संजय गुप्ता @ INDORE. हरदा ब्लास्ट मामले की 40 पन्नों की उच्च स्तरीय जांच रिपोर्ट सीएम डॉ. मोहन यादव को सौंप दी गई है और उन्होंने इसे मंजूर भी कर लिया है। पटाखा कारोबारी राजेश अग्रवाल, सोमेश अग्रवाल व अन्य की फैक्टरी में 6 फरवरी को हुए ब्लास्ट ( blast ) में 13 लोगों की जान गई थी। द सूत्र को मिली रिपोर्ट की जानकारी के अनुसार इसमें तत्कालीन संभागायुक्त मालसिंह, कलेक्टर ऋषि गर्ग, एसपी संजीव कंचन के साथ ही ज्वाइंट कंट्रोलर (जेसी) एक्सप्लोसिव, लेबर व हैल्थ व सेफ्टी विभाग और पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों की लापरवाही मानी गई है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने घटना के बाद ही कलेक्टर गर्ग, एसपी कंचन को जिले से हटा दिया था। बाद में कारखाना निरीक्षक नवीन बरवा को सस्पेंड कर दिया था।
मौके पर 20 हजार क्विंटल विस्फोटक था, 250 मीटर तक उड़े परखच्चे
प्रमुख सचिव गृह विभाग संजय दुबे की अध्यक्षता में जांच कमेटी सदस्य अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जयदीप प्रसाद व सचिव पीडब्ल्यूडी आरके मेहरा द्वारा की गई जांच में पाया गया है कि मौके पर 20 हजार क्विंटल विस्फोटक मौजूद थे। धमाके के बाद 250 मीटर तक फैक्टरी और आसपास की सभी वस्तुओं के परखच्चे उड़ गए। किस्मत यह रही कि दोनों धमाकों के बीच में 7-8 मिनट का अंतर था, इसलिए सभी मजदूर इस बीच में फैक्टरी से निकल गए, नहीं तो बहुत भीषण हादसा होता।
अधिकारियों की ऐसी लापरवाही पड़ गई भारी
कमेटी ने खास तौर पर लिखा कि पटाखों के लाइसेंस मामले में इन सभी विभागों के अधिकारियों (कलेक्टर, एसपी, एक्सप्लोसिव कंट्रोल, लेबर, हैल्थ एंड सैफ्टी, पाल्यूशन) के पास उनके एक्ट में अधिकार है कि वह इस पर कार्रवाई कर सकते थे लेकिन किसी ने कार्रवाई नहीं की और हर एक ने अपने स्तर पर लापरवाही की है। कलेक्टर को देखना था कि एक ही जगह पर इतने लाइसेंस एक साथ कैसे संचालित रहे थे। ज्वाइंट कंट्रोलर एक्सप्लोसिव को भी देखना था कि 19 कमरे औऱ् दो मंजिला में फैक्टरी कैसे चल सकती है, यह पूरी तरह से अवैध थी। इसी फैक्टरी संचालक की फैक्टरी में 20115 व 2021 में पहले भी ब्लास्ट हो चुका, उस पर क्रिमिनल केस हो चुका है, बरी इसलिए हुआ क्योंकि सरकारी कर्मचारी ही बयान देने नहीं गए। आपराधिक रिकार्ड है, फिर उसके लाइसेंस कैसे जारी थे, फैक्टरी संचालन की मॉनीटरिंग किसी ने नहीं की।
* किसी ने स्टॉक भी चेक नहीं किया, एक ही जगह क्षमता से ज्यादा स्टॉक था और वहीं सुप्रीम कोर्ट से प्रतिबंधित विस्फोटक सामग्री बेरियम व अन्य भी भारी मात्रा में रखा हुआ था।
* संभागायुक्त मालसिंह द्वारा कलेक्टर की लाइसेंस स्थगित करने की कार्रवाई पर स्टे देना उचित नहीं था। स्टे हो भी गया था तो वह अगली सुनवाई तक था, ऐसे में कलेक्टर को चाहिए था कि वह स्टे हटने के बाद अपने ही आदेश को अमल में लाकर कार्रवाई करते। वह खुद ही अपने आदेश का अमल नहीं कर सके।
* फैक्टरी ही लाइसेंस के विपरीत सर्वे नंबर पर थी, जांच में आया कि लाइसेंस सर्वे नंबर 9/11 पर था और पैक्टरी खुली थी 99/11 सर्वे नंबर पर। प्रशासन की ओर से और अन्य सभी जिम्मेदार विभागों द्वारा इन सभी गलतियों की ओर ना देखा गया और ना ही कोई समय रहते हुए एक्शन लिया गया।
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एक्ट के हिंदी, अंग्रेजी नियम में भी अलग-अलग
कमेटी ने साथ ही गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के इस संबंध में जारी एक्ट के हिंदी व अंग्रेजी अनुवाद को लेकर भी खामियां बताई है। कहीं-कहीं पर हिंदी में जो नियम लिखे हैं, उसका अंग्रेजी में अनुवाद अलग है। जैसे एल फाइव लाइसेंस के हिंदी एक्ट में अधिकार कलेक्टर को तो वहीं अंग्रेजी में एक्सप्लोसिव कंट्रोलर को है, इसी तरह कितनी दूरी सुरक्षित रखना चाहिए इनके भी अलग-अलग मीटर लिखे हुए हैं। अन्य कुछ जगह और भी इसी तरह की खामियां है, जो असमंजस पैदा करती है।
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