फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट से हासिल कर बने सहायक प्राध्यापक, अब हटाना मुश्किल

देश में ट्रेनी आईएएस अफसर पूजा खेड़कर के दिव्यांगता प्रमाण पत्र को लेकर विवाद गरमाया हुआ है। वहीं प्रदेश में 2019 में हुई सहायक प्राध्यापक भर्ती भी सवालों के घेरे में है। उच्च शिक्षा विभाग में ये भर्तियां एमपीपीएससी के माध्यम से की गई थीं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL : ट्रेनी आईएएस अफसर पूजा खेड़कर के दिव्यांग प्रमाण पत्र की चर्चा के बीच मध्यप्रदेश में भी सरकारी नौकरी के लिए ऐसे फर्जीवाड़े अब खुलने लगे हैं। एमपीपीएससी द्वारा साल 2019 में की गई सहायक प्राध्यापकों की भर्ती में कई उम्मीदवारों ने फर्जी प्रमाण पत्र लगाए थे। इस खुलासे के बाद उच्च शिक्षा विभाग के आदेश पर प्रदेशभर में ऐसे सहायक प्राध्यापकों का फिटनेस चेकअप कराया जा रहा है। मेडिकल बोर्ड की परीक्षण रिपोर्ट ने भी फर्जीवाड़े की पुष्टि कर दी है। अब फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्रों के जरिए सहायक प्राध्यापक बनकर चार साल से नौकरी करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर ली गई है। हांलाकि उन्हें नौकरी से बाहर करना इतना आसान नहीं है। फर्जीवाड़े से नौकरी के असल हकदारों को जो नुकसान हुआ है क्या उसकी भरपाई हो सकती है। यह सवाल नियुक्ति प्रक्रिया संभालने वाले अधिकारियों से है।

दिव्यांगता प्रमाण पत्र को लेकर विवाद गरमाया

मध्यप्रदेश में शायद ही कोई नियुक्ति की प्रक्रिया शेष रह गई हो जिस पर अंगुली न उठाई गई हो। ईएसबी यानी कर्मचारी चयन मंडल से लेकर एमपीपीएससी की एक भी भर्ती दोषमुक्त नहीं कही जा सकती। देश में जहां ट्रेनी आईएएस अफसर पूजा खेड़कर के दिव्यांगता प्रमाण पत्र को लेकर विवाद गरमाया हुआ है। वहीं प्रदेश में 2019 में हुई सहायक प्राध्यापक भर्ती भी सवालों के घेरे में है। उच्च शिक्षा विभाग में ये भर्तियां एमपीपीएससी के माध्यम से की गई थीं। भर्ती प्रक्रिया शुरूआत से ही विवादों में घिरी रही। लेकिन शिकायतों को दरकिनार कर एमपीपीएससी ने नियुक्ति कर डाली। उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट की शरण ली लेकिन दिव्यांग कोटे और बैकलॉग पदों को अलग करने के मापदंडों को अनदेखा कर दिया गया। मनमाने तरीके से की गई इन भर्तियों की परतें अब खुल ही हैं। इसी से जुड़े एक मामले में शिकायत सीएम हेल्पलाइन पर भी की गई है। वहीं उच्च शिक्षा विभाग के आदेश पर संभाग स्तर पर सहायक प्राध्यापकों का परीक्षण कराया जा रहा है।

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नियुक्ति के समय सत्यापन कराना ही भूले

साल 2017 में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 7 सौ से ज्यादा पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसकी जिम्मेदारी एमपीपीएसी को सौंपी गई थी। भर्ती के लिए इश्तहार जारी होने के साथ ही इस पर विवाद शुरू हुए तो कुछ उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में अपील भी दायर कर दी थी। हाईकोर्ट के आदेश पर दिव्यांगजन आरक्षण के संदर्भ में पुनरीक्षण भी किया गया था। लेकिन तब तक भर्ती प्रक्रिया आगे बढ़ चुकी थी। एमपीपीएससी द्वारा चयनित उम्मीदवारों को उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सहायक प्राध्यापक के रूप में 2019 में नियुक्ति दे दी गई। यहां भी एमपीपीएससी और उच्च शिक्षा विभाग से बड़ी चूक हो गई। या कहें जानबूझकर उम्मीदवारों द्वारा पेश  दिव्यांग प्रमाण पत्रों का सत्यापन नहीं कराया गया।

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अब करा रहे सहायक प्राध्यापकों की जांच

