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Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. गौरव गृह निर्माण सहकारी सोसाइटी के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ यानी EOW ने बड़ी कार्यवाही की है। ईओडब्ल्यू ने भोपाल क्रेडाई (CREDAI) के अध्यक्ष मनोज सिंह मीक समेत 7 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इन सभी पर आरोप है कि इन लोगों ने मिलकर सोसाइटी के सदस्यों को धोखा दिया। साथ ही साथ पैसों का भी हेरफेर किया।
इन सात लोगों के खिलाफ एफआईआर
आरोपों की पुष्टि होते ही ईओडब्ल्यू (EOW) ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की। भोपाल क्रेडाई अध्यक्ष मनोज सिंह मीक, संतोष जैन, शिशिर खरे, नंदा खरे,बबलू सातनकर, सुनीता सातनकर और पूर्व अध्यक्ष अनिता बिस्ट भट्ट समेत सात आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120B, 420, 406, 467, 468 और 471 के तहत कार्रवाई की। एफआईआर दर्ज करने के बाद ईओडब्ल्यू ने इस मामले में और गहन जांच शुरू कर दी है।
फर्जी सदस्य जोड़कर फाउंडर मेंबर्स को किया बाहर
18 जून 2008 को गौरव गृह निर्माण सोसाइटी के कुछ मेंबर्स ने ईओडब्ल्यू में शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष संतोष जैन और उनके साथियों ने संस्था की संपत्ति और संसाधनों का गलत तरीके से इस्तेमाल किया।
इसके लिए फर्जी मेंबर्स जोड़कर फाउंडर मेंबर्स को बाहर कर दिया और उन्हें जमीन नहीं लेने दिया। इसके साथ ही, जमीन का एग्रीमेंट बिना एजीएम की सहमति के कर दिया गया। इतना ही नहीं, जमीन का कुछ हिस्सा बिल्डर को दे दिया गया। वहीं, बाकी प्लॉट्स की साइज कम करते हुए 1200 वर्गफीट कर दिया गया।
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सहकारी विभाग के अधिकारियों की भी मिलीभगत
जांच में यह भी सामने आया कि सहकारी विभाग (Cooperative Department) के कुछ अधिकारी भी इस घोटाले में शामिल थे। तत्कालीन सहकारिता उपायुक्त बबलू सातनकर पर आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर इस मामले में अनियमितताओं को नजरअंदाज किया। इसके अलावा, उनकी पत्नी को अवैध रूप से संस्था का सदस्य बनवाकर जमीन की रजिस्ट्री भी करवाई गई। इससे यह साबित हुआ कि वे भी इस घोटाले से फायदा पाने वालों में शामिल हैं।
फर्जी डॉक्यूमेंट्स पर बेच दी जमीन
जांच के दौरान यह खुलासा हुआ कि संस्था के रिकॉर्ड्स संतोष जैन के निजी निवास से संचालित ऑफिस में रखे जाते थे। साथ ही सोसाइटी के पूर्व प्रशासकों को कोई रिकॉर्ड भी नहीं दिया गया। इसके अलावा, जमीन की बेची गई लिस्ट में कई खरीदारों के नाम गलत तरीके से शामिल किए गए थे। इनमें से कई खरीदार भोपाल से बाहर के थे और कुछ को दो-दो प्लॉट दिए गए थे। इस तरह से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर प्लॉट्स की बिक्री की गई।
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