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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 19 साल से मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे बुजुर्ग दयाराम चौहान को न्याय दिलाया है। नगर निगम की उदासीनता और लापरवाही के चलते वर्षों तक दयाराम को अपने हक के लिए संघर्ष करना पड़ा। आखिरकार हाईकोर्ट के आदेश पर जबलपुर नगर निगम कमिश्नर के कार्यालय में तालाबंदी के निर्देश दिए गए।
कोर्ट के इस कड़े रुख के बाद, नगर निगम को आनन-फानन में कार्रवाई करनी पड़ी और पीड़ित को 4 लाख 20 हजार रुपए का भुगतान करना पड़ा। हाईकोर्ट के इस फैसले को प्रशासनिक लापरवाही पर एक सख्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है, जिससे भविष्य में सरकारी विभागों द्वारा आम नागरिकों के अधिकारों का हनन करने से पहले वे दो बार सोचेंगे।
सड़क के लिए अधिग्रहित की थी जमीन
दयाराम चौहान जबलपुर के हाथीताल कॉलोनी के निवासी हैं। उनकी जमीन, जो वर्षों से उनके परिवार की संपत्ति रही थी, को नगर निगम ने वर्ष 2006 में सड़क निर्माण के लिए अधिग्रहित कर लिया। नगर निगम ने इस दौरान उन्हें आश्वासन दिया था कि उन्हें जल्द ही उचित मुआवजा प्रदान किया जाएगा। लेकिन साल दर साल गुजरते गए, और दयाराम चौहान को न तो कोई भुगतान मिला और न ही उनकी कोई सुनवाई हुई।
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पीड़ित बुजुर्ग ने पहले नगर निगम कार्यालयों के कई चक्कर लगाए, अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर अपनी स्थिति बताई, लेकिन हर बार उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि प्रक्रिया चल रही है। इस दौरान दयाराम चौहान ने कई वकीलों की मदद ली, जिन्होंने उन्हें हर बार केवल कानूनी प्रक्रिया का हवाला देकर धैर्य रखने को कहा। लेकिन इस धैर्य का कोई परिणाम नहीं निकला और आखिरकार उम्र के इस पड़ाव पर भी उन्हें अपने हक के लिए संघर्ष करना पड़ा।
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हाईकोर्ट के आदेश को किया गया नजरअंदाज
दयाराम चौहान ने न्याय की उम्मीद में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उनकी याचिका पर विचार करते हुए नगर निगम को कई बार निर्देश दिए कि उन्हें जल्द से जल्द उनका मुआवजा दिया जाए। लेकिन नगर निगम की ओर से हर बार आदेश की अवहेलना की गई और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अदालत ने जब देखा कि नगर निगम जानबूझकर अपने दायित्वों से बच रहा है और नागरिकों के अधिकारों को नजरअंदाज कर रहा है, तो न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाया। हाईकोर्ट ने नगर निगम कमिश्नर के कार्यालय में तालाबंदी कर कुर्की करने का आदेश दिया। यह फैसला सरकारी तंत्र की लापरवाही के खिलाफ एक बड़ी चेतावनी के रूप में देखा गया।
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अदालत के सख्त रुख के बाद निगम को झुकना पड़ा
जब हाईकोर्ट ने कुर्की और तालाबंदी का आदेश दिया, आदेश के आते ही जैसे ही कोर्ट से तालाबंदी करने मचकुरी नगर निगम कार्यालय पहुंचा तो तो नगर निगम प्रशासन हरकत में आया। अधिकारियों को जब एहसास हुआ कि अब टालमटोल करने का कोई विकल्प नहीं बचा है, तो वे तुरंत सक्रिय हुए और सारी कागजी प्रक्रिया पूरी कर बुजुर्ग को 4 लाख 20 हजार 195 रुपए का चेक दिया गया। अगर यह आदेश नहीं आता, तो शायद नगर निगम इस मामले को और वर्षों तक टालता रहता, और एक बुजुर्ग नागरिक को न्याय से वंचित रखा जाता। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि जब तक प्रशासन पर दबाव नहीं बनाया जाता, तब तक आम नागरिकों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
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हाईकोर्ट ने नगर निगम कमिश्नर को भेजा नोटिस
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में नगर निगम के गैर-जिम्मेदाराना रवैये को गंभीरता से लेते हुए नगर निगम कमिश्नर को नोटिस जारी किया। अदालत ने स्पष्ट रूप से पूछा कि "अदालती आदेश के बावजूद अब तक भुगतान क्यों नहीं किया गया? इतने वर्षों तक पीड़ित को मुआवजा देने में देरी क्यों की गई?" अदालत ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि भविष्य में इस तरह की लापरवाही पाई गई, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर व्यक्तिगत रूप से सख्त कार्रवाई की जाएगी। न्यायालय के इस रुख ने सरकारी विभागों को स्पष्ट संदेश दिया कि नागरिकों के अधिकारों की अनदेखी अब महंगी पड़ेगी।