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Housing Board fails in planning Photograph: (THE SOOTR)
BHOPAL. जमा पूंजी के मामले में बेहतर स्थिति में रहने वाले मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड को अपने ही अधिकारियों की नजर लग गई है। अधिकारियों की दोयम दर्जे की प्लानिंग के चलते न केवल बोर्ड की कमाई घटी है बल्कि उसकी जमा पूंजी में भी कमी आई है। हुकुमचंद मिल की 436 करोड़ से ज्यादा की देनदारियां इंदौर नगर निगम से अपने सिर पर लेकर हाउसिंग बोर्ड डेढ़ साल पहले ही भुगतान कर चुका है। बोर्ड को इसके लिए 1500 करोड़ का फिक्स डिपॉजिट तुड़वाना पड़ा जिससे 16 माह में करीब 40 करोड़ के ब्याज का नुकसान भी हुआ है। हुकुमचंद मिल की 43 एकड़ जमीन पर बड़े प्रोजेक्ट से बेहिसाब कमाई का सपना दिखाकर बोर्ड के 450 करोड़ उलझाने वाले अफसर अब तक प्लानिंग तक नहीं कर पाए हैं। वहीं टेंडर शर्तों में बदलाव कर जिस कंपनी को प्लानिंग का जिम्मा सौंपा गया था वह महीनों के टालमटोल के बाद हाथ खड़े कर चुकी है। इस वजह से बोर्ड को प्लानिंग के लिए नए सिरे से टेंडर बुलाने पड़े हैं। अब प्लानिंग कई महीने पिछड़ सकती है। उधर हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट की प्लानिंग की टाइम लिमिट तय न होने से इंदौर नगर निगम को मुनाफे में अपनी हिस्सेदारी के लिए कई साल लग सकते हैं।
एफडी तुड़वाने में आगे, प्लानिंग में पीछे
कुछ साल पहले तक मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड प्रदेश सरकार के लिए कमाई करने वाला संस्थान था। कुछ साल पहले की बात करें तो बोर्ड के पास 1500 करोड़ से ज्यादा की एक एफडी थी। इसके अलावा भी बोर्ड खासी जमापूंजी का मालिक था लेकिन अधिकारियों की गलत प्लानिंग का ग्रहण उसकी साख पर लग गया। भोपाल में मनमाने प्रोजेक्ट लाने वाले अधिकारियों ने हुकुमचंद मिल की जमीन से कमाई के सपने दिखाकर बोर्ड के 450 करोड़ उलझा दिए हैं। इसके लिए इंदौर नगर निगम से करार करने में बोर्ड के अधिकारियों ने जितनी जल्दबाजी दिखाई अब उतनी ही अनदेखी कर रहे हैं। प्लानिंग में भी अधिकारियों ने मनमानी की और टेंडर प्रक्रिया को प्रतिस्पर्धा से दूर कर दिया। जबकि टेंडर में बेवजह शर्तें न जोड़ी गई होती तो कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा का फायदा बोर्ड को ही होता। मनमानी शर्तों का नतीजा है कि बोर्ड डेढ़ साल बाद भी प्लानिंग से कोसों दूर रह गया और दूसरा टेंडर जारी करना पड़ा है।
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काम छोड़ने पर भी कंपनी को भुगतान
इंदौर नगर निगम से मिली हुकुमचंद मिल परिसर में 26 एकड़ में कमर्शियल और 17 एकड़ में हाउसिंग प्रोजेक्ट लाने की तैयारी बोर्ड ने की थी। अधिकारियों का मानना था कि इससे बोर्ड को तगड़ी कमाई होगी। अधिकारियों ने अपनी चहेती कंपनी को प्लानिंग का काम देने के लिए टेंडर की शर्तों को भी बदल दिया। टेंडर में ऐसी शर्तें शामिल की गई जिससे प्लानिंग का काम करने वाली एमपी की कंपनियां प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गईं। प्रदेश के बाहर की कंपनी सीबीआरई और कोलियर्स ही मुकाबले में पहुंच सकीं। फरवरी 2024 में वर्क ऑर्डर मिलने के बाद सीबीआरई को मार्केट सर्वे और प्लानिंग की रिपोर्ट तैयार करने तीन माह का समय मिला था। कंपनी 8 महीने तक टालती रही और फिर काम छोड़कर चली गई। इसके बाद भी अधिकारियों ने कंपनी को 15 लाख का भुगतान भी करा दिया। भुगतान किसके आदेश पर किया गया इस पर भी सवाल उठ रहे हैं।
