रायसेन में सरकारी गेहूं के घोटालेबाजों पर जांच समिति भी मेहरबान

मध्य प्रदेश के सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार चरम पर है। चिंता की बात यह कि घपले—घोटालों को एक साथ कई विभागों के जिम्मेदार एक संगठित गिरोह वाले अंदाज में अंजाम दे रहे हैं।

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Ravi Awasthi
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रायसेन। 
जिला मुख्यालय की गोदामों से करीब तीन सौ क्विंटल सरकारी गेहूं की हेराफेरी किए जाने का मामला सामने आया है। मामला संज्ञान में आने पर तत्कालीन जिला कलेक्टर ने एसडीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर तीन दिन में जांच रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे,लेकिन इस आदेश को भी नजर अंदाज कर दिया गया। आलम यह कि कलेक्टर के आदेश के 9 माह बाद भी जांच पूरी नहीं हो सकी।

सूत्रों के मुताबिक,गोदामों से गेहूं की इस चोरी को बीते साल जनवरी से जुलाई के बीच अंजाम दिया गया। इसके लिए सरकारी दस्तावेजों में आनलाइन व आफलाइन दोनों ही जगह हेरफेर किया गया।

दरअसल,सरकारी खरीदे गए गेहूं को लेकर नियम है कि इसके भंडारण पर इसके वजन में 1 से 2प्रतिशत तक की स्वाभाविक बढ़ोत्तरी होती है। यानी एक हजार क्विंटल पर एक प्रतिशत के मान से ही गेहूं का दस क्विंंटल वजन बढ़ता है। इस बढ़े हुए वजन का गेहूं भी सरकारी रिकॉर्ड में ही दर्ज होता है

 

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पहले माह ही सैकड़ों क्विंटल गेहूं की हेराफेरी

सूत्रों के अनुसार,सिर्फ जनवरी 2024 में ही 321 क्विंटल गेहूं राशन दुकानों के लिए उठाया गया था, लेकिन रिकॉर्ड में हेरफेर कर 197 क्विंटल गेहूं का भुगतान निजी गोदामों के नाम दर्शा दिया गया। इसके लिए फर्जी बिल तैयार कर निगम को ऑनलाइन भेजा गया।

इतना ही नहीं, फरवरी और मार्च में भी फर्जी तरीके से डिलीवरी ऑर्डर और बिलों को सिस्टम से डिलीट कराया गया। गौर करने वाली बात ये है कि बिना उच्च अधिकारियों की मिलीभगत के बिना ओटीपी के बिल डिलीट होना संभव ही नहीं है। मई 2024 में वरिष्ठ कार्यालय से पुराने भंडारित गेहूं को उठाने के निर्देश भी नजरअंदाज कर दिए गए। जून में अचानक 200 क्विंटल गेहूं दोबारा गोदाम में दिखा दिया गया, जिससे गड़बड़ी का संदेह और गहरा गया।

जुलाई में 426 बोरी में गड़बड़ी

जुलाई 2024 में एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया जब 426 बोरियों में सिर्फ 75 क्विंटल गेहूं का भुगतान दर्शाया गया, जबकि औसत वजन के अनुसार यह मात्रा लगभग ढाई सौ क्विंटल होनी चाहिए थी। यानी जुलाई में 118 क्विंटल गेहूं गायब हो गया!

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कलेक्टर का आदेश भी किया नजरअंदाज

जिले के ही एक समाज सेवी  ने इस पूरे प्रकरण की शिकायत मय साक्ष्य के जिला प्रशासन व खाद नागरिक आपूर्ति निगम के जिम्मेदार अधिकारियों को की। तत्कालीन जिला ​कलेक्टर अरविंद दुबे ने इस पर संज्ञान लेते हुए मामले की जांच के आदेश दिए। यह रिपोर्ट 3दिन में देने के आदेश दिए गए। जांच में  गेहूं घोटाले के साथ ही एक दिहाड़ी कर्मचारी को बिना काम वेतन दिए जाने का बिंदु भी शामिल किया गया। 

इसके लिए जिला मुख्यालय में पदस्थ एसडीएम मुकेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति बनाई गई। इसमें सहकारिता विभाग के उपायुक्त छविकांत बाघमारे,जिला आपूर्ति अधिकारी राजू कातलकर,इसी​ विभाग के जूनियर अधिकारी संदीप भार्गव व सहकारिता निरीक्षक आरके पारे को शामिल किया गया। 

ऊपर तक पहुंची ​शिकायत तब शुरू हुई जांच

हैरत की बात यह कि जांच समिति के सभी सदस्य जिला मुख्यालय में ही रहते हुए जांच के लिए बीते 9 माह में वक्त नहीं निकाल पाए। इस दौरान शिकायतकर्ता के सिर्फ बयान हुए। उसने साक्ष्य भी जांच समिति को मुहैया कराए। जांच न होती देख शिकायतकर्ता ने खाद्य नागरिक आपूर्ति के महाप्रबंधक व अन्य जिम्मेदार अफसरों तक से शिकायत की। इसके बाद तीन दिन पहले जांच समिति ने मौका मुआयना किया। 

 

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संगठित अपराध की तर्ज पर घोटाला

पहले लाखों रुपए के गेहूं की हेराफेरी में जिम्मेदारों की मिलीभगत और इसके बाद जांच कर्ताओं का इस मामले को टालने वाला अंदाज। यह सब दिखाता है कि सरकारी अनाज के  घोटाले को एक संगठित अपराध की तरह अंजाम दिया जा रहा है।

इसमें न केवल मप्र वेयर हाउसिंग व मप्र खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम के जिम्मेदार अधिकारी,कर्मचारी बल्कि जांच कमेटी चेयरमेन एसडीएम मुकेश सिंह व सहकारिता विभाग के अधिकारी भी शामिल कहे जा सकते हैं। जिन्होंने जो काम तीन दिन में करना था,उस पर नौ माह तक पर्दा डाले  रहे। 

इस संबंध में जांच कमेटी अध्यक्ष व एसडीएम मुकेश सिंह ने कहा कि जांच समिति के सभी सदस्य एक वक्त पर जमा नहीं हो पाने से यह विलंब हुआ। उन्होंने कहा कि तीन दिन पहले समिति सदस्यों ने मौके पर पहुंचकर जांच की है। जल्द ही इसकी रिपोर्ट जिला कलेक्टर को सौंप दी जाएगी। 

 

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