मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए उन दो नियमों को खारिज कर दिया है। जिनके तहत बिना खनन किए रेत खनन ठेके के दौरान तय की गई रॉयल्टी को वसूला जा रहा था। कोर्ट ने इसे "असंवैधानिक" और "मूल कानून के खिलाफ" करार दिया है। यह फैसला नर्मदापुरम जिले के एक ठेकेदार की याचिका पर लिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि खनन शुरू करने में देरी के बावजूद उन्हें रॉयल्टी चुकानी पड़ी, जो कि उनकी खनन गतिविधियों से मेल नहीं खाती थी।
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क्या कहा हाईकोर्ट ने
इस फैसले के बाद, जबलपुर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों को संविधान और संसद द्वारा स्वीकृत कानूनों के अनुरूप होना चाहिए। यदि किसी नियम का गठन मूल कानून से विपरीत होता है, तो वह मान्य नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार अब रेत खनन की वास्तविक मात्रा के आधार पर ठेका राशि का पुनर्मूल्यांकन कर सकती है और नए नोटिस जारी कर सकती है।
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इस फैसले का असर
1. ठेकेदारों के लिए राहत
बिना खनन किए रॉयल्टी की वसूली को अवैध करार देने से ठेकेदारों को राहत मिलेगी, जो कि खनन में देरी के कारण अपनी रॉयल्टी पहले ही चुका चुके थे।
2. राज्य सरकार को पुनर्मूल्यांकन का अवसर
राज्य सरकार को रेत खनन की वास्तविक मात्रा के आधार पर ठेके की राशि का पुनर्मूल्यांकन करना होगा, जिससे ठेकेदारों पर वित्तीय दबाव कम हो सकता है।
3. अन्य ठेकेदारों पर प्रभाव
जिन जिलों में ठेकेदारों ने रॉयल्टी चुकाई थी, वे भी अब नए नियमों के तहत अपने पैसे वापस पा सकते हैं या नए नोटिस का सामना कर सकते हैं।
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राज्य सरकार की नीति पर असर
यह फैसला भविष्य में राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए खनन नियमों और नीतियों के पुनरीक्षण का कारण बन सकता है, जिससे भविष्य में ऐसे नियमों के निर्माण में सावधानी बरती जाएगी। यह निर्णय राज्य सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि वह अपनी नीतियों को संविधान के अनुरूप बनाकर ही लागू करें, या कोर्ट द्वारा उन पर सवाल उठाए जा सकते हैं।
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