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Photograph: (the sootr)
Indore. ब्राह्मण समाज पर विवादित टिप्पणी के बाद से ही प्रमोटी आईएएस संतोष वर्मा विवादों में बुरी तरह घिरे हैं। आईएएस वर्मा को महिला संबंधी अपराध में बरी संबंधी फर्जी कोर्ट केस विवाद में जज विजेंद्र सिंह रावत भी निलंबित हो चुके हैं। जज रावत की कोर्ट के टाइपिस्ट नीतू सिंह की भी गिरफ्तारी और फिर जमानत हो चुकी है।
अब इस केस में पहले जज रावत और फिर नीतू को जमानत देने वाले जज प्रकाश कसेर क सिंगल आर्डर से सीधी ट्रांसफर हो गया। आखिर नीतू सिंह के आर्डर में ऐसा क्या हुआ।
जानकारों और कोर्ट से जुड़े सूत्रों से पूरी जानकारी जुटाने के बाद सामने आया कि किस तरह जमानत की फाइल में तेजी आई और बड़ी आपत्तियां दरकिनार हुई। द सूत्र का खुलासा।
नीतू की ऐसे हुई गिरफ्तारी
जज रावत की कोर्ट में नीतू सिंह 2020-21 के दौरान टाइपिस्ट था। कोर्ट आर्डर संबंधी सीएमएस पोर्टल देखता था। पुलिस ने एक साल पहले भी इसके बयान लिए थे लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई। हाल ही में हाईकोर्ट ने इस केस को लेकर मंजूरी दी, जिसके बाद तेजी आई। इधर वर्मा भी अपने बयान से विवादों में आ गए, जिससे मामला गर्मा गया।
पुलिस ने नीतू को 18 दिसंबर को पूछताछ के लिए बुलाया और फिर गिरफ्तार कर लिया। क्योंकि कोर्ट आदेश व अन्य जब्ती करना थी। नीतू को कोर्ट में पेश किया गया और वहां से पुलिस को दो दिन की यानी 18 से 20 दिसंबर तक की पुलिस रिमांड मिली।
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लेकिन पूरे 12 घंटे में यह हो गया
लेकिन गिरफ्तारी और पुलिस रिमांड के दौरान ही नीतू का जमानत आवेदन लग गया, जबकि नीतू ज्यूडिशियल रिमांड में था ही नहीं। नीतू 20 दिसंबर तक पुलिस रिमांड में था। 19 दिसंबर को जमानत आवेदन हो गया और सुनवाई पर भी तय हो गई। इस तेजी के चलते एमजी रोड थाने से केस डायरी कोर्ट में पहुंची ही नहीं। जब केस डायरी नहीं थी तो इसमें लोक अभियोजक यानी शासकीय अधिवक्ता के पास विरोध के लिए पुलिस का प्रतिवेदन, रिपोर्ट कुछ था ही नहीं।
केस डायरी के बिना एक पक्षीय जमानत
केस डायरी के बिना पुलिस का पक्ष और विरोध आया ही नहीं। जबकि जज रावत की अग्रिम जमानत के दौरान लंबी बहस हुई थी। शासन की ओर से कहा भी गया कि केस डायरी नहीं है और साथ ही यह भी कि आरोपी अभी पुलिस रिमांड में हैं। और जब तक ज्यूडिशियल रिमांड पर यानी जेल नहीं जाता है तब तक जमानत आवेदन नहीं लग सकता है।
इस पर जज प्रकाश कसेर ने अपने आदेश में दो बातें लिखी- पहले तो सुप्रीम कोर्ट के कुछ केस का हवाला दिया और कहा कि पुलिस रिमांड के दौरान भी जमानत आवेदन लग सकता है। दूसरा केस डायरी को लेकर भी कहा कि- इसके बिना जमानत के सुनवाई के अधिकार को रोका नहीं जा सकता है। ऐसे में 50 हजार के मुचलके पर जमानत दी जाती है।
सामान्य तौर पर ये होती है जमानत प्रक्रिया
1- यदि आरोपी पुलिस रिमांड है तो सामान्य तौर पर जमानत नहीं होती है, क्योंकि यह माना जाता है कि जेल यानी ज्यूडिशियल रिमांड में जाने पर ही जमानत का अधिकार बनता है। लेकिन इसमें पुलिस रिमांड खत्म होने से पहले ही 19 दिसंबर को जमानत आवेदन लगा और जमानत हो गई।
2- जमानत आवेदन लगने पर प्रक्रिया के तहत कोर्ट मुंशी मांगपत्र संबंधित थाने को भेजता है, यह आवेदन लगने पर सामान्य तौर पर शाम को जाता है। इस पर संबंधित थाना केस डायरी तैयार करता है और जमानत विरोध के लिए शासकीय लोक अभियोजक से प्रतिवेदन भी तैयार कराता है। इस तरह शासन पक्ष को कम से कम 15-20 घंटे का समय मिलता है, कोर्ट में अपनी बात रखने के लिए। क्योंकि अगले दिन सुबह 11 बजे से सुनवाई शुरू होती है।
3- लेकिन इस मामले में ना केस डायरी तैयार हुई और ना ही शासन का पक्ष आया। ऐसे में प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के बिना दोनों पक्षों को नहीं सुना गया। आरोपी की बात सुनकर जमानत को मंजूर किया गया।
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सिंगल आर्डर से हुआ है जज का ट्रांसफर
आईएएस संतोष वर्मा के फर्जी कोर्ट आदेश मामले में पहले निलंबित जज विजेंद्रसिंह रावत और फिर टाइपिस्ट नीतू सिंह चौहान को जमानत देने वाले जज प्रकाश कसेर का ट्रांसफर आदेश 21 दिसंबर को निकला है। जज प्रकाश कसेर को इंदौर से रामपुर सीधी जिला ट्रांसफर किया गया है। रजिस्ट्रार जनरल धरमिंदर सिंह के हस्ताक्षर से यह आदेश हुआ है।
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