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Photograph: (the sootr)
BHOPAL. मध्यप्रदेश में इनदिनों घपले-घोटालों की बहार आई हुई है। पतझड़ की तरह एक के बाद एक गड़बड़झाले उजागर हो रहे हैं। प्रदेश में योजनाएं हों या विभागीय स्तर पर खरीदारी अफसर हर जगह अपनी कमाई की गुंजाइश तलाशने में जुटे हैं।
केंद्र सरकार ने जिस जेम पोर्टल यानी गवर्मेंट ई_मार्केटप्लेस की शुरूआत की थी अधिकारियों ने एमपी में उसे ही भ्रष्टाचार का जरिया बना लिया है। ताजा मामला वन विभाग से जुड़ा है जहां जेम पोर्टल की आड़ में क्रय नियमों की धज्जियां उड़ाकर 29 करोड़ रुपए के वाहनों की खरीदी कर ली गई।
इसके लिए विभागीय स्तर पर भी स्वीकृति नहीं ली गई और न वित्त विभाग की सहमति की जरूरत समझी गई। अब इस मामले में शिकायत ईओडब्लू पहुंची है जिसके बाद ईओडब्लू ने वित्त विभाग से वाहन खरीदी के संबंध में नियमों की जानकारी मांगी है।
जेम की आड़ में खरीदारी के गड़बड़झाले का यह इकलौता मामला नहीं है। कुछ माह पहले सिंगरौली की 1500 आंगनबाड़ियों के लिए महिला बाल विकास विभाग ने जेम पोर्टल के जरिए बर्तनों की खरीदी में भी करोड़ों का घपला किया था।
वहीं साल 2024 में स्कूलों के लिए फर्नीचर खरीदी में भी हेराफेरी सामने आ चुकी है। यानी प्रदेश में अफसर अब भ्रष्टाचार को रोकने वाले जेम पोर्टल को ही आर्थिक गड़बड़ियों का जरिया बना चुके हैं लेकिन गहरी नींद में सोई सरकार लगातार सामने आ रहे इन मामलों से अंजाम बनी हुई है।
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वित्त विभाग और क्रय नियमों का उल्लंघन
सबसे पहले ताजा मामले की बात करते हैं। दरअसल वन विभाग में हाल ही में 29 करोड़ रुपए के वाहनों की खरीदी की गई है। जेम पोर्टल के जरिए वन विभाग द्वारा अधिकारियों और गश्ती दल के लिए दो श्रेणियों में 108 और 27 जीप, 65 एमयूवी, 4 एसयूवी और 10 ट्रक खरीदे गए हैं। यानी कुल जबकि विभाग ने 15 साल से पुराने 50 और 60 कबाड़ वाहन ही उपयोग से बाहर कर नीलाम किए थे।
ऐसे में विभाग को केवल 110 वाहनों की ही खरीदी करनी थी लेकिन वित्त विभाग से अधिक वाहनों की अनुमति के बिना ही दोगुना यानी 214 वाहन खरीद लिए गए। इसमें भी क्रय नियमों की अनदेखी की गई और टेंडर जारी किए बिना ही जेम पोर्टल के जरिए खरीदी की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। जबकि जेम पोर्टल से आमतौर पर 5 लाख से कम की खरीदी ही बिना टेंडर के की जा सकती है।
इससे ज्यादा की खरीदी के लिए जेम पर भी टेंडर प्रक्रिया का पालन जरूरी है। लेकिन विभाग के अधिकारियों ने नियमों और वित्त विभाग की पाबंदियों को दरकिनार कर दिया।
पात्रता मानदंडों की भी हुई अनदेखी
वाहन खरीदने या किराए पर लेने के लिए वित्त विभाग ने कड़ी नियमावली भी बना रखी है। प्रदेश के सभी विभागों को इसका पालन करना अनिवार्य है। हांलाकि वन विभाग के अफसरों ने 29 करोड़ के वाहन खरीदने में इसे भी नजरअंदाज किया है। दरअसल विभागों में अफसरों की संख्या और उन्हें शासन से पात्रता के अनुरूप तय कीमत के वाहन ही उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
इसे स्पष्ट तौर पर समझें तो कह सकते हैं कि अधिकारियों को उनके पे ग्रेड के मुताबिक तय कीमत के वाहन की ही पात्रता है। उससे ज्यादा कीमत के लग्जरी वाहन उन्हें सरकारी खजाने से खरीदकर नहीं दिए जा सकते लेकिन वन विभाग के अफसरों ने पे ग्रेड और तय पात्रता के मापदंडों का भी उल्लंघन किया है।
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अनुपयोगी से दोगुना वाहनों की खरीदी
आरटीआई एक्टिविस्ट और कांग्रेस के सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष पुनीत टंडन ने वन विभाग में 29 करोड़ की वाहन खरीदी की शिकायत ईओडब्लू में की है। टंडन का कहना है कि अधिकारियों ने जेम पोर्टल के जरिए टेंडर के बिना ही इतनी अधिक कीमत के वाहन खरीदे हैं।
