खंडवा जमीन फर्जीवाड़ा: रिकॉर्ड में हेराफेरी से निजी हो गई ढाई करोड़ की सरकारी जमीन

मध्य प्रदेश में सरकारी जमीन की बंदरबाट थम नहीं रही है। रसूखदारों और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से कब्जे हो रहे हैं। अब राजस्व रिकॉर्ड में भी हेराफेरी की जा रही है। अब खंडवा जिले में औद्योगिक क्षेत्र की दो एकड़ जमीन पर हेराफेरी का मामला सामने आया है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में सरकारी जमीन की बंदरबाट थमने का नाम नहीं ले रही है। रसूखदार, प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी जमीनों को हड़पने में जुटे हैं। स्थिति यह है कि सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाया जा रहा है। इसके लिए अब राजस्व रिकॉर्ड में भी हेराफेरी की जा रही है। ऐसा ही मामला खंडवा जिले में सामने आया है। बंदोबस्त दस्तावेजों में हेराफेरी कर इंदौर रोड स्थित औद्योगिक क्षेत्र की दो एकड़ जमीन एक व्यक्ति के नाम पर दर्ज की गई है। जनसुनवाई में मामला उजागर होने पर अधिकारी अब जांच कर रहे हैं कि सरकारी जमीन कब और कैसे निजी हो गई।

जनसुनवाई में आई शिकायत पर जांच

खंडवा जमीन फर्जीवाड़ा: जिला प्रशासन की जनसुनवाई में अरविंद कौर पहवा ने औद्योगिक क्षेत्र में सर्वे नंबर 76 पर दर्ज जमीन के सीमांकन की मांग की थी। उन्होंने इस जमीन के रिकॉर्ड में हेराफेरी की आशंका भी जताई थी। इस पर कलेक्टर ने एसएलआर की अगुवाई में राजस्व दल का गठन कर सीमांकन कराने भेजा। सीमांकन में जमीन के एक हिस्से पर अतिक्रमण पाया गया। औद्यागिक क्षेत्र की कीमती सरकारी जमीन पर भी अनाधिकृत निर्माण की अंदेशा के चलते पड़ताल में सर्वे नंबर 78 और 79 में गड़बड़ी सामने आ गई। 

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पुराना रिकॉर्ड खंगालने से खुली धांधली 

करोड़ों रुपए कीमत की दो एकड़ जमीन निजी खाते में दर्ज होने पर संदेह हुआ। कलेक्टर ने बंदोस्त के समय का राजस्व रिकॉर्ड तलब किया। भू-अभिलेख शाखा ने रिकॉर्ड खंगाला और हेराफेरी का पता चला। तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत से रिकॉर्ड बदलने की जानकारी मिली। सर्वे नंबर 78 और 79 की जमीन 1965 तक शासकीय खाते में दर्ज थी। 1989-90 के रिकॉर्ड में यह जमीन आशुतोष श्रीवास्तव के नाम दर्ज है। सरकारी जमीन के निजी खाते पर चढ़ाए जाने का कोई दस्तावेज या आदेश नहीं है।

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हेराफेरी में राजस्व अधिकारियों पर संदेह

राजस्व रिकॉर्ड की जांच साल 1989 में पदस्थ रहे राजस्व अधिकारियों की भूमिका संदेह के दायरे में आ गई है। इसके बाद अब औद्योगिक क्षेत्र की अन्य जमीनों की भी जांच कराई जा रही है। अधिकारियों को इस गड़बड़झाले में दो एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन की बंदरबाट की आशंका है। हालांकि नए सिरे से सर्वे नंबरों की जांच और सीमांकन में यह रकबा बढ़ भी सकता है। वहीं सरकारी रकबे पर बनाए गए वेयरहाउस पर अतिक्रमण चिन्हित किया गया है।  

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जमीन की हेराफेरी पर अधिकारियों की चुप्पी 

बाजार में सरकारी भूमि की कीमत ढाई करोड़ से ज्यादा है। हालांकि, इस जमीन पर अतिक्रमण पर राजस्व अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। औद्योगिक क्षेत्र की इन जमीनों के आवंटन के बावजूद दो एकड़ जमीन निजी खाते में दर्ज है। यह मामला अधिकारियों से छिपा रहा या अनदेखा किया गया, यह सवाल उठ रहे हैं। 45 साल पुरानी सरकारी जमीन निजी खाते में कैसे पहुंची, अधिकारी चुप हैं। खंडवा के भू-अभिलेख अधीक्षक कैलाश सिसौदिया का कहना है कि मामला जांच में है। पूरी जांच के बाद स्थिति स्पष्ट होगी और कार्रवाई की जाएगी।

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ये भी है सरकारी जमीन हड़पने के मामले 

1. खरगोन जिले के कसरावद में मंडलेश्वर रोड पर खसरा नंबर 462 की 1.20 हेक्टेयर सरकारी जमीन अब निजी हो गई है। यह जमीन 2008 तक राजस्व रिकॉर्ड में चरनोई भूमि के रूप में थी। अधिकारियों की मिलीभगत से यह जमीन निजी खाते में दर्ज कराई गई। जमीन हड़पने की शिकायतें पहले भी आई थीं। कलेक्टर भाव्या मित्तल के आदेश पर अब इसकी जांच की जा रही है।

2. इंदौर जिले की महू तहसील में सरकारी जमीन निजी खाते में दर्ज की गई है। एसडीएम राकेश परमार की भूमिका की जांच हो रही है। महू के हरसोला गांव में सर्वे नंबर 1010/4 की 1.214 हेक्टेयर जमीन चरनोई के रूप में दर्ज थी। इसकी बाजार में कीमत 10 करोड़ से अधिक है। एसडीएम राकेश परमार के कार्यकाल में इसे निजी खाते में दर्ज किया गया। संभागायुक्त सुदाम खांडे के आदेश पर इसकी जांच हो रही है।

3. अशोकनगर जिले में भी सरकारी जमीन हड़पने का खेल जारी है। तहसील के हल्का नंबर 4 में सरकारी जमीन को पटवारियों की मिलीभगत से फर्जी पट्टेधारियों के नाम पर दर्ज करने का मामला सामने आया है। यही नहीं पटवारियों की साठगांठ से सरकारी जमीन पर भू-माफिया द्वारा प्लॉटिंग भी की जा रही है। इस मामले में कलेक्टर के आदेश पर हल्के की पटवारी प्रेक्षा जैन को निलंबित कर जांच कराई जा रही है।  

4.  शहडोल जिले की ब्यौहारी तहसील के खड़हुली गांव में जमीन घोटाला सामने आया है। इसकी जांच रीवा EOW के पास है। 100 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन को निजी नाम पर दर्ज किया गया है। राजस्व रिकॉर्ड की हेराफेरी से करीब 200 करोड़ रुपए की जमीन हड़पने का मामला है। पटवारी और राजस्व अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। ये जमीनें चार दशक पहले तक सरकारी थी। अब इन्हें छोटे-छोटे नंबरों में बांटकर रजिस्ट्री कराई गई है।

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