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BHOPAL. मध्यप्रदेश में कुपोषण के खिलाफ जंग में सरकार लगातार पिछड़ गई है। कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेश राष्ट्रीय औसत से भी बुरी स्थिति में है। देश में कुपोषण का औसत 5 प्रतिशत है जबकि मध्यप्रदेश में कुपोषित बच्चों का औसत 7 फीसदी है।
कुपोषण से उबारने के लिए बच्चों पर प्रतिदिन 8 से 12 रुपए खर्च किए जा रहे हैं। यानी हर माह 120 रुपए खर्च कर सरकार प्रदेश को कुपोषण मुक्त करने का दावा कर रही है। यह जानकारी मध्यप्रदेश विधानसभा में बीजेपी विधायक के प्रश्न के महिला एवं बाल विकास मंत्री द्वारा पेश किए गए जवाब से सामने आई है।
मंत्री के जवाब से हकीकत उजागर
कुपोषण पर नियंत्रण के लिए सरकार के दावे तो हजार है लेकिन विधानसभा में जो जानकारी मंत्री द्वारा पेश की गई वह स्थिति की गंभीरता उजागर करने वाली है। प्रदेश में बच्चों के पोषण पर सरकार हर दिन 8 रुपए खर्च कर रही है।
वहीं अतिकुपोषित बच्चों को इस हालत से उबारने 4 रुपए अतिरिक्त खर्च किए जा रहे हैं। यानी कुपोषण का दंश झेल रहे आदिवासी- दलित और गरीब बच्चों पर सरकार 12 रुपए प्रतिदिन खर्च कर रही है। ऐसे में बच्चों को उपलब्ध कराए जा रहे पोषण आहार की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
5 पॉइंट्स में समझें कुपोषण से जुड़ी यह खबर...
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बीजेपी विधायक ने सरकार को घेरा
मध्यप्रदेश विधानसभा में बीजेपी विधायक मोहन सिंह राठौर ने प्रदेश में कुपोषण की स्थिति पर प्रश्न उठाया था। उन्होंने बच्चों में कुपोषण की स्थिति, उनके पोषण पर सरकार द्वारा किए जाने वाले खर्च और योजनाओं की जानकारी मांगी थी।
इसके जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश में आंगनवाड़ी केंद्र और पोषण योजना के माध्यम से कुपोषण पर नियंत्रण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम भी स्वास्थ्य विभाग की मदद से चल रहा है।
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कुपोषण की गिरफ्त में आदिवासी अंचल
बीजेपी विधायक मोहन सिंह राठौर ने कुपोषण की गंभीर समस्या में शिवपुरी जिले की स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कुपोषित बच्चों के पोषण आहार पर प्रतिदिन 8 रुपए सरकार की ओर से खर्च किए जा रहे हैं। जबकि अतिकुपोषित बच्चों को 4 रुपए अतिरिक्त यानी 12 रुपए का पोषण आहार दिया जा रहा है।
विधायक ने बताया शिवपुरी जिले के 9 एनआरसी केंद्रों में 40 से ज्यादा बच्चे भर्ती हैं। ये बच्चे गंभीर स्थिति में है। यही स्थिति आदिवासी बाहुल्य जिले श्योपुर, खरगोन, झाबुआ बड़वानी में भी है।
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कुपोषण में राष्ट्रीय औसत से गंभीर एमपी
विधानसभा में कुपोषण पर गंभीर चर्चा हुई। मध्यप्रदेश में कुपोषण की औसत दर 7% है, वहीं राष्ट्रीय औसत इससे दो प्रतिशत कम यानी 5% है। इसका सीधा मतलब कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेश के बच्चों की हालत अच्छी नहीं है।
इसके बावजूद आदिवासी, दलित और गरीब बच्चों को कुपोषण से उबारने के लिए केवल 8 से 12 रुपए ही खर्च किए जा रहे हैं। जबकि इस राशि में पोषण आहार उपलब्ध कराना मुश्किल है। इस राशि में बच्चों को प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेटयुक्त पौष्टिक आहार कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है।
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45 जिलों को कुपोषण ने बनाया रेड जोन
मध्य प्रदेश के 45 जिले कुपोषित बच्चों के लिए चिन्हित हैं। इन जिलों को कुपोषण की वजह से बच्चों में कम वजन की शिकायत बनी हुई है। इसको देखते हुए ये जिले रेड जोन में रखे गए हैं। कुपोषण की गंभीर स्थिति सबसे ज्यादा आदिवासी बाहुल्य जिलों में है और यही जिले सबसे ज्यादा रेड जोन घोषित किए गए हैं।
प्रदेश में 97 हजार आंगनवाड़ी केंद्रों में दर्ज आंकड़े के मुताबिक 1.36 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। बच्चों की इस संख्या के आधार पर मध्यप्रदेश में कुपोषण का औसत 7 प्रतिशत पहुंच गया है।
यह औसत राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। 1.36 लाख में से 57 फीसदी बच्चों में वजन घटने और शरीर की लंबाई उम्र के अनुपात में कम रहने की शिकायत सामने आ रही है।
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