आईएएस संतोष वर्मा केस: दो जज निलंबित, एक जज ट्रांसफर, लोक अभियोजक, कोर्ट बाबू भी उलझे, ऐसे हुआ पूरा कांड

इंदौर में आईएएस संतोष वर्मा पर महिला के जरिए धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था। इस मामले में न्यायिक भ्रष्टाचार, फर्जी आदेशों और न्यायिक अधिकारियों की मिलीभगत के गंभीर आरोप लगे हैं। जानें इस पूरी के बारे में विस्तार से...

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Sanjay Gupta
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INDORE. ब्राह्मण समाज को लेकर टिप्पणी कर उलझे प्रमोटी आईएएस संतोष वर्मा केस दिन-ब-दिन उलझता जा रहा है। इस केस ने पूरे न्यायिक सिस्टम को हिला दिया है।

इस केस में अब तक दो जज निलंबित हो चुके हैं। एक जज का ट्रांसफर हो गया है। एक टाइपिस्ट गिरफ्तार होकर पुलिस रिमांड में जा चुके हैं। साथ ही जिला लोक अभियोजक भी उलझ चुके हैं।

खुद वर्मा का आईएएस अवार्ड और नौकरी दोनों खतरे में हैं। इस केस की पूरी A से Z उलझी हुई कहानी और इसके किरदारों की चर्चा दे रहा है पूरी इन-डेप्थ खबर।

संतोष वर्मा केस के फेर में इन सभी पर आंच

एडीजे विजेंद्र सिंह रावत

संतोष वर्मा के खिलाफ महिला के जरिए कराए गए केस में इन्हीं की कोर्ट से फर्जी आदेश जारी होने के आरोप लग रहे हैं। वर्मा कह रहे हैं कि जज ने आदेश किया और मुझे बरी किया था। यही कॉपी मैंने डीपीसी में लगाई और आईएएस अवार्ड मिला थी।

उधर जज का कहना है कि उन्होंने कोई आदेश ही नहीं किया था। यह फर्जी आदेश है। इसकी खुद मैंने ही अज्ञात के खिलाफ एफआईआर कराई थी। (इन्हें निलंबित किया जा चुका है)

सीजेएम अमन सिंह भूरिया

संतोष वर्मा केस इन्हीं की कोर्ट से शिफ्ट होकर जज रावत की कोर्ट में गया था। ऐसे आरोप हैं कि इस पूरे मामले में संतोष वर्मा और रावत के बीच बातचीत इनके जरिए हुई थी। इनकी भी मोबाइल चैटिंग इस मामले में पाई गई है। (न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत भी निलंबित किया जा चुका है)

एडीजे प्रकाश कसेर

इस केस में 5 दिसंबर को पहले एडीजे विजेंद्र सिंह रावत की अग्रिम जमानत लगी थी। यह मंजूर भी हो गई थी। वहीं इसके बाद जब पुलिस ने टाइपिस्ट नीतू सिंह को गिरफ्तार कर 18 दिसंबर को रिमांड में लिया था।

रिमांड के दौरान ही नीतू का जमानत आवेदन 19 दिसंबर को लगा था। केस डायरी कोर्ट तक नहीं पहुंची थी। इसके बाद भी रिमांड अवधि में ही जमानत मंजूर हो गई थी। (जज प्रकाश कसेर का 22 दिसंबर को ट्रांसफर सीधी हो गया)

टाइपिस्ट नीतू सिंह

इस केस में यह चौथा किरदार है। जब एडीजे रावत की कोर्ट में संतोष वर्मा का केस आया, तब वह कोर्ट में पदस्थ थे। वह सीआई केस का काम देख रहे थे। पुलिस ने 18 दिसंबर को इनसे पूछताछ और कोर्ट आदेश के दस्तावेज जुटाने के लिए गिरफ्तार किया था। यह केस की पहली गिरफ्तारी थी, लेकिन एक ही दिन में जमानत हो गई। अब वह फैमिली कोर्ट में पदस्थ हैं।

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जिला लोक अभियोजक अकरम शेख

इस केस में एक और किरदार हैं जिला लोक अभियोजक अकरम शेख। आरोप है कि इस केस में पूरी मध्यस्थता का काम इनके जरिए संभाला गया। इसके लिए कई बार मोबाइल पर जज से चर्चा हुई, मोबाइल से वाट्सअप चैट हुई। इस पूरे मामले में इन पर भी शासकीय कार्रवाई हुई थी। ये भी उलझे हुए हैं।

संतोष वर्मा केस की शुरुआत 2016 से ऐसे हुई

यह कहानी 18 नवंबर 2016 से शुरू होती है। संतोष वर्मा पर एक महिला ने केस दर्ज कराया था। यह केस लसूडिया पुलिस थाना, इंदौर में आईपीसी धारा 493, 494, 495, 323, 294 और 506 के तहत दर्ज कराया गया था। केस नंबर 851/2016 है। उस समय वर्मा उज्जैन में अपर कलेक्टर पद पर पदस्थ थे।

