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होप मिल/भंडारी मिल इंदौर की जमीन को लेकर 20 अगस्त को इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह के आदेश पर हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। इस टिप्पणी के साथ ही कांग्रेस से बीजेपी में गए अक्षय बम के पिता कांति लाल बम की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया गया।
बम ने इस एक हजार करोड़ की जमीन पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था और हाईकोर्ट में 20 अधिवक्ताओं को साथ में लिया था। लेकिन कलेक्टर द्वारा किया गया 19 पन्नों का आदेश इतना विस्तृत और मेरिट आधारित था और साथ ही अतिरिक्त महाधिवक्ता यानी एएजी आनंद सोनी द्वारा इस तरह तर्क रखे गए कि बम को कोई राहत नहीं मिली।
हाईकोर्ट ने यह की आर्डर पर टिप्पणी
हाईकोर्ट जस्टिस प्रणय वर्मा ने सभी तर्कों को सुनने के बाद आदेश में कहा कि- कलेक्टर का आदेश एक विस्तृत और सुविचारित आदेश है और इसमें मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विस्तार से विचार किया गया है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इसे न्यायिक विवेक के प्रयोग के बिना पारित किया गया है।
राज्य सरकार के राजस्व विभाग की दिनांक 10.02.2003 की अधिसूचना के अनुसार, भूमि आवंटन से संबंधित सभी मामलों में कलेक्टर सक्षम प्राधिकारी हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह आदेश बिना अधिकार क्षेत्र के पारित किया गया है।
सिरे से खारिज की जाती है याचिका
जस्टिस ने शासन के इस पक्ष को भी माना कि जब याचिकाकर्ता के पास अन्य विधिक उपाय मौजूद है तो यहां याचिका का कोई अर्थ नहीं है। वहीं एएजी ने सुप्रीम कोर्ट के भी एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जब याचिका मेंटेनेबल नहीं होती है तो फिर स्टे का भी मामला नहीं बनता है।
इंदौर हाईकोर्ट ने भी इस पक्ष को माना और याचिकाकर्ता बम को किसी भी तरह का स्टे और राहत देने से इंकार कर दिया। वहीं बम ने तर्क रखा था कि कलेक्टर को याचिका सुनने का क्षेत्राधिकार ही नहीं है। इस पर भी शासन के पक्ष सुनकर जस्टिस ने साफ कहा कि भू राजस्व संहिता के तहत कलेक्टर के पास यह अधिकार है और उन्होंने इसी अधिकार के तहत यह आदेश किए हैं।
कलेक्टर की घेराबंदी से घिर गए बम
अब बम के पास कलेक्टर के आदेश के खिलाफ संभागायुक्त के पास अपील के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है, वह हाईकोर्ट में रिट अपील भी दायर कर सकते हैं। उधर शासन ने भी इस मामले में पहले ही बम के हाईकोर्ट जाने की संभावना देखते हुए पूर्व में हे केविएट दायर कर दी थी। यानी कानूनी तौर पर प्रशासन ने पूरी घेराबंदी कर दी थी। इस मामले में एसडीएम प्रदीप सोनी ने कलेक्टर की ओर से कोर्ट में पूरी कमान संभाली।
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कलेक्टर ने यह किया था आदेश, यह पूरा मामला
भंडारी मिल जिसे होप टेक्सटाइल मिल भी कहा जाता है कि इसकी 1000 करोड़ से ज्यादा कीमत की 22.24 एकड़ जमीन (सर्वे नंबर 282/2) को कलेक्टर आशीष सिंह ने सरकारी घोषित कर दिया था। साथ ही इसका कब्जा ले लिया।
इस तरह केस कलेक्टर के पास गया
तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने अक्टूबर 2012 में इस जमीन को सरकारी घोषित कर दिया था। इस पर कांति बम ने 9766/2012 याचिका दायर की। इस पर एक अप्रैल 2025 को आदेश आया और कलेक्टर के आदेश को यह कहते हुए रद्द किया गया कि इसमें विधिवत सुनवाई नहीं हुई और कलेक्टर इसमें फिर से सुनवाई करे।
इसके बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने डीएम कोर्ट में इस पर केस रजिस्टर्ड कर कांति बम को नोटिस जारी किए और जवाब मांगा। इसमें दो बार नोटिस जारी किए गए और विस्तृत जवाब लिया। इसके बाद 20 अगस्त को इसमें आदेश दिया और 21 अगस्त को जिला प्रशासन ने मौके पर जाकर कब्जा ले लिया। हालांकि जिला कोर्ट की पार्किंग के लिए 4.93 एकड़ जमीन की व्यवस्था बनी रहेगी, आदेश में इसे बनाए रखा गया है और बाकी जमीन प्रशासन के कब्जे में लेने के आदेश हैं।
इस तरह हुए नोटिस
कांति बम को पहले नोटिस हुए तो बम ने कलेक्टर कोर्ट के न्यायिक क्षेत्राधिकार को ही चुनौती दी और कहा कि उन्हें सुनने के अधिकार नहीं है। इस पर कलेक्टर कोर्ट ने लिखा कि राजस्व की जमीन, पट्टेदार के जमीन के मामले को सुनने के अधिकार उन्हें कानून से प्राप्त है। साथ ही हाईकोर्ट ने भी इस केस को फिर से कलेक्टर कोर्ट को सुनने के लिए भेजा है।
इसके बाद बम को फिर नोटिस हुआ। इसमें उन्होंने विस्तार से जवाब देकर कहा कि यह जमीन कंपनी को होलकर स्टेट से 1939 में 99 साल की लीज पर मिली थी। समय-समय पर शासन के आदेश हुए। 1982 में उनके पक्ष में सरकार से आदेश हुए। फिर बीआईएफआर में भी जमीन को बिक्री के अधिकार मिले।
कलेक्टर कोर्ट आदेश यह हुए
कलेक्टर कोर्ट ने कहा कि यह जमीन पूरी तरह से लीज पर थी और लीज शर्तों का उल्लंघन करते हुए इसे बेचा गया। सुप्रीम कोर्ट के एक केस के अनुसार लीज 99 साल की हो या 999 साल की इससे किसी भी तरह भू स्वामित्व अधिकार नहीं मिलता है।
कंपनी को 1982 आदेश से जमीन के एक हिस्से के वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी सिर्फ इसलिए दी गई थी कि इससे वह मिल की नवीनीकरण करें और मजदूरों का पुनर्वास करें। यहां पर 8 एकड़ जमीन पर मिल थी, लेकिन अब वहां कुछ नहीं है, यानी मिल के नवीनीकरण को लेकर कुछ नहीं किया गया। यह लीज टेक्सटाइल उद्योग के लिए थी, लेकिन जब मिल नहीं है तो साफ है कि लीज शर्त का आधार ही खत्म हो गया है।
जब मेसर्स नंदलाल भंडारी एंड संस को जमीन लीज पर दी थी जो सबलीज देने का प्रावधान ही नहीं था, लेकिन अक्टूबर 1955 में जमीन बेच दी गई। जो लीज शर्तो का उल्लंघन है। जबकि औद्योगिक यूज के लिए सबलीज के प्रावधान तो 1967 में हुए, इसके पहले ही जमीन बेच दी।
जमीन के लिए 1982 में तय हुए आदेश के अनुसार 22.24 एकड में 8.24 एकड पर मिल है। 14 एकड में से 1.97 सडक बनाने में गई। बाकी 12.03 एकड में 60 फीसदी यानी 7.2 एकड राज्य शासन की मानी गई और 40 फीसदी यानी 4.812 कंपनी वाणिज्य व आवासीय उपयोग के लिए की गई ताकि इससे मिल का नवीनीकरण हो और मजदूरों का पुनर्वास। लेकिन कंपनी ने मिल का कुछ नहीं किया और मौके पर 8.24 एकड़ जमीन पर मिल नाम की कोई संपत्ति नहीं है, खाली मैदान है। इसलिए इस जमीन पर संबंधित तहसीलदार को आदेश दिए जाते हैं कि तीन दिन में कब्जा लें।
क्या है जमीन का केस
