बिजली कंपनी को 8.50 करोड़ रुपए का चूना लगाने वाला एग्जीक्यूटिव इंजीनियर बर्खास्त

बिजली विभाग के एक प्रभारी कार्यपालन अभियंता ने फर्जी दस्तावेज बनाए। उन्होंने सीमेंट कंपनी को छूट दिलाने के लिए यह किया। इस धोखाधड़ी से मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी को 8 करोड़ 50 लाख रुपए का नुकसान हुआ।

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Neel Tiwari
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JABALPUR. मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड ने बड़ा प्रशासनिक कदम उठाया। सीमेंट कंपनी को अनुचित लाभ देने के लिए नकली दस्तावेज बनाने वाले एक्जीक्यूटिव इंजीनियर को बर्खास्त कर दिया है। 

कार्यपालन अभियंता मुकेश सिंह को 8 करोड़ 50 लाख रुपए के फर्जीवाड़े में दोषी पाए जाने पर बर्खास्त कर दिया गया। यह आदेश 16 दिसंबर 2025 को प्रबंध संचालक अनय द्विवेदी (आईएएस) ने जारी किया। इस आदेश से बिजली महकमे में हड़कंप मच गया।

सीमेंट कंपनी को छूट दिलाने का खेल

मुकेश सिंह 6 सितंबर 2018 से 14 जनवरी 2021 तक संचालन एवं संधारण संभाग शहडोल में पदस्थ थे। मेसर्स अल्ट्राटेक सीमेंट के 33 केवी उच्चदाब विद्युत कनेक्शन मामले में लाइन हैंडओवर की असली तारीख 5 मार्च 2019 को बदलकर 1 मार्च 2019 दर्शाई गई। यह बदलाव जानबूझकर किया गया ताकि उपभोक्ता को विद्युत शुल्क में छूट मिल सके। असली तारीख छूट अवधि के बाद की थी।

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कंपनी को लगा करोड़ों का चूना

इन्हीं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अल्ट्राटेक सीमेंट ने हाईकोर्ट जबलपुर में रिट याचिका क्रमांक 4333/2022 दायर की। कोर्ट ने 6 मई 2024 को शासन के खिलाफ निर्णय देते हुए कंपनी को 8.50 करोड़ रुपए का भुगतान 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित करने का आदेश दिया। इस फैसले से शासन को भारी वित्तीय झटका लगा। जिसके बाद पूरे प्रकरण की विभागीय जांच शुरू हुई।

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जांच में साबित हुए दोनों गंभीर आरोप

जांच में यह भी सामने आया कि एक ही कार्य के लिए दो अलग-अलग वर्क कंपलीशन और हैंडओवर प्रतिवेदन जारी किए गए थे। एक प्रतिवेदन 1 मार्च 2019 और दूसरा 5 मार्च 2019 का। दोनों दस्तावेजों पर मुकेश सिंह के ही हस्ताक्षर थे। लेकिन 1 मार्च वाला प्रतिवेदन पूरी तरह कूटरचित पाया गया। इसके अलावा अधीक्षण अभियंता को भी गलत जानकारी देकर वर्क कंपलीशन डेट बदलने की पुष्टि हुई। जांच अधिकारी पीके अग्रवाल ने दोनों आरोपों को पूरी तरह सही माना।

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जांच से बचने की कोशिश

मुकेश सिंह ने विभागीय जांच को लटकाने के लिए हर संभव प्रयास किया। कभी पत्नी और भाई के ई-मेल से मेडिकल लीव के आवेदन भेजे गए, तो कभी कंपनी के पत्र लेने से इनकार किया गया। अनुशासनिक प्राधिकारी, जांच अधिकारी और प्रस्तुतकर्ता अधिकारी पर लगातार आरोप लगाए गए, ताकि जांच आगे न बढ़ सके। विभाग ने इसे साफ तौर पर असहयोगात्मक और नियमों के दुरुपयोग वाला आचरण माना।

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जांच में दागदार रिकॉर्ड आया सामने

जांच के दौरान यह सामने आया कि मुकेश सिंह के खिलाफ 18 वर्षों में 20 कारण बताओ नोटिस और 4 आरोप पत्र जारी हो चुके थे। वर्तमान में दो अन्य विभागीय जांचें लंबित हैं। एक अन्य मामले में कंपनी को 45 लाख रुपए की क्षति पहुंचाने का आरोप भी है।

बर्खास्त हुआ आरोपी कर्मचारी

सभी तथ्यों और जांच निष्कर्षों पर विचार के बाद कंपनी ने कहा कि यह मामला लापरवाही का नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया फर्जीवाड़ा है। इस कारण मप्र सिविल सेवा नियम 1966 के तहत मुकेश सिंह को बर्खास्त कर दिया गया।

बिजली विभाग कर्मचारियों में हड़कंप

इस कार्रवाई को बिजली विभाग (बिजली कंपनी ) में एक नजीर के तौर पर देखा जा रहा है। यह फैसला उन अधिकारियों के लिए कड़ा संदेश है, जो नियमों को नजरअंदाज करके निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

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