बेच डाली 60 एकड़ सरकारी जमीन,पेशी से बच रहे 3 IAS को लोकायुक्त ने दी कड़ी चेतावनी

मध्यप्रदेश में नौकरशाही प्रमुख जांच एजेंसियों को लेकर गंभीर नहीं है। जमीन घोटाले से जुड़े एक केस में अफसरों को तलब करने लोकायुक्त को कड़ा रुख अपनाना पड़ा।

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Ravi Awasthi
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रूपेश जैन,टीकमगढ़/भोपाल।
मप्र लोकायुक्त ने समंस जारी कर प्रदेश के तीन आईएएस अफसरों को आगामी 4 जुलाई को तलब किया है। समंस में कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि तय तारीख पर अफसर नहीं आए तो फिर वारंट भी जारी किया जा सकता है। 

सूत्रों के मुताबिक,मामला टीकमगढ़ जिले की खरगापुर तहसील का है। वहां की 60 एकड़ सरकारी जमीन को एक फर्जी आदेश के आधार पर 27 लोगों के नाम दर्ज कर दिया गया। यही नहीं,संबंधित तहसीलदार ने इनका नामांतरण कर राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज कर दिया। इस प्रकरण में सरकार को अपना पक्ष रखने लोकायुक्त ने कलेक्टर निवाड़ी,कमि​श्नर सागर व प्रमुख सचिव राजस्व को बीते करीब एक साल में चार बार तलब किया।

पहला नोटिस गए साल 22 जुलाई,दूसरा 23 सितंबर,तीसरा 12 दिसंबर व चौथा गत 18 मार्च को जारी किया गया,लेकिन तीनों ही अ​फसरों ने इन्हें कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। 

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उपेक्षा से नाराज हुए लोकायुक्त

लोकायुक्त संगठन के नोटिस को इस तरह नजर अंदाज किया जाना लोाकयुक्त जस्टिस सत्येंद्र कुमार सिंह को नागवार गुजरा। इसके बाद जस्टिस सिंह के निर्देश पर संगठन के विधि सलाहकार चंद्रदेव शर्मा के हस्ताक्षर से तीनों अफसरों के खिलाफ हाल ही में समंस जारी किए गए। इनके जरिए राजस्व प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल,सागर कमिश्नर डॉ वीरेंद्र कुमार रावत व टीकमगढ़ कलेक्टर विवेक श्रोत्रिय को आगामी 4 जुलाई को मय तथ्यों के साथ तलब किया गया है। हालांकि संबंधित गड़बड़ी पूर्व आयुक्त व पूर्व कलेक्टर के कार्यकाल की बताई जाती है। 

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फर्जी आदेश और बिक गई 60 एकड़ सरकारी जमीन

मामला टीकमगढ़ जिले की खरगापुर तहसील का है। यहां बीते साल ग्राम रमसगरा में सहकारी समिति की सामूहिक 60 एकड़ कृषि भूमि को फर्जी आदेश के माध्यम से 27 लोगों के नाम पर दर्ज कर दिया गया। यह आदेश तत्कालीन एसडीएम विजय कुमार सेन के नाम से कूट रचित (फर्जी) रूप से जारी हुआ था, जिसे तत्कालीन पटवारी ने अमल में लाकर सभी 27 लोगों के नाम ज़मीन दर्ज कर दी।

इसमें से 14.60 एकड़ भूमि में से चार व्यक्तियों ने 24 मार्च 2024 को क्रांति देवी दीक्षित और राम देवी दीक्षित के नाम रजिस्ट्री कर दी। रजिस्ट्री के कुछ समय बाद ही वर्तमान तहसीलदार ने इस पर तत्काल नामांतरण कर इसे भू-अभिलेख में दर्ज कर दिया।

जब ग्रामीणों ने इस मामले को पटवारी से लेकर स्थानीय प्रशासन तक उठाया, तो यह मामला तूल पकड़ गया और ज़मीन घोटाले की परतें खुलने लगीं।

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निवाड़ी में भी माफिया को लाभ पहुंचाने बदला खसरा

टीकमगढ़ की ही तरह निवाड़ी में भी भू-माफिया सक्रिय है। यहां भी सरकारी अमले की सांठगांठ से आदिवासियों की जमीन हड़पने का खेल जारी है। सूत्रों के अनुसार,मामला ओरछा तहसील के एक आदिवासी किसान की जमीन के दस्तावेजों में हेराफेरी से जुड़ा है।

लोकायुक्त संगठन में दर्ज शिकायत में मामले में संभागीय मुख्यालय के एक अपर आयुक्त,जिले के तत्कालीन कलेक्टर,तहसीलदार व पटवारी पर मिलीभगत के आरोप लगे। इसमें कहा गया कि किस तरह माफिया को लाभ पहुंचाने की गरज से अफसरों व मैदानी अमले ने जमीन के दस्तावेजों में हेराफेरी की।

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आवेदन पत्र ने खोली गठबंधन की पोल

उत्तरप्रदेश के लक्ष्मनपुरा निवासी गंसी सौर की लगभग साढ़े पांच एकड़ पट्टे की जमीन महेश सौर नामक व्यक्ति को 1991 में रजिस्ट्री के माध्यम से दी गई थी।यह दो खसरों में दर्ज रही। महेश सौर ने 33 वर्षों तक इस जमीन का नामांतरण नहीं कराया, न आगे ही कभी इसके लिए आवेदन ही दिया।

सागर राजस्व अपर आयुक्त भी जांच के दायरे में

बावजूद इसके मार्च 2024 में अपर कमिश्नर सागर  ने एक आदेश जारी कर एक अतिरिक्त खसरा नंबर को जोड़ते हुए दोनों खसरों की पूरी जमीन को इसमें मर्ज कर दिया। इसमें नियमों का उल्लंघन हुआ, विशेष रूप से भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165(7)(ख) का।

गड़बड़ी उस वक्त उजागर हुई जब बीते साल मार्च में परिवर्तित खसरे की जमीन को बेचने के लिए एक आवेदन जिला कलेक्टर कार्यालय को मिला। एक आरटीआई एक्टिविस्ट ऋषभ जैन ने उक्त दोनों ही मामलों की शिकायत लोकायुक्त संगठन को की। निवाड़ी प्रकरण में भी संबंधित अधिकारियों के खिलाफ जांच जारी है।