होलकर काल में सितंबर 1939 में नंदलाल एंड भंडारी संस को सर्वे नंबर 148, 151/1654, 148/1653 की 3.18 एकड़ और सर्वे नंबर 282/2 की 22.24 एकड़ जमीन इंडस्ट्रियल यूज के लिए दी गई। यह जमीन 99 साल की लीज पर पांच लाख रुपए में दी गई। शर्त थी की इंडस्ट्रियल यूज होगा, यह पांच लाख की राशि 50-50 हजार की किश्तों में चुकाई जाएगी और साथ ही 6000 रुपए प्रति साल का वार्षिक किराया होगा।
- साल 1967 में भोपाल सरकार की मंजूरी से इस जमीन को सब लीज किया गया।
- साल 1976 में भंडारी मिल का नाम होप टेक्सटाइल लिमिटेड हो गया।
- मिल के संकट में आने पर शासन द्वारा 60 लाख की गारंटी के अतिरिक्त मजदूर हित में 75 लाख की गारंटी और दी गई, इसके बदले में जमीन का एक हिस्सा शासन में समाहित कर दिया गया।
- तय हुआ कि 22.24 एकड में से 8.24 एकड़ जिस पर मिल है वह चलती रहेगी और इंडस्ट्रियल यूज होगा। बाकी जमीन में से करीब 2.60 एकड़ सड़क निर्माण के लिए जाएगी। बाकी बची 11.37 में से 60 फीसदी जमीन 6.8 एकड शासन के पास होगी और बाकी 40 फीसदी 4.50 एकड़ पर वाणिज्यिक व आवासीय उपयोग हो सकेगा, जिससे प्राप्त राशि से मजदूर व अन्य बकाया राशि का समयोजन होप टेक्सटाइल कंपनी द्वारा किया जाएगा।
- बाद में केस बीआईएफआर में भी गया, जो बीमार कंपनियों के निराकऱण के लिए बनी संस्था थी। यहां कंपनी ने राशि देकर केस खत्म किया।
- वहीं 2012 में इंदौर जिला प्रशासन के पास इस जमीन को लेकर शिकायतें हुई कि यह जमीन सरकारी है लेकिन यहां पर जमीन को लेकर खेल चल रहा है।
जिला प्रशासन की जांच में यह चौंकाने वाली बात आई
तत्कालीन कलेक्टर त्रिपाठी द्वारा नजूल अधिकारियों से इसकी जांच कराई गई। कमेटी ने पाया कि मौके पर मिल है ही नहीं जो 8.24 एकड़ पर बताई गई थी, यानी इंडस्ट्रियल यूज जमीन का खत्म हो चुका था। वहीं 1982 के तय शासन शर्तों के अनुसार 4.5 एकड़ जमीन पर ही वाणिज्यिक व आवासीय न्यू सियागंज होना था जो इसके विपरीत 10.21 एकड़ जमीन पर विकसित कर बेच दिया गया।
बाकी 12 एकड़ जमीन रिक्त है और बाउंड्रीवाल से घिरी हुई है। इस मामले में बम ने कलेक्टर कोर्ट में बताया कि 1996 के आदेश से सभी जमीन पर वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी मिली है और इस न्यू सियांगज विकास से 14.25 करोड़ मिले जिससे पूरी देनदारी खत्म की गई। लेकिन इन तर्कों से कलेक्टर कोर्ट सहमत नहीं हुई और उन्होंने लीज उल्लंघन मानते हुए सभी जमीन को शासकीय घोषित करते हुए कब्जे में लेने के आदेश दिए।
इस मिल में कैसे आए कांतिलाल बम
इसमें चौंकाने वाली बात कांतिलाल बम की इंट्री रही। बम साल 2003 से पहले कहीं भी नहीं थे। लेकिन जब मिल का बीआईएफआर में केस चला तब मार्च 2023 में बोर्ड आफ डायरेक्टर्स की मीटिंग हुई। इसमें इसमें बीके पोद्दार चेयरमैन, डायरेक्टर में बीआईएफआर के नामिनी डीआर गंगोपाध्याय और डायरेक्टर वीके भूस्सरे मौजूद थे। सभी ने एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर कांतिलाल बम को नियुक्त किया। इसके साथ ही बम को सभी तरह के कार्यकारी अधिकार भी जारी कर दिए गए। इसके बाद से ही बम ही अब इस मिल के सभी मामलों में औपचारिक चेहरा है। कलेक्टर कोर्ट में पहले चले केस में और अभी भी कांति बम ही इस मामले में सामने आए हैं।
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