अब नए सिरे से हो रही प्लानर की तलाश
मध्यप्रदेश हाउसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेव्लपमेंट बोर्ड के पूर्व कमिश्नर चंद्रमौली शुक्ला के बाद आईएएस अफसर राहुल हरिदास फटिंग ने जिम्मेदारी संभाली है। फटिंग ने हुकुमचंद मिल परिसर की प्लानिंग के काम में हो रही देरी और कंपनी के काम छोड़ने के बाद नई कंपनी की तलाश तेज करा दी है। इसके लिए टेंडर भी जारी कर दिए गए हैं। संभवतया मई महीने में हाउसिंग बोर्ड किसी कंपनी को चुनकर प्लानिंग का काम उसे सौंप सकता है। अधिकारियों के अड़ियल रवैए के बीच नई कंपनी के चयन के बाद प्लानिंग रफ्तार पकड़ेगी या उसमें भी महीनों लगेगा ये भविष्य के गर्त में है। नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर नरेन्द्र नाथ पांडेय का कहना है कि प्लानिंग से लेकर सारी जिम्मेदारी हाउसिंग बोर्ड की है। नगर निगम का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। निगम ने जमीन की रजिस्ट्री भर की है। जमीन पर प्लानिंग को लेकर निगम के पास कोई जानकारी नहीं है।
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प्लानिंग में देरी से निगम को भी नुकसान
हुकुमचंद मिल की देनदारियों से पीछा छूटने के बाद नगर निगम इंदौर चुप्पी साधे बैठा है। जबकि इस जमीन पर तैयार होने वाले आवासीय और व्यावसायिक प्रोजेक्ट से जो कमाई होगी उसमें निगम की 50 फीसदी हिस्सेदारी है। यानी समय पर प्रोजेक्ट अस्तित्व में आते हैं तो नगर निगम को करोड़ों रुपए का फायदा होगा और उसे अपने कामों को आगे बढ़ाने के लिए धन की कमी से उबरने का भी मौका मिलेगा। इसके बाद भी इंदौर नगर निगम के अधिकारी अपनी हिस्सेदारी के लिए हाउसिंग बोर्ड पर दबाव नहीं बना पा रहे हैं। यही वजह है कि हुकुमचंद मिल परिसर में प्लानिंग और प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए दोनों संस्थाओं के बीच टाइम लिमिट ही तय नहीं हुई।
देनदारी-रजिस्ट्री पर खर्च, कमाई से दूर
इंदौर नगर निगम के अधीन हुकुम चंद मिल के मजदूरों की देनदारी चुकाने के लिए मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने जल्दबाजी दिखाई थी। देनदारी चुकाने के लिए सरकार ने 50 करोड़ रुपए शुरूआत में खर्च किए थे। इसके बाद नगर निगम ने जमीन हाउसिंग बोर्ड को सौंप दी। बदले में करीब 436 करोड़ की देनदारी का भुगतान बोर्ड के हिस्से में आ गया। बोर्ड ने प्लानिंग के बिना अपनी जमापूंजी से यह राशि चुका दी। इसके अलावा उसे नगर निगम से मिली जमीन की रजिस्ट्री पर 27 करोड़ रुपए अलग से खर्च करना पड़े। जमीन हाथ में आने के बाद डेढ़ साल में बोर्ड इस पर 463 करोड़ खर्च कर चुका है। उसे सरकार से मिले 50 करोड़ भी चुकाने हैं। इस पर भी अधिकारियों का रवैया ऐसा है कि न तो धरातल पर प्लानिंग नजर आ रही है और न साल_दो साल में कोई प्रोजेक्ट शुरू होने के आसार दिख रहे हैं।
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