हाईकोर्ट के आदेश की उड़ रही धज्जियां, कोर्ट की लाइव प्रोसिडिंग बनी कमाई का जरिया

चीफ जस्टिस के आदेश के बाद भी हाई कोर्ट की लाइव प्रोसिडिंग वीडियो का धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल चल रहा है। नियमों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे यह वीडियो सोशल मीडिया चैनलों के लिए कमाई का जरिया बन चुके हैं। 

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम आदेश जारी किया था। कोर्ट की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के दुरुपयोग पर सख्त रोक लगाई गई थी। दरअसल, सोशल मीडिया पर कोर्ट की कार्यवाही के वीडियो क्लिप्स को काट-छांटकर मीम, रील और शॉर्ट्स के रुप में पोस्ट किया जा रहा था। पोस्ट में न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंच रही थी।

इस पर संज्ञान लेते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की पीठ ने नवंबर 2024 में आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की कार्यवाही की कोई भी वीडियो या ऑडियो क्लिप बिना अनुमति सोशल मीडिया पर साझा नहीं की जा सकती। इन पर कॉपीराइट हाईकोर्ट का है। कोर्ट ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर से चार हफ्ते में जवाब मांगा था। सभी अनधिकृत वीडियो को तुरंत हटाने का निर्देश भी दिया था। याचिकाकर्ता डॉ. विजय बजाज ने बताया कि इन वीडियो से सोशल मीडिया कंपनियों को फायदा हो रहा है, लेकिन इससे न्यायिक प्रक्रिया का मज़ाक बन रहा है। हाईकोर्ट के पिछले आदेश के बाद भी अवैध वीडियो नहीं हटाए गए और न ही किसी जांच समिति का गठन हुआ।

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बिना अनुमति के उपयोग नहीं की जा सकती हाईकोर्ट की वीडियो 

हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो के संबंध में साल 2021 में लाइव स्ट्रीमिंग एंड रिकॉर्डिंग्स ऑफ कोर्ट प्रोसीडिंग्स नियम बनाया गया है। 7 अक्टूबर 2021 में इसका प्रकाशन "मध्य प्रदेश लाइव स्ट्रीमिंग रूल ऑफ़ कोर्ट प्रोसीडिंग्स" नाम से राजपत्र में भी किया गया है। नियम 11(B) में हाईकोर्ट के लाइव स्ट्रीमिंग के नियमों में यह स्पष्ट है कि हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग का कॉपीराइट हाईकोर्ट के पास है और बिना इजाजत के इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, वहीं नवंबर 2024 में चीफ जस्टिस के आदेश से यह साफ हो गया कि हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो को अन्य चैनल पर अपलोड कर मोनेटाइज करना यानी उससे रुपए कामना भी अवैध है।

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नियम अनुसार परमिशन मांगने पर आवेदन हुआ निरस्त

जहां एक और सोशल मीडिया चैनलों में हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग की वीडियो का उपयोग धड़ल्ले से चल रहा है वहीं दूसरी ओर जब इस लाइव स्ट्रीमिंग का समाचार के लिए इस्तेमाल किए जाने की परमिशन हाईकोर्ट से मांगी गई तो वह निरस्त कर दी गई। आपको बता दे की हाईकोर्ट के नियम अनुसार समाचार एवं शैक्षणिक कारणों के लिए हाईकोर्ट की वीडियो का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी है। लेकिन जब इस अनुमति के लिए हाईकोर्ट को आवेदन किया गया तो हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार आईटी ने ईमेल पर भेजे आवेदन का जवाब देते हुए पत्र में लिखा कि

"माननीय उच्च न्यायालय, मध्य प्रदेश की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग और लाइव-स्ट्रीमिंग की अनुमति के संबंध में, आपको सूचित किया जाता है कि लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग अदालती कार्यवाही नियम, 2021 के अनुसार इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।" जिससे एक बात को साफ हो रही हो गई की हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग का इस्तेमाल कर लाखों व्यू से रुपए कमाने वाले चैनल इन्हें अवैध रूप से अपलोड कर रहे हैं। 

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हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग बनी रुपए कमाने का जरिया

ऐसे दर्जनों चैनल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर चल रहे हैं जिनके लाखों फॉलोअर्स हैं और हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग के वीडियो डालकर यह चैनल लाखों रुपए कमा भी रहे है। The legal now नाम के यूट्यूब चैनल में 4 लाख 27 हजार सब्सक्राइबर है और इनके कुछ वीडियो में तो 5 मिलियन तक व्यू हैं।  वही UTV 24 नाम से चल रहे यूट्यूब चैनल पर 3 लाख 35 हजार सब्सक्राइबर है  इस चैनल पर भी वीडियो में कई लाख तक व्यू जाते हैं, जिससे चैनल को मोटी कमाई होती है। इसी तरह Law Chakra, Legal Lab Official, Court ki baate, Indian high court, जैसे कई चैनल हैं जो हाईकोर्ट के कॉपीराइट वीडियो को बिना परमिशन के अपलोड कर अवैध कमाई कर रहे हैं, Indian high court नाम के यूट्यूब चैनल ने तो अपने डिस्क्रिप्शन में यहां तक लिख दिया कि यह चैनल अदालत के अंदर के कुछ मजेदार पलों से प्रेरित है जिससे एक बात तो साफ हो रही है कि हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग का अवैध उपयोग कमाई का जरिया बना हुआ है और जिम्मेदार इस पर आंख मूंद कर बैठे हैं। जबकि इन चैनलों में कमेंट सेक्शन पर खुलेआम अदालतों एवं जजों तक के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की जाती हैं जो न्यायपालिका की गरिमा को सीधे ठेस पहुंचा रही हैं।

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