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Photograph: (the sootr)
मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2024-25 के लिए छह जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों को कुल 300 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता देने का फैसला किया है। यह सहायता NABARD के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी। सहायता पाने वाले बैंकों में दतिया, शिवपुरी, रीवा, सतना, ग्वालियर और जबलपुर शामिल हैं, जिन्हें हर एक सहकारी बैंक को लगभग 50 करोड़ दिए जाएंगे।
सरकारी आदेश के अनुसार, यह योजना इन बैंकों की मौजूदा खराब वित्तीय स्थिति को सुधारने, उन्हें दिवालियापन से बचाने और उनकी स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाई गई है। साथ ही, प्रत्येक बैंक को अपने वित्तीय सुधार के लिए ‘मॉनिटरिएबल एक्शन प्लान’ तैयार करना अनिवार्य होगा, ताकि सहायता का सही और प्रभावी उपयोग हो सके।
बड़ा सवाल: आखिर क्यों…
जब ये बैंक लगातार वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं और खुद को स्थायी रूप से बचाने में असफल रहे हैं, तो क्या यह भारी भरकम सरकारी पैसा वाकई जनता के हित में खर्च हो रहा है? क्या यह रकम सिर्फ अस्थायी राहत देने के लिए है, या इससे बैंकों की जड़ें मजबूत होंगी?
क्या सहकारी बैंकों के प्रबंधन और संरचना में गंभीर बदलाव किए बिना बार-बार वित्तीय सहायता देना ही समाधान है? या फिर इस पैसे को ऐसे सिस्टम सुधारों में लगाया जाना चाहिए, जो लंबे समय तक इन बैंकों को स्वस्थ और टिकाऊ बना सकें?
निष्कर्ष:
जहां एक ओर सरकार और NABARD की इस आर्थिक मदद से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर यह चिंताजनक है कि अगर बैंकों का सिस्टम सुधार नहीं हुआ तो जनता का पैसा बार-बार बर्बाद हो सकता है। इस महत्वपूर्ण सवाल पर राज्य प्रशासन और वित्तीय विशेषज्ञों को गहराई से विचार करना होगा।
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