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जबलपुर जिले में आदिवासियों की जमीनों पर कब्जे के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। ताजा मामले में, पत्रकार गंगा पाठक और उसके साथियों द्वारा फर्जी दस्तावेजों के आधार पर आदिवासी भूमि की अवैध रजिस्ट्री कराने का बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। प्रशासनिक जांच में इस धोखाधड़ी की पुष्टि होने के बाद, एसडीएम अभिषेक सिंह ठाकुर ने इस भूमि की रजिस्ट्री शून्य करने का आदेश जारी किया और पीड़ित आदिवासी परिवार के नाम भूमि को पुनः दर्ज करने के निर्देश दिए।
यह मामला भ्रष्टाचार और भूमि हड़पने की संगठित साजिश की ओर इशारा करता है, जिसमें रजिस्ट्रार कार्यालय और पटवारी की संदिग्ध भूमिका भी उजागर हुई है। इस बड़े फर्जीवाड़े को देखते हुए प्रशासन ने अन्य मामलों की भी जांच शुरू कर दी है।
ऐसे हुआ पूरा फर्जीवाड़ा
रामपुर नकटिया पंचायत ऐंठाखेड़ा में रहने वाले वीरन सिंह गोंड के नाम पर 4.5 एकड़ कृषि भूमि दर्ज थी। यह जमीन पीढ़ियों से उनके परिवार के कब्जे में थी और कानूनी रूप से किसी को बेची नहीं गई थी। लेकिन नवंबर 2022 में पत्रकार गंगा पाठक, रमेश प्रसाद पाठक, शंकर विश्वकर्मा और नारायण प्रसाद श्रीवास्तव ने फर्जी दस्तावेज तैयार कर इस जमीन को अपने नाम रजिस्ट्री करवा लिया।
गोंड को बना दिया राजपूत
इस धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए आरोपियों ने वीरन सिंह गोंड का नाम बदलकर वीरन सिंह राजपूत लिखवा दिया। यही नहीं, वीरन सिंह गोंड के पिता के नाम में भी "राजपूत" जोड़कर सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी की गई। इसका मकसद यह था कि कोई भी यह न समझ पाए कि यह जमीन किसी आदिवासी की है। क्योंकि मध्य प्रदेश की भूमि राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 के तहत आदिवासी जमीन की बिक्री बिना कलेक्टर की अनुमति के नहीं की जा सकती। इस पूरे षड्यंत्र में जबलपुर के तत्कालीन उप पंजीयक जितेंद्र राय की भूमिका भी संदिग्ध रही। उन्होंने बिना किसी ठोस जांच के, इन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भूमि की रजिस्ट्री कर दी और यह सुनिश्चित कर दिया कि गंगा पाठक और उसके सहयोगियों के नाम पर जमीन दर्ज हो जाए।
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आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने की कोशिश में हुआ खुलासा
यह घोटाला तब सामने आया जब आदिवासी परिवार को अपनी ही जमीन से बेदखल करने की कोशिश की गई। जब वीरन सिंह गोंड और उनके परिवार ने देखा कि उनकी जमीन पर अजनबी लोग कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्होंने तहसील कार्यालय से इस मामले की जानकारी मांगी। पटवारी से मिली जानकारी के अनुसार, जमीन अब उनके नाम पर नहीं थी, बल्कि गंगा पाठक और उसके साथियों के नाम पर रजिस्ट्री हो चुकी थी। इसके बाद वीरन सिंह गोंड ने जबलपुर के कलेक्टर कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाई। इस शिकायत के आधार पर, कलेक्टर ने तहसीलदार को जांच के आदेश दिए। तहसीलदार की विस्तृत रिपोर्ट में यह स्पष्ट हो गया कि जमीन की बिक्री के लिए कोई सरकारी अनुमति नहीं ली गई थी और सभी दस्तावेज फर्जी तरीके से तैयार किए गए थे।
एसडीएम कोर्ट का बड़ा फैसला
सभी जांच रिपोर्टों और साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, एसडीएम अभिषेक सिंह ठाकुर ने इस भूमि की रजिस्ट्री को शून्य करने का आदेश पारित किया। साथ ही, राजस्व रिकॉर्ड में वीरन सिंह गोंड के नाम पर भूमि पुनः दर्ज करने के निर्देश जारी किए गए।
मुकदमा लगते ही फरार हुए आरोपी
जैसे ही वीरन सिंह गोंड ने एसडीएम कोर्ट में मुकदमा दायर किया और गंगा पाठक समेत अन्य आरोपियों को नोटिस भेजा गया, तो सभी आरोपी फरार हो गए। गंगा पाठक, रमेश प्रसाद पाठक, शंकर विश्वकर्मा, नारायण प्रसाद श्रीवास्तव और तत्कालीन उप पंजीयक जितेंद्र राय को कई बार नोटिस भेजे गए, लेकिन न तो वे कोर्ट में उपस्थित हुए और न ही किसी तरह की सफाई दी।
आदिवासी जमीनों पर फर्जीवाड़ा उजागर
रामपुर नकटिया क्षेत्र में इस तरह की दो अन्य घटनाएँ भी सामने आई हैं, जिनमें आदिवासी भूमि को फर्जी दस्तावेजों के जरिए हड़प लिया गया था।
मामला 1: ओम प्रकाश त्रिपाठी ने साथियों के साथ मिल की धोखाधड़ी
ग्राम रामपुर नकटिया में 0.04800 हेक्टेयर भूमि को ओम प्रकाश त्रिपाठी और पांच अन्य लोगों ने फर्जीवाड़े के जरिए अपने नाम करवा लिया। जांच में यह सामने आया कि जिन दो लोगों के नाम से यह रजिस्ट्री करवाई गई थी, उनकी मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। यानी मृत व्यक्तियों के नाम का इस्तेमाल कर यह सौदा पंजीकृत कराया गया था। एसडीएम कोर्ट ने इस मामले में भी रजिस्ट्री को शून्य घोषित कर दिया और पीड़ित परिवार को राहत दी।
मामला 2: शकुंतला की शिकायत पर हुआ बड़ा खुलासा
ऐंठाखेड़ा गांव की शकुंतला ने भी शिकायत दर्ज करवाई थी कि उनकी 0.8000 हेक्टेयर कृषि भूमि को ओम प्रकाश त्रिपाठी समेत पांच लोगों ने फर्जी तरीके से हड़प लिया। इस मामले में भी नाम में "राजपूत" जोड़कर दस्तावेजों में हेराफेरी की गई थी। एसडीएम कोर्ट ने इस मामले में भी बैनामा शून्य करने और जमीन को असली मालिक के नाम दर्ज करने का आदेश दिया।
रजिस्ट्रार कार्यालय और पटवारी की भूमिका भी संदिग्ध
इन सभी मामलों में जबलपुर के रजिस्ट्रार कार्यालय और संबंधित पटवारी की भूमिका संदिग्ध पाई गई है। प्रशासन इस बात की भी जांच कर रहा है कि क्या यह एक संगठित गिरोह द्वारा किया गया घोटाला था? अब सवाल उठ रहा है कि क्या इन अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी, या केवल रजिस्ट्री शून्य कर मामले को खत्म कर दिया जाएगा?
कलेक्टर की अनुमति के बिना नहीं खरीद सकते आदिवासी भूमि
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य प्रदेश भूमि राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 के तहत आदिवासी भूमि की खरीद-बिक्री बिना कलेक्टर की अनुमति के गैरकानूनी है। इस मामले में स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी और कूटरचना (Forgery) का अपराध हुआ है, जिसके तहत आरोपीगणों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) और 471 (फर्जी दस्तावेजों का उपयोग) के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
अन्य भूमियों की जांच भी हुई शुरू
इस फर्जीवाड़े के उजागर होने के बाद, जबलपुर जिला प्रशासन ने अन्य विवादित भूमि मामलों की भी जांच शुरू कर दी है। यह आशंका जताई जा रही है कि इस तरह की कई अन्य जमीनें भी इसी तरह हड़पी गई होंगी। जबलपुर में आदिवासी जमीनों को हड़पने का यह मामला एक संगठित षड्यंत्र का संकेत देता है। प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि सिर्फ रजिस्ट्री शून्य करने से ही मामला न निपटाया जाए, बल्कि दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जाए।
गंगा पाठक ने खुद को ही बताया धोखाधड़ी का शिकार
पत्रकार गंगा पाठक के अनुसार वह इस भूमि घोटाले में धोखाधड़ी के शिकार हो गए हैं। भूमि दलाल रमाकांत सतनामी, जो पूर्व में भी उनके लिए भूमि खरीद-फरोख्त का काम करता था, उक्त सौदा लेकर आया था और उसने यह तथ्य छुपाया कि यह भूमि आदिवासी स्वामित्व की है। रमाकांत सतनामी ने इसे वीरेंद्र सिंह राजपूत और उनके भाई चंदन सिंह राजपूत की भूमि बताकर गंगा पाठक को बेचा, जिसके एवज में उन्होंने साढ़े 17 लाख रुपये का भुगतान किया और बाद में तीन लाख, ढाई लाख और नौ लाख रुपये के पोस्ट-डेटेड चेक भी दिए। भूमि की रजिस्ट्री उनके नाम पर हो गई, लेकिन जब नामांतरण के लिए आवेदन दिया गया, तब खुलासा हुआ कि यह आदिवासी भूमि है और फर्जी दस्तावेजों के जरिए बेची गई थी। इस धोखाधड़ी का पता चलते ही, 9 अगस्त 2023 को गंगा पाठक ने जबलपुर पुलिस अधीक्षक को शिकायत दर्ज कराते हुए दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की थी। हालांकि यह बात समझ से परे है कि साल 2023 से लेकर अब तक उन्होंने तहसील कार्यालय या न्यायालय की शरण क्यों नहीं ली।