पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता, एडमिशन और परीक्षाओं पर HC ने लगाई रोक,  सत्र 2023-24 और 2024-25 पर स्टे

कोर्ट ने पाया कि 2023 में अधिकांश कॉलेजों को मान्यता नहीं मिली थी, फिर भी छात्रों को प्रवेश दिया गया। पैरामेडिकल काउंसिल के पास 277 आवेदन आए थे, जिनमें से 166 कॉलेजों को मान्यता दी गई। कोर्ट ने कहा कि आपने छात्रों से फीस वसूल की थी।

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Neel Tiwari
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MP news: मध्यप्रदेश के पैरामेडिकल कॉलेजों में शैक्षणिक घोटाला सामने आया है। इस मामले को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने 2023-24 और 2024-25 सत्र की मान्यताओं, एडमिशन और परीक्षाओं पर रोक लगा दी है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दीपक खोत की डिवीजन बेंच ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि पिछले सत्र की मान्यता 2025 में दी जा रही है, क्या यह सर्कस है?" कोर्ट ने इसे गंभीर अव्यवस्था और शर्मनाक करार दिया।

2023-24 सत्र के लिए दी 2025 में मान्यता

हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के अनुसार, कई पैरामेडिकल कॉलेजों को जनवरी 2025 में सत्र 2023-24 की मान्यता दी गई। याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अधिवक्ताओं विशाल बघेल और आलोक बागरेचा ने बताया कि यह मान्यताएं बिना पूर्व निर्धारित प्रक्रियाओं और संबद्धता के दी गईं। इससे हजारों छात्रों का भविष्य खतरे में आ गया। कई कॉलेजों को भी मान्यता मिली, जिन्हें सीबीआई की जांच में अनसूटेबल घोषित किया गया था।

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बिना मान्यता के चल रहे थे कॉलेज

कोर्ट ने पाया कि 2023 में अधिकांश कॉलेजों को कोई मान्यता नहीं मिली थी, फिर भी छात्रों को प्रवेश दे दिए गए। पैरामेडिकल काउंसिल के पास 277 आवेदन आए थे, जिसमें से 166 कॉलेजों को मान्यता दी गई। कोर्ट ने कहा कि आपने छात्रों से फीस वसूल की थी, इसलिए 2025 में उन्हें पिछले सत्र के लिए मान्यता दी गई, जो स्पष्ट रूप से अवैध और नियमों के खिलाफ है।

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पैरामेडिकल काउंसिल की दलील को कोर्ट ने ठुकराया

पैरामेडिकल काउंसिल के अधिवक्ता ने सफाई दी कि 2023 की मान्यता प्रक्रिया में देरी चुनावी आचार संहिता और "नेशनल कमीशन ऑफ एलाइड एंड हेल्थ केयर एक्ट" के कारण हुई। इस नए एक्ट के तहत राज्य सरकारों में अलग कमीशन बननी थी, जो मान्यता देने की जिम्मेदारी लेती। इस दौरान राज्य सरकार ने स्टेट पैरामेडिकल काउंसिल को विघटित कर दिया था। हालांकि, 10 माह बाद भी इस कमीशन में पर्याप्त सदस्य नियुक्त नहीं हो सके और मान्यता संबंधी नियम नहीं बन पाए। नवंबर 2024 में काउंसिल का पुनर्गठन हुआ।

कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा, "क्या यहां सर्कस चल रहा है? 2025 में दी गई मान्यता सत्र 2023-24 के लिए थी। जब 2023 में कॉलेजों को मान्यता ही नहीं मिली थी, तो छात्रों को एडमिशन कैसे दिया जा सकता है?"

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छात्रों को करना चाहिए आपके खिलाफ केस 

पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से कोर्ट से या निवेदन किया गया कि इस इसके ऑर्डर के बाद कई  छात्रों का भविष्य अधर में लटक जाएगा। कोर्ट ने ऐसे पैरामेडिकल काउंसिल की गलती बताते हुए यह कहा कि इन छात्रों को आपके खिलाफ केस करना चाहिए। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि छात्रों को हम बताएंगे कि आपके खिलाफ किस तरह से FIR दर्ज करानी है।

सरकारी आदेश पर हाईकोर्ट की रोक

हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2024 को चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश के पैरा 3 पर भी रोक लगा दी। इस आदेश में कहा गया था कि मध्यप्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल को पुराने अधिनियमों के तहत पुनर्जीवित किया गया है और उसी आधार पर सत्र 2023-24 और आगामी सत्रों की मान्यता और परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी। इस आदेश का असर मध्यप्रदेश के 166 पैरामेडिकल कॉलेजों पर पड़ेगा, जिन्हें 2025 में कई कोर्सों के लिए मान्यता दी गई थी।

कोर्ट में यह सवाल भी खड़ा हुआ कि “जब किसी कॉलेज को उस सत्र में मान्यता ही नहीं मिली थी, तो उसमें छात्रों को प्रवेश कैसे दिया गया? फिर तीन साल बाद उस सत्र को मान्य कैसे किया जा सकता है?” यह कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए फैसलों – जैसे नर्मदा इंस्टिट्यूट बनाम एमपीएमएसयू और स्टार स्कूल समिति बनाम राज्य सरकार के सीधे विरुद्ध है।

अगली सुनवाई 22 जुलाई को

हाईकोर्ट ने इस मामले को 22 जुलाई 2025 को दोपहर 3 बजे के लिए सूचीबद्ध किया है। तब तक 2023-24 और 2024-25 सत्र की सभी मान्यताओं, एडमिशन और परीक्षाओं पर पूर्ण रोक लागू रहेगी। अब राज्य सरकार और पैरामेडिकल काउंसिल को कोर्ट को यह स्पष्ट करना होगा कि इस शैक्षणिक गड़बड़ी और अवैध मान्यताओं के लिए कौन जिम्मेदार है। साथ ही, उन्हें यह भी बताना होगा कि छात्रों को किस तरह की राहत दी जाएगी।

सीबीआई के डाटा की हुई मांग

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता विशाल बघेल ने कोर्ट से सीबीआई द्वारा की गई जांच का डाटा मांगा। उन्होंने बताया कि सीबीआई यह डाटा डिजिटल फॉर्मेट में नहीं दे रही है। कोर्ट को यह भी बताया गया कि सीबीआई के अधिकारी घूस लेते हुए पकड़े गए हैं, जिससे डाटा पर संदेह है। सरकारी वकील के तर्कों से संतुष्ट होकर कोर्ट ने माना कि डाटा की मात्रा बड़ी है और डिजिटलाइजेशन में समय लगेगा। सरकार सीबीआई को कर्मचारी उपलब्ध कराएगी, जिसके बाद डाटा उपलब्ध कराया जाएगा।

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