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मध्य प्रदेश के क्षेत्रीय कार्यालय, स्थानीय निधि संपरीक्षा, जबलपुर में करोड़ों के वित्तीय घोटाले का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक सरकारी कर्मचारी द्वारा संगठित रूप से विभिन्न फर्जीवाड़ा के जरिए सरकारी खजाने को भारी चूना लगाया गया। सहायक ग्रेड-3 के पद पर कार्यरत संदीप शर्मा ने वित्तीय रिकॉर्ड्स में बड़े पैमाने पर हेरफेर कर लगभग 5.5 करोड़ रुपए का गबन किया। यह गड़बड़ी वर्ष 2022-23 से लगातार जारी थी, लेकिन हाल ही में एक वित्तीय ऑडिट के दौरान संदेहास्पद लेनदेन उजागर हुए, जिसके बाद पूरे मामले की परतें खुलनी शुरू हुईं। प्रारंभिक जांच में घोटाले की पुष्टि होने के बाद संयुक्त संचालक द्वारा उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया और उनका मुख्यालय क्षेत्रीय कार्यालय, स्थानीय निधि संपरीक्षा, सागर में निर्धारित किया गया है।
घोटाले को दिया अंजाम
संयुक्त संचालक द्वारा जारी आदेश में विस्तार से बताया गया है कि संदीप शर्मा ने कई स्तरों पर वित्तीय अनियमितताएं कीं, जिससे सरकारी धन का गैर-कानूनी रूप से दुरुपयोग हुआ। जांच में यह पाया गया कि संदीप शर्मा ने नकली दस्तावेज, फर्जी हस्ताक्षर और जालसाजी स्वीकृति आदेशों का उपयोग कर सरकारी खजाने से बड़ी रकम अपने और अपने परिचितों के खातों में ट्रांसफर की।
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राशि में फर्जीवाड़ा
एक सेवानिवृत्त कर्मचारी की मृत्यु के बाद, उनके परिवार को लीव इनकैशमेंट के रूप में सरकार से एक निश्चित राशि मिलनी थी। लेकिन संदीप शर्मा ने इसका फायदा उठाते हुए मृतक कर्मचारी का एक फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार किया और परिवार के हकदार सदस्य (पति) के स्थान पर अपनी मौसी, पुनीता का नाम जोड़ दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने भुगतान के लिए अपनी मौसी का बैंक खाता अंकित कर दिया और फर्जी दस्तावेजों पर संयुक्त संचालक के नकली हस्ताक्षर कर 8.5 लाख रुपए की मंजूरी दिला दी। इस तरह एक मृत कर्मचारी के हक की रकम उनके वास्तविक परिवार को मिलने के बजाय, फर्जी तरीके से संदीप शर्मा की मौसी के खाते में चली गई। यह सरासर विश्वासघात और सरकारी नियमों का उल्लंघन था, जिसे अब गंभीर वित्तीय अपराध के रूप में देखा जा रहा है।
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अपना वेतन 10 गुना बढ़ाया
सरकारी वेतन प्रणाली में अनधिकृत बदलाव करना असंभव माना जाता है, लेकिन संदीप शर्मा ने अपनी ही लॉगिन आईडी से सैलरी सिस्टम में छेड़छाड़ कर अपनी तनख्वाह को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया। सरकारी रिकॉर्ड्स के अनुसार, संदीप शर्मा का मासिक वेतन 44 हजार रुपए था, लेकिन उन्होंने वेतन बिल में हेरफेर कर इसमें एक शून्य और बढ़ाया और इसे 4 लाख 40 हजार कर दिया। यह गलतियां लगभग एक वर्ष तक चलती रही, जिससे उन्होंने करीब 5.5 करोड़ रुपए की अवैध कमाई कर ली। इस तरह की धांधली यह दर्शाती है कि संदीप शर्मा ने पूरे वेतन प्रबंधन प्रणाली को बाईपास कर सीधे अपने फर्जी आंकड़े सिस्टम में फीड किए।
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रिश्तेदारों के खातों में पैसा ट्रांसफर
इतना ही नहीं, संदीप शर्मा ने पेरोल मॉड्यूल और आरएनडी मॉड्यूल में अपनी ही आईडी से लॉगिन कर फर्जी आदेश तैयार किए। इन आदेशों के माध्यम से उन्होंने विभिन्न सरकारी भुगतान खातों से धन निकालकर अपने और अपने रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर कर दिया। इस प्रक्रिया में उन्होंने कई तरह के फर्जी एरियर देयक (बकाया वेतन) भी तैयार किए और इस रकम को अलग-अलग तरीकों से अपने व्यक्तिगत उपयोग में लिया। अधिकारियों का मानना है कि यह अनियमितता सुनियोजित थी और इसमें अन्य कर्मचारियों की संलिप्तता की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
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संदीप शर्मा को किया गया निलंबित
यह पूरा मामला धोखाधड़ी के तहत गंभीर वित्तीय अपराध की श्रेणी में आता है। यह न केवल मध्य प्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 के नियम 3 (1) (ए) और (तीन) का उल्लंघन है, बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला भी है। इसी कारण संदीप शर्मा को मध्य प्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम, 1966 के तहत तत्काल निलंबित कर दिया गया है। निलंबन की अवधि में उन्हें केवल जीवन निर्वाह भत्ता मिलेगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वह सरकारी सेवा से सीधे वित्तीय लाभ नहीं ले सकें।
क्या अकेले की थी साजिश?
इतने बड़े पैमाने पर वित्तीय हेरफेर करना किसी एक व्यक्ति के लिए संभव नहीं होता। सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह सिर्फ संदीप शर्मा की करतूत थी, या इसमें विभाग के अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की भी संलिप्तता थी? अगर संदीप शर्मा वर्षों तक वेतन प्रणाली में छेड़छाड़ कर रहे थे, तो यह जांच का विषय है कि आखिर इसकी भनक विभाग को पहले क्यों नहीं लगी? जांच समिति अब यह भी पता लगा रही है कि क्या अन्य कर्मचारियों ने भी इसी तरह से अवैध भुगतान लिए हैं? यदि ऐसा हुआ है, तो यह एक संगठित वित्तीय अपराध का मामला बन सकता है और कई और लोग इसके दायरे में आ सकते हैं।
जांच टीम कर सकती है खुलासे
इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए, संबंधित विभाग द्वारा एक विशेष जांच समिति गठित की गई है। यह समिति न केवल संदीप शर्मा द्वारा किए गए गबन की पुष्टि करेगी, बल्कि यह भी पता लगाएगी कि किन किन अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध है। इस तरह के मामलों में आईटी विभाग और वित्त विभाग की भी जवाबदेही तय की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आगे कोई भी सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग न कर सके।
ग्रेड 3 कर्मचारी के कारनामों से सब हैरान
यह मामला सरकारी वित्तीय व्यवस्था की कमजोरियों और प्रशासनिक लापरवाहियों को उजागर कर रहा है। आम जनता के बीच यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर एक साधारण सहायक ग्रेड-3 कर्मचारी करोड़ों रुपए का घोटाला कर सकता है, तो अन्य विभागों में क्या स्थिति होगी? प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और दोषियों को कठोरतम सजा मिले।