साल 2019 में हुई सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के बाद लगातार हो रही शिकायतों को देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग सहायक प्राध्यापकों की शारीरिक अशक्तता की जांच करा रहा है। इसके लिए दो साल पहले सितम्बर 2022 में उच्च शिक्षा आयुक्त द्वारा संभाग स्तर पर अधिकारी तैनात किए गए थे। हांलाकि जांच नहीं हुई। इसके बाद अक्टूबर 2023 में फिर उच्च शिक्षा विभाग के आदेश पर सहायक प्राध्यापकों को मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होने नोटिस जारी किए गए। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रीवा, ग्वालियर, उज्जैन और नर्मदापुरम संभागों में ऐसे 50 से ज्यादा लोगों तक नोटिस पहुंचे। लेकिन कई सहायक प्राध्यापक जांच कराने मेडिकल बोर्ड के सामने पेश नहीं हुए हैं, तो किसी ने एक्स-रे और दूसरे दस्तावेज देने में हीला हवाला किया। ग्वालियर संभाग में भी ऐसे 19 सहायक प्राध्यापकों को जांच के लिए बुलाया गया लेकिन उनमें से कुछ ही मेडिकल बोर्ड के सामने पहुंचे। इस बीच बाकी के लोगों ने आचार संहिता और चुनाव ड्यूटी का बहाना बना दिया। साल की शुरूआत में मिली जांच रिपोर्ट में इनमें से कुछ सहायक प्राध्यापकों में दिव्यांग प्रमाण पत्र के मुताबिक शारीरिक अक्षमता नहीं मिली है। ऐसे ही  एक मामले में सीएम हेल्पलाइन पर भी शिकायत दर्ज कराई गई है।

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हेल्थ चेकअप में पकड़ी गई गड़बड़ी

नियुक्ति के लिए फर्जी प्रमाण पत्रों का उपयोग कैसे हुआ इसकी बानगी भी बताते हैं। भिंड के गोरमी कॉलेज में पदस्थ सहायक प्राध्यापक मोहित कुमार दुबे को पहले गुना जिले के आरोन कॉलेज में नियुक्ति मिली थी। बाद में उन्होंने अपना ट्रांसफर भिंड जिले में करा लिया। दुबे ने नियुक्ति के समय अस्थिबाधित होने का प्रमाण पत्र पेश किया था। दाहिने पांव में चोट के चलते उन्हें 40 फीसदी दिव्यांग बताया गया था। कई बार बुलाने के बाद मोहित कुमार मेडिकल बोर्ड के सामने पेश हुए तो जांच में अस्थिबाधित होने की पुष्टि नहीं हुई। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर ग्वालियर में  पदस्थ उच्च शिक्षा विभाग के प्रभारी असिस्टेंट डायरेक्टर प्रो. कुमार रत्नम ने दुबे पर कार्रवाई की अनुशंसा की है। प्रो. रत्नम के अनुसार मोहित कुमार प्रमाण पत्र के अनुरूप अस्थिबाधित नहीं पाए गए हैं। उन्हें कोई नेत्र रोग भी नहीं है। यह रिपोर्ट मुख्यालय भेजी गई है। दुबे के अलावा मुरैना कॉलेज में पदस्थ प्रदीप सिकरवार, झाबुआ के पदस्थ हरिओम अग्रवाल, रीवा में कार्यरत सुलभा सिंह, बालाघाट कॉलेज में पदस्थ पवन कुमार के दिव्यांग प्रमाण पर भी संदेह के दायरे में हैं।

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जवाबदेही निभाते तो नहीं मारा जाता हक

नियुक्ति के चार साल बाद उच्च शिक्षा विभाग की नींद खुली और शिकायतों की  जांच के लिए जब मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया तो कई सहायक प्राध्यापकों के अशक्तता प्रमाण पत्र संदेह के घेरे में आ गए हैं। असिस्टेंट डायरेक्टरप्रो.कुमार रत्नम ने इस फर्जीवाड़े के सहारे नौकरी पाने वालों पर कार्रवाई की अनुशंसा की गई है। लेकिन चार साल तक वेतन- भत्तों सहित अन्य सुविधाएं लेने वाले इन सहायक प्राध्यापकों को बाहर करना आसान नहीं है। जानकारों का कहना है शारीरिक अशक्तता लगातार उपचार के चलते घट भी सकती है। ऐसे में नौकरी के समय 40 फीसदी अस्थिबाधित व्यक्ति अब ठीक भी हो सकता है। या शारीरिक अक्षमता बढ़ सकती है। इस वजह से आंखों से कम दिखाई देना, सुनने में परेशानी और हड्डियों से संबंधित रोगियों के प्रमाण पत्र फर्जी साबित करना काफी मुश्किल होगा। वहीं सबसे ज्यादा लोग इन्हीं से संबंधित दिव्यांग प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी पाने वाले हैं।

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