शिकायत में महिला का कहना था कि वह 2010 से वर्मा को जानती थी। मेलजोल के दौरान वर्मा ने शादी का प्रस्ताव रखा था। दोनों ने चुपचाप मंदिर रिद्दिनाथ, हण्डिया, जिला धार में शादी कर ली थी। वर्मा पहले से शादीशुदा थे, लेकिन उन्होंने पत्नी की तरह महिला को चुपचाप रखा था। शारीरिक संबंध भी बनाए थे।

जैसे ही महिला को पूर्व शादीशुदा होने की बात पता चली और विरोध किया, तो वर्मा ने मारपीट शुरू कर दी थी। महिला गर्भवती हुई, तो वर्मा ने दबाव डालकर दो बार एबॉर्शन कराया था। महिला का आरोप था कि वर्मा ने धोखाधड़ी से शादी की थी।

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फिर आई आईएएस अवार्ड की बात

महिला संबंधी अपराध के केस का चालान जिला कोर्ट में लगा था। इसी दौरान साल 2020 में संतोष वर्मा का नाम डीपीसी के लिए गया, जिससे उन्हें आईएएस अवार्ड मिलना था। इसके लिए जरूरी था कि उन्हें इस अपराध से मुक्ति मिले।

बताया जाता है कि इस मामले में कोर्ट के दो आदेश बने या बताए गए। पहले केस में बताया गया कि वर्मा और संबंधित पीड़िता के बीच समझौता हो गया था। समझौते से केस खत्म हो गया था। वहीं, बाद में कहा गया कि इस आधार पर उन्हें बरी नहीं माना जाएगा और डीसीपी नहीं होगी।

इसके बाद दूसरा आदेश बना, जिसे जज रावत फर्जी बता रहे हैं। इसमें संतोष वर्मा को केस से बरी होने की बात कही गई, जो 6 अक्टूबर 2020 का बना है, एडीजे रावत की कोर्ट से। यह आदेश डीसीपी में लगा और संतोष वर्मा को आईएएस अवार्ड मिल गया। इसी अवार्ड के लिए ही यह पूरा खेल रचने के आरोप हैं।

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एडीजे रावत की इस एफआईआर ने ही सभी को उलझाया

दरअसल इस केस में सभी की फंसने की मुख्य वजह एडीजे रावत के जरिए कराई गई एफआईआर है। यह पूरा केस 27 जून 2021 को एमजी रोड थाने में दर्ज हुआ था। रावत ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ आईपीसी धारा 120B, 420, 467, 468, 471 और 472 में केस किया था। यह केस फर्जी कोर्ट आदेश बनाने को लेकर दर्ज कराया गया था।

उन्होंने बताया कि लसूडिया थाने में संतोष वर्मा पर दर्ज केस 851/2016 का मामला उनके यहां चल रहा था। रावत ने कहा कि उनकी कोर्ट से 6 अक्टूबर 2020 को कोई आदेश पारित नहीं हुआ था। कोर्ट डायरी और सीआईएस में उस दिन का कोई रिकॉर्ड नहीं है। न ही इस दिन मेरे हस्ताक्षर से कोई निर्णय हुआ। मेरी पत्नी बीमार है, इसलिए इस दिन 6 अक्टूबर को मैं अवकाश पर था। जो फैसला कॉपी है, वह कूटरचित तैयार की गई है।

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आखिर रावत को क्यों करानी पड़ी एफआईआर

आखिर रावत को यह एफआईआर घटना (6 अक्टूबर 2020 के आदेश) के आठ माह बाद (27 जून 2021) में क्यों करानी पड़ी। इसके पीछे दो बातें कही जा रही हैं।

  1. पहला यह कि जो संतोष वर्मा और कोर्ट आदेश के बाद रावत के बीच संबंध ठीक नहीं रहे। लेन-देन संबंधी जो भी बातें थीं, वह पूरी नहीं हुईं। इसी के चलते यह विवाद बढ़ गया और केस करा दिया गया।

  2. दूसरा यह कि जो ऑन-रिकॉर्ड आया है। इस मामले में जब पीड़िता को पता चला कि कोर्ट से संतोष वर्मा को बरी होने के आदेश हुए हैं और डीपीसी हो गई है, तो उन्होंने कोर्ट में इस आदेश की नकल के लिए सूचना का अधिकार लगाया था। इसके बावजूद यह कॉपी एडीजे रावत की कोर्ट ने देने से इंकार कर दिया था।

    इसके बाद पीड़िता ने कई जगह पत्र लिखकर इस कॉपी को मांगा था। वहीं, जब उन्हें आदेश की कॉपी नहीं मिली, तो 2 जून 2022 को उन्होंने डीसीपी से फाइल मांगी। वह फाइल सामान्य प्रशासन विभाग में लगी कोर्ट आदेश की थी।

    इसकी जानकारी जब एडीजे रावत को लगी कि मामला तूल पकड़ रहा है, तब उन्होंने इस मामले में अपने आप को बचाने के लिए एमजी रोड थाने में जाकर 27 जून 2021 को यह एफआईआर कराई थी। इसमें कहा कि संतोष वर्मा केस में हुआ कोर्ट आदेश फर्जी है और उनके जरिए ऐसा कोई आदेश नहीं किया गया है।

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