इसमें आर्थिक गड़बड़ी का अंदेशा है। जो वाहन उपलब्ध कराए गए हैं उनकी एसेसरीज भी वन विभाग की वाहन शाखा में नहीं पहुंचे हैं। टेंडर के बिना कंपनियों से मनमाने तरीके से कम कीमत के वाहन अधिक कीमत पर खरीदे गए हैं।
विभाग ने बीते सालों में 110 वाहन ही उपयोग से बाहर किए थे इनके बदले केवल इतने वाहनों की खरीदी होनी थी लेकिन अफसरों ने 214 वाहन खरीद लिए हैं। वन विभाग ने दो पहिया वाहनों की जरूरत के बदले में भी जीप और कारों की खरीदी की है।
मनमानी खरीदी के लिए तोड़े नियम
वन विभाग ने 29 करोड़ की वाहन खरीदी में भंडार क्रय नियमों की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं। अधिकारियों ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर खरीदारी कर डाली। इसके लिए विभागीय स्तर पर न तो अनुमति ली गई न एक्पर्ट समिति का गठन हुआ और न ही जेम पोर्टल पर टेंडर जारी किया गया।
जेम खरीदी के मामले की शिकायत सामने आने के बाद ईओडब्लू ने पड़ताल शुरू कर दी है। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने प्रदेश के वित्त विभाग से भंडार क्रय नियमों के साथ ही इस तरह की वाहन खरीदी के संबंध में जरूरी नियमावली की जानकारी मांगी है।
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मरम्मत के नाम पर हो रही कमाई
वन विभाग के अधिकारियों ने प्रदेश के विभिन्न वन वृत्त और जिलों में चल रहे वाहनों को मरम्मत के लिए भोपाल बुलाया है। इन वाहनों की मरम्मत एक डीलर से कराई जा रही है। कई वाहन एक साल पुराने हैं और उन्हें कंपनी से फ्री सर्विस की पात्रता है फिर भी उनकी सर्विस पर दो-दो लाख रुपए से ज्यादा खर्च दर्शाकर भुगतान किया जा रहा है।
इन वाहनों की मरम्मत जिलों में ही कंपनी के अधिकृत शो रूम या सर्विस सेंटर पर फ्री में हो सकती है लेकिन हजारों रुपए का डीजल जलाकर उन्हें भोपाल बुलाने और एक विशेष सर्विस सेंटर पर भेजने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
बर्तन खरीदी पर विस में हुआ था हंगामा
इसी साल जनवरी माह में प्रदेश के सिंगरौली जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग की बर्तन खरीदी का घोटाला उजागर हुआ था। इसको लेकर विधानसभा में भी खूब हंगामा हुआ था। इसमें विभाग के अधिकारियों ने जेम पोर्टल के जरिए 1500 आंगनबाड़ियों के लिए कई गुना कीमत पर बर्तनों की खरीदी की थी।
इसमें बाजार में 100- सवा सौ रुपए में मिलने वाली एक चम्मच 810 रुपए, एक सर्विंग चम्मच 1348 रुपए और पानी का एक जग 1247 रुपए कीमत में खरीदा गया था। यानी इन बर्तनों की खरीदी पर करीब 5 करोड़ रुपए खर्च कर डाले गए जबकि इतने ही बर्तन खुले बाजार से कुछ लाख रुपए में ही खरीदे जा सकते थे।
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स्कूलों के फर्नीचर के नाम पर हुआ घोटाला
प्रदेश में विभागीय स्तर पर होने वाली खरीदी के घोटालों की फेहरिस्त में साल 2024 में राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा की गई फर्नीचर की खरीदारी भी शामिल है। केंद्र ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत सभी जिलों के स्कूलों को फर्नीचर उपलब्ध कराने का जिम्मा लिया था।
इसके तहत तीन चरणो में 28 जिलों में कुल एक लाख 03 हजार फर्नीचर सेट स्कूलों को पहुंचाए गए। जब इसका विभागीय स्तर पर सत्यापन किया तो 14 हजार 101 फर्नीचर सेटों की ज्यादा खरीदारी सामने आई थी।
यानी इन जिलों में जरूरत से ज्यादा फर्नीचर काफी मंहगे दामों पर खरीदकर पहुंचाए गए थे। फर्नीचर खरीदी के नाम पर राज्य शिक्षा केंद्र के अफसरों द्वारा करोड़ों का खेल हुआ लेकिन इस घोटाले को भी सरकार ने अनदेखा कर दिया।