएंगे जो वास्तव में काम कर रहे हैं। 

उजागर हो जाएगी वेतन की धांधली 

नगरीय प्रशासन विभाग के आदेश के बाद नगरीय निकायों में फेस रिकॉग्निशन से ई-अटेंडेंस की व्यवस्था लागू की गई। सभी निकायों को इसी माह से वेतन इसी सिस्टम से जारी करना है। इस व्यवस्था के बाद भोपाल नगर निगम में पांच हजार कर्मचारियों की गड़बड़ी सामने आई है। अब प्रदेश के अन्य नगर निगमों और नगर पालिकाओं में भी काल्पनिक नामों से वेतन हड़पने का खुलासा हो सकता है।

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पांच बड़े निकायों में कर्मचारियों की स्थिति 

निकायपंजीकृतई अटेंडेंस
इंदौर2544513613
भोपाल1999612495
जबलपुर87825446
ग्वालियर80705969
उज्जैन49163957

क्या बोले नगर निगम भोपाल के अपर आयुक्त

नगर निगम भोपाल के अपर आयुक्त वरुण अवस्थी ने कहा कि नगरीय प्रशासन विभाग के आदेश पर फेस रिकॉग्निशन व्यवस्था शुरू की गई है। इस व्यवस्था में कर्मचारी को काम के दिनों के हिसाब से सैलरी मिलेगी। इससे कामकाज में पारदर्शिता आएगी। जो कर्मचारी असल में काम कर रहे हैं, उन्हें नहीं हटाया गया है। यह व्यवस्था अभी प्रारंभिक चरण में है। जल्द ही इससे सुधार सामने आएंगे।

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