फर्जी जाति-दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे सरकारी नौकरियों में घुसपैठ, ऐसे खुला सारा मामला

छतरपुर जिले में फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के सहारे शिक्षक बने 11 लोगों पर केस दर्ज होने के बाद अब शिक्षक भर्ती 2023 की नियुक्तियों की जांच की जा रही है। नियुक्ति के दौरान दस्तावेजों के सत्यापन की व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी नौकरी हासिल करने की धांधली एक बार फिर चर्चा में है। छतरपुर जिले में फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट के सहारे शिक्षक बनने वाले 11 लोगों पर अपराध दर्ज होने के बाद अब नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजों के सत्यापन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह केवल इकलौता मामला नहीं है। इससे पहले भी कई विभागों में फर्जी दिव्यांग और जाति प्रमाण पत्रों के सहारे नौकरी हासिल करने में मामले सामने आ चुके हैं।

यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर योग्य उम्मीदवारों को पीछे कर अपात्र नियुक्ति पाने में कामयाब हो जाते हैं। बार-बार मामले सामने आने के बाद भी सरकार विभागों में नियुक्ति प्रक्रिया और दस्तावेजों के सत्यापन की व्यवस्था को फूलप्रूफ नहीं कर पाई है।

जाति प्रमाण पत्र के बेहिसाब मामले सरकार की राज्य स्तरीय छानबीन समिति के सामने दो-दो साल से भी ज्यादा समय से अटके हुए हैं। दिव्यांग सर्टिफिकेट के सत्यापन के लिए विभाग की कार्रवाई महीनों तक मेडिकल बोर्ड से पत्राचार तक ही सीमित रहती है। प्रभावी व्यवस्था न होने का खामियाजा योग्य अभ्यर्थी उठा रहे हैं। 

शिक्षकों के फर्जीवाड़े से उठे सवाल

मध्य प्रदेश में फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी नौकरियां हथियाने के मामले सामने आ रहे हैं। छतरपुर जिले में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्रों के जरिए शिक्षक बने 16 संदेहियों की पहचान होने के बाद पुलिस ने 11 पर अपराध दर्ज कर लिया है। जबकि 5 शिक्षक कोर्ट की शरण लेने के कारण कार्रवाई से बच गए हैं। शिक्षक बनने के लिए नियुक्ति के दौरान पेश किए गए दिव्यांग सर्टिफिकेट का रिकॉर्ड संबंधित मेडिकल बोर्ड के पास नहीं मिला है। इस मामले की परतें खुलने के बाद पूरे प्रदेश में मध्यप्रदेश शिक्षक भर्ती 2023 के तहत हुई नियुक्तियों की जांच कराई जा रही है।  

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फर्जी सर्टिफिकेट से बने असिस्टेंट प्रोफेसर 

साल 2017 की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन गई है। इस भर्ती में 123 अभ्यर्थियों के दिव्यांग प्रमाण पत्र संदेहास्पद पाए गए थे। इनकी शिकायतें भी उच्च शिक्षा विभाग तक पहुंची थीं। इसके बावजूद साल 2019 में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति पाने में कामयाब रहे ये अभ्यर्थी अब भी कॉलेजों में कार्यरत हैं। उच्च शिक्षा विभाग ने तीन महीने पहले भी इनके दिव्यांग सर्टिफिकेट के दोबारा सत्यापन के आदेश जारी किए थे। इस आदेश को तीन माह बीत चुके हैं लेकिन  कॉलेजों में कार्यरत संदेह से घिरे सहायक प्राध्यापको के दिव्यांग सर्टिफिकेट के सत्यापन को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। ये असिस्टेंट प्रोफेसर मेडिकल बोर्ड के सामने पेश हुए या पहले की तरह बहाना बनाकर अपने परीक्षण से बच निकले हैं।

ग्वालियर अंचल में सबसे ज्यादा गड़बड़झाला

2017 की असिस्टेंट प्रोफेसर परीक्षा के दौरान नियुक्ति के लिए फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट लगाने के थोकबंद 22 मामले ग्वालियर अंचल से सामने आए थे।  पहली शिकायत भी ग्वालियर से ही की गई थी। यहां भिंड, मुरैना, दतिया, श्योपुर, शिवपुरी जिलों के कॉलेजों में नियुक्ति पाने वाले सहायक प्राध्यापकों का मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया गया था। हांलाकि इस परीक्षण प्रक्रिया में कई प्राध्यापक बहाने बनाकर शामिल नहीं हुए थे। मेडिकल बोर्ड ने दिव्यांग प्राध्यापकों की गोपनीय रिपोर्ट उच्च शिक्षा विभाग को भेजी थी लेकिन राजनीतिक दखल की वजह से बोर्ड की अनुशंसा के बावजूद किसी पर कार्रवाई नहीं हुई। 

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विभाग और छानबीन समिति में अटके मामले

जहां प्रदेश में दिव्यांग सर्टिफिकेट को सरकारी नौकरी पाने का औजार बनाया गया है वहीं फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नियुक्तियां हथियाने के मामले भी कम नहीं हैं। ऐसे मामलों में विभागीय स्तर पर दो- दो साल तक शिकायतों को दबाकर रखा जाता है। इस बीच गड़बड़ी के जरिए नौकरी पाने वाले परिवीक्षा अवधि पूरी करने में कामयाब हो जाते हैं। मामले राज्य स्तरीय छानबीन समिति में भी महीनों या फिर सालों तक उलझे रहते हैं और जब कभी फर्जीवाड़े उजागर होते भी हैं तो संबंधित कर्मचारी विभागीय ढील का फायदा उठाकर कोर्ट से स्टे लेकर कार्रवाई को अटका देते हैं। ऐसे तमाम मामले अब भी प्रदेश के न्यायालयों में विचाराधीन हैं और फर्जीवाड़े के सहारे नौकरी हथियाने वाले तगड़ी वेतन और सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं।

नौकरी के 12 साल बाद धांधली से उठा पर्दा

तीन महीने पहले ही बिजली कंपनी में 12 साल तक नौकरी करने वाले इंजीनियर और लेखा अधिकारी के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है। ग्वालियर अंचल के विनोद राजपूत और जबलपुर के अमित केवट ने साल 2011-12 में लेखाधिकारी और सहायक अभियंता के पद पर नियुक्ति हासिल की थी।  दोनों ने नौकरी हासिल करने के लिए जो जाति प्रमाण पत्र पेश किए थे वे फर्जी पाए गए हैं। विनोद और अमित ने जिन अधिकारियों के कार्यालय के सर्टिफिकेट लगाए थे उनका रिकॉर्ड संबंधित कार्यालयों में नहीं मिला है। इस आधार पर बिजली कंपनी ने दोनों की सेवा समाप्त कर अपराध दर्ज कराया है। इस मामले में बिजली कंपनी  द्वारा नियुक्ति के समय दस्तावेजों के सत्यापन की प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। सवाल यह भी है कि नियुक्ति के समय सत्यापन के दौरान दोनों के जाति प्रमाण पत्रों की पड़ताल क्यों नहीं कराई गई। 

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डॉक्टर-इंजीनियर सर्टिफिकेट भी फर्जी

ग्वालियर- चंबल अंचल फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए सरकारी नौकरी हथियाने के मामले में सबसे कुख्यात रहा है। हाल ही में ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल के डॉक्टर और लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री के जाति प्रमाण पत्रों भी जांच में संदेहास्पद पाए गए हैं। एसटीएफ की जांच में इनके अलावा 25 अधिकारियों -कर्मचारियों के जाति और दिव्यांग सर्टिफिकेट संदिग्ध मिल हैं। अब इन सभी दस्तावेजों की जांच और जारीकर्ता अधिकारी कार्यालयों से सत्यापन कराया जा रहा है।  

नेक्सस की ओर इशारा कर रहे मामले 

ये तमाम मामले प्रदेश के जिलों में सक्रिय फर्जी जाति, दिव्यांग, ईडब्ल्युएस सर्टिफिकेट तैयार करने वाले नेक्सस की ओर इशारा कर रहे हैं। हांलाकि इस मामलों के सामने आने और फर्जीवाड़े से सरकारी नौकरी हथियाने वालों की गिरफ्तारी के बाद भी जांच एजेंसियां और पुलिस ऐसे गिरोह का भांडाफोड़ नहीं कर सकी हैं। फर्जीवाड़े के थोकबंद मामलों के बाद भी विभागों की नियुक्ति प्रक्रिया सुस्त है। महीनों तक चलने वाली सत्यापन की कार्रवाई के बावजूद दस्तावेजों की धांधली सालों तक पकड़ में न आना भी विभागीय व्यवस्था की खामियां उजागर कर रहा है। 

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MPPSC को ऑफलाइन सर्टिफिकेट स्वीकार  

यही हाल प्रदेश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग यानी एमपीपीएससी के भी हैं। क्लास 1 और  क्लास 2 के पदों पर भर्ती परीक्षाओं  के लिए अभ्यर्थी जो दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं मेरिट में नाम आने पर विभाग उन्हें ही नियुक्ति का आधार बनाता है। इसी वजह से अधिकारी दस्तावेजों के सत्यापन में सुस्ती बरतते हैं। इसी वजह से दस्तावेजों का फर्जीवाड़ा नियुक्ति के समय सामने नहीं आ पाता। कायदे से नियुक्ति के समय ही हर दस्तावेज या प्रमाण पत्र का बारीकी से परीक्षण किया जाना चाहिए। प्रमाण पत्रों का सत्यापन उनके जारीकर्ता अधिकारी कार्यालय से कराना जरूरी है लेकिन अकसर विभाग इसमें हीला हवाला बरत रहे हैं। प्रदेश में अब जाति प्रमाण पत्र ऑनलाइन जारी किए जा रहे हैं लेकिन एमपीपीएससी अब भी परीक्षा के आवेदन में ऑफलाइन सर्टिफिकेट स्वीकार कर रहा है। ऐसे में विभागों की सुस्ती सरकारी नौकरियों में फर्जी सर्टिफिकेट के सहारे घुसपैठ को रोक नहीं पा रही है।  

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