IAS संतोष वर्मा के फर्जी बरी कोर्ट आर्डर में निलंबित न्यायाधीश रावत को मिली जमानत

इंदौर के न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत को फर्जी बरी कोर्ट आदेश मामले में अग्रिम जमानत मिल गई है। उन्हें यह राहत उस समय मिली जब पुलिस गिरफ्तारी का खतरा महसूस कर रही थी। रावत और आईएएस संतोष वर्मा के बीच 114 बार मोबाइल पर बात हुई थी।

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Sanjay Gupta
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Photograph: (THESOOTR)

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INDORE. ब्राह्मण पर विवादित बयान देने वाले IAS संतोष वर्मा के पुराने केस में उन्हें बरी करने वाले न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत को इंदौर जिला कोर्ट से राहत मिल गई है। इस मामले में हाईकोर्ट से मंजूरी के बाद उन्हें पुलिस से गिरफ्तारी का डर सता रहा था। इसलिए उन्होंने अग्रिम जमानत का आवेदन लगाया था। इसमें राहत मिल गई है। 

जिला कोर्ट ने मंजूर की जमानत

न्यायाधीश प्रकाश कसेर की कोर्ट में निलंबित न्यायाधीश रावत द्वारा अग्रिम जमानत आवेदन 3 दिसंबर को लगाया गया था। इसमें सुनवाई के बाद कोर्ट ने आर्डर रिजर्व रख लिया था जो 5 दिसंबर को जारी कर दिया गया। इसमें रावत की जमानत याचिका को मंजूर कर लिया गया है। 

सुनवाई में यह हुए थे खुलासे- 114 बार हुई बात

शासकीय लोक अभियोजक अभिजीत सिंह राठौर ने न्यायाधीश रावत की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज करने की मांग करते हुए पुलिस अनुसंधान में सामने आई बातें कोर्ट को बताई थी जो चौंकाने वाली थी। इसमें बताया गया था कि रावत और आईएएस संतोष वर्मा के बीच में एक-दो बार नहीं बल्कि 114 बार मोबाइल पर बात हुई है। दोनों के कई बार मोबाइल की टावर लोकेशन समान रही है। दोनों की कई बार लोकेशन भी एक रही है।

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आदेश सुबह 4 से 7 बजे के बीच हुआ टाइप

रावत का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता व पूर्व न्यायाधीश विष्णु सोनी ने कहा था कि कोर्ट में 6 अक्टूबर जब का आदेश टाइप होना बताया गया उस दिन वह छुट्टी पर थे। यह आदेश फर्जी है और उनकी कोर्ट से पास नहीं हुआ है।

वहीं लोक अभियोजक राठौर ने पुलिस जांच के आधार पर बताया था कि जो जानकारी मिली है इसके अनुसार सुबह 4 से 7 के बीच में यह आदेश कोर्ट के कम्प्यूटर में टाइप हुआ है। इसके बाद रावत छुट्टी पर गए थे। इस आदेश की कॉपी भी डीपीसी में आईएएस संतोष वर्मा ने लगाई थी, जिसके आधार पर उनकी पदोन्नति हुई और वह आईएएस बने।

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न्यायाधीश रावत के खिलाफ जांच की मिली है मंजूरी

रावत हाल ही में करीब 20 दिन पहले निलंबित हुए हैं। उधर इस केस में पुलिस को हाईकोर्ट ने आगे जांच करने और कोर्ट से दस्ताेज लेने, पूछताछ करने की मंजूरी दी है। इसी मंजूरी के बाद अब अब रावत ने जिला कोर्ट में अग्रिम जमानत का आवेदन लगाया था। जबकि वह खुद केस में पहले फरियादी रहे हैं। पुलिस वर्मा के कोर्ट केस से बरी होने वाले आदेश की सच्चाई पता करने के लिए जांच कर रही है। 

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मोबाइल नहीं दे रहे हैं रावत

बताया जा रहा है कि पुलिस ने इस मामले में न्यायाधीश रावत से कई जानकारियां और मोबाइल मांगा है। लेकिन उन्होंने पुलिस को बताया कि मोबाइल टूट गया है। बताया जा रहा है कि पुलिस इस मामले में कोर्ट के कम्प्यूटर से आर्डर की कापी ले चुकी है और कुछ अन्य दस्तावेज भी ले चुकी है। इसके बाद ही मामला उलझ गया है। 

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वर्मा के लिए जरूरी था बरी होने का आदेश

यह आदेश वर्मा के लिए बहुत जरूरी था, बिना बरी आदेश के वह आईएएस नहीं बन सकते थे। इसलिए पदोन्नति डीपीसी के पहले यह आदेश लेना उनकी प्राथमिकता थी। बताