BHOPAL. मध्यप्रदेश में हजारों कर्मचारी नियुक्ति के बाद तीन साल की परीवीक्षा अवधि का विरोध कर रहे हैं। वहीं तीन साल तक 70, 80 और 90% वेतन देने के प्रावधान को खत्म न करने पर अब कोर्ट पहुंच गए हैं। कृषि, नगरीय प्रशासन, राजस्व, परिवहन, जल संसाधन विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास एवं जनजातीय कार्य विभाग के इन कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है।
कोर्ट ने सुनवाई के लिए याचिका स्वीकार कर ली है। ये कर्मचारी चार साल से लगातार मांग उठा रहे हैं और सरकार की बेरुखी देखते हुए उन्हें हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।
दरअसल मध्यप्रदेश में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने कर्मचारियों की परीवीक्षा अवधि को दो से बढ़ाकर तीन साल कर दिया था। इसके लिए 24 दिसम्बर 2019 को प्रकाशित गजट नोटिफिकेशन में संशोधित नियम लागू किए गए थे। जिसमें शासकीय सेवा में नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों को परीवीक्षा अवधि के पहले साल में 70, दूसरे साल में 80 और तीसरे साल में 90 फीसदी वेतन देने का प्रावधान है। इस नियम के कारण प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को नियुक्ति के चौथे साल में ही पूरा वेतन मिल पाता है।
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वहीं परीवीक्षा अवधि भी दो की जगह तीन साल कर दी गई है। तीन साल तक वेतनमान में होने वाली कटौती भी परीवीक्षा के बाद उन्हें नहीं दी जा रही है। कमलनाथ सरकार के इस नियम के विरोध में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान भी कर्मचारियों के पाले में उतरे थे लेकिन सीएम बनने के बाद वे भी इसे भूल गए। उनके बाद आई डॉ.मोहन यादव की सरकार में भी यह मांग उठती रही लेकिन कर्मचारियों को उनका हक नहीं मिल पाया।
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सरकार की बेरुखी देख पहुंचे हाईकोर्ट
कर्मचारियों ने सरकार द्वारा अपनी मांग को अनसुना किए जाने के बाद अब हाईकोर्ट की शरण ली है। प्रदेश के 13 सरकारी कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका पेश की है। इसकी सुनवाई पहले 7 जुलाई को होनी थी लेकिन अब इसे आने वाले दिनों में सुना जाएगा।
इस याचिका में मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव के साथ ही कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, वित्त विभाग, जल संसाधन विभाग, जनजातीय कार्य विभाग, आवास एवं पर्यावरण, परिवहन, जिला एवं सत्र न्यायालय मैहर, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और कौशल विकास संचालनालय को प्रतिवादी बनाया गया है।
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वेतन और परीवीक्षा विसंगति से नाराज
मध्यप्रदेश में बीते पांच साल में विभागों में नियुक्ति पाने वाले कर्मचारी समान कार्य के बदले में वेतन विसंगति को लेकर नाराज है। साल 2019 से पहले तक प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की परीवीक्षा अवधि दो साल की होती थी लेकिन कमलनाथ सरकार ने इसे तीन साल कर दिया था।
तत्कालीन सरकार ने परीवीक्षा अवधि में नवनियुक्त कर्मचारियों के लिए नया सैलरी स्लैब भी निर्धारित किया था। इससे कर्मचारियों को पहले तीन साल में 70, 80 और 90 फीसदी वेतन मिल रहा है। इस नियम के कारण कर्मचारियों की परीवीक्षा अवधि के तीन साल भी सेवा पुस्तिका में भी नहीं जोड़े जा रहे हैं।
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हाईकोर्ट जबलपुर की शरण लेने वाले कर्मचारियों ने सरकार पर कर्मचारियों के हितों की अनदेखी का आरोप भी लगाया है। उनका कहना है कि सरकार छोटे कर्मचारियों के हितों को मार रही है। जहां एक ओर मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से शासकीय सेवा में आने वाले कर्मचारियों को नियुक्ति के पहले माह से ही शत-प्रतिशत वेतन मिल रहा है।
वहीं कर्मचारी चयन मंडल की भर्ती परीक्षा के जरिए शासकीय सेवा हासिल करने वाले कर्मचारियों के लिए तीन साल की परीवीक्षा अवधि में वेतन कटौती की जा रही है। इसका सीधा मतलब है कि सरकार कर्मचारियों के ओहदे देखकर भेदभाव कर रही है।
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ये है कर्मचारियों की मांग :
- कमलनाथ सरकार द्वारा दिसम्बर 2019 में लाए गए परीवीक्षा नियम को खत्म किया जाए।
- परीवीक्षा अवधि वापस तीन से घटाकर दो साल होनी चाहिए।
- परीवीक्षा में 70, 80 और 90 प्रतिशत वेतन के प्रावधान को बदलकर 100 फीसदी वेतन मिले
- ईएसबी और एमपीपीएससी की भर्ती परीक्षाओं से चयनित कर्मचारियों के लिए सेवा नियम समान हों
- परीवीक्षा अवधि को भी सेवा पुस्तिका में शामिल किया जाए
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