मप्र में 12 साल बाद भी ' मुहूर्त ' नहीं, फिर टले सहकारिता के चुनाव

मध्य प्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव सरकार ने एक बार फिर टाल दिए। अब समितियों के पुनर्गठन का हवाला देकर चुनाव आगे बढ़ाए गए हैं।

author-image
Ravi Awasthi
New Update
cooprative
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

भोपाल।
मध्यप्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव पिछले 12 वर्षों से लंबित हैं। अब एक बार फिर इन चुनावों को टाल दिया गया है। सरकार ने समितियों के पुनर्गठन की प्रक्रिया का हवाला देकर चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है।

सहकारिता विभाग की योजना अनुसार, हर पंचायत में एक नई साख सहकारी समिति गठित की जानी है। राज्य में परीक्षण के बाद करीब 650 नई समितियां बनाए जाने का निर्णय लिया गया है, लेकिन अब तक सिर्फ 189 समितियों का गठन ही पूरा हुआ है।

यह भी पढ़ें.. घोटालों से खोखले हुए सहकारी बैंक, घपलेबाजों की मौज

2013 के बाद नहीं हुए चुनाव

प्रदेश की 4,500 से अधिक सहकारी समितियों के चुनाव अंतिम बार 2013 में कराए गए थे, जिनका कार्यकाल 2018 में समाप्त हो गया। नियमानुसार चुनाव प्रक्रिया कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पूर्व शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन राजनीतिक कारणों, विधानसभा चुनाव, और किसान कर्जमाफी जैसी वजहों से चुनाव बार-बार टलते रहे।

यह भी पढ़ें..  सहकारी बैंकों की मजबूती के लिए 300 करोड़ की आर्थिक मदद, मगर क्यों…

न्यायिक दबाव और फिर भी टालमटोल

इस मुद्दे पर जबलपुर और ग्वालियर हाई कोर्ट की खंडपीठों में याचिकाएं दाखिल हुईं, जिसके बाद राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण ने मई से सितंबर 2025 के बीच चुनाव कराने का कार्यक्रम घोषित किया था। लेकिन अब सरकार फिर से अदालत पहुंची और नई समितियों के गठन की अधूरी प्रक्रिया का हवाला देते हुए चुनाव टालने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

यह भी पढ़ें..  हाई कोर्ट में पहली बार पहुंचा ऐसा अजीब मामला... 20 साल की बेटी का होगा DNA टेस्ट

चुनाव नहीं होने से विपक्ष भी हमलावर

इस मुद्दे को लेकर विपक्ष भी हमलावर है। दो दिन पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सीएम डॉ मोहन यादव को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को उनके अधिकार से वंचित कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार सहकारी संस्थाओं को चुनाव के माध्यम से किसानों के हाथों में सौंपने से कतरा रही है। उन्होंने मांग की कि आगामी तीन महीने में चुनाव कराकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल किया जाए।

यह भी पढ़ें.. जासूसी मामले में एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने उठाए सवाल, लगाए गंभीर आरोप

सहकारिता चुनावों को बार-बार टालना न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मूल स्तंभ किसानों को निर्णय की शक्ति से दूर रखने का संकेत भी है। अब देखना होगा कि सरकार अगले तीन महीनों में इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाती है या यह सिलसिला जारी रहता है।