पशु क्रूरता से मरे घोड़े, प्रशासन ने बनाया बीमारी का बहाना

हैदराबाद से जबलपुर लाए गए 8 घोड़ों की मौत पर प्रशासन पर पूंजीपतियों से मिलीभगत का आरोप लगा है। मौत की वजह ग्लैंडर्स बीमारी बताई गई। पशु प्रेमी जांच में धांधली का आरोप लगा रहे हैं।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. हैदराबाद से जबलपुर लाए गए घोड़ों की मौत के मामले में जबलपुर प्रशासन पर ही पूंजीपतियों से मिलीभगत का आरोप लग गया है। इस मामले में मेनका गांधी के फोन कॉल के बाद कार्रवाई शुरू हुई थी, लेकिन जांच पर पशु प्रेमियों द्वारा लीपापोती के आरोप लगाए गए हैं।

जबलपुर जिला प्रशासन ने जानकारी जारी करते हुए बताया था कि एक निजी रेस कोर्स में हैदराबाद से आए 57 घोड़ों में से 8 घोड़ों की मौत हो गई है, इन घोड़ों की मौत के बाद एक अनजान बीमारी का डर फैल गया था। जानकारी दी गई की घोड़े को ग्लैंडर्स (एक संक्रामक रोग है जो बर्कहोल्डरिया मैलेई नामक बैक्टीरिया के कारण होता है) नाम की एक बीमारी होती है।

दुनिया में कई जगह घोड़े से यह बीमारी आदमियों तक भी पहुंचती है। इस बीमारी में बैक्टीरिया घोड़े के शरीर में जन्म लेता है उसके शरीर में गांठें बनती हैं और इन्हीं की वजह से उसकी मौत हो जाती है। लेकिन इस मामले में पशु प्रेमियों ने ऐसे आरोप लगाए हैं कि प्रशासन और इस पूरी जांच को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। 

हैदराबाद से ले गए थे अवैध रेस के घोड़े 

इस मामले में पत्रकारों की चर्चा करते हुए एनिमल एक्टिविस्ट सिमरन इस्सर ने बताया कि हैदराबाद में घोड़े की अवैध रेस कराकर उसके ऊपर ऐप पर सट्टा लगाया जाता था। इस मामले में हैदराबाद रेस कोर्स का अध्यक्ष भी शामिल था।

तेलंगाना सरकार को जब इस मामले की सूचना लगी तो इस जगह पर रेड होने के पहले ही लगभग 157 घोड़े गायब कर दिए गए। इसमें से 100 घोड़े की देखरेख के चलते पहले ही मौत हो चुकी है और 57 घोड़े जबलपुर ले गए थे। 

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देखभाल की कमी और क्रूरता के चलते हुई घोड़े की मौत

इन घोड़े के जबलपुर लाए जाने की सूचना जब पशु प्रेमियों को लगी तो उन्होंने इसकी खोज चालू की। 3 मई को यह पता चला कि यह घोड़े पनागर का सचिन तिवारी नाम का व्यक्ति लेकर आया है। इसके बाद पशु प्रेमियों ने एनिमल वेलफेयर एसोसिएशन सहित हॉर्स ब्रीडिंग संगठन जैसे अन्य संगठनों की सहायता से प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों ने इस सारनुमा अस्तबल में घोड़ों की जांच की और यह पाया कि घोड़े की देखरेख में भारी कमी बरती जा रही है। कुछ घोड़े इसमें घायल अवस्था में भी थे।

इसके बाद पशु प्रेमियों के द्वारा जबलपुर जिला कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों को भी इस पशु क्रूरता की घटना की जानकारी दी लेकिन कोई कार्यवाही न होने के बाद उन्होंने मेनका गांधी से संपर्क किया और मेनका गांधी का फोन जबलपुर प्रशासन को आने के बाद प्रशासन अलर्ट मोड पर आया। लेकिन उसके बाद भी जांच के नाम पर मामले में लीपापोती करने के आरोप लगे हैं।

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पहले ही पता था कि नहीं है ग्लैंडर्स नाम की बीमारी

एनिमल एक्टिविस्ट सिमरन ने बताया कि प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों ने पहले ही यह बता दिया था कि घोड़े को किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं है बल्कि उनके साथ बरती गई क्रूरता और देखभाल की कमी के कारण घोड़े की मौत हो रही है।

उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में जांच करने में प्रशासन ने हीलाहवाली बरती है और पूंजीपति मालिकों को बचाने के लिए पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मामला दर्ज ना करके घोड़ों की तथाकथित बीमारी ग्लैंडर्स की जांच की जिसमें जांच रिपोर्ट नेगेटिव निकली।

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पशु क्रूरता अधिनियम पर एफआईआर दर्ज करने की मांग 

इस मामले में एनिमल एक्टिविस्ट सिमरन नया आरोप लगाया है कि 9 मई को उन्होंने जबलपुर के कलेक्टर सहित सपा और पशु विभाग को इस मामले में जानकारी दे दी थी उसके बाद भी जांच के बहाने इस मामले में टालमटोल की गई है। सिमरन ने आरोप लगाया कि इस मामले में अस्तबल के मालिक सचिन तिवारी के ऊपर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो वह हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करेंगी।

अब एक और प्रशासन का दावा है कि इस मामले में विस्तृत जांच की गई है वहीं दूसरी ओर इस जांच पर ही एनिमल एक्टिविस्ट और संगठनों ने सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना होगा कि इस मामले में जनहित याचिका दायर होने के बाद हाईकोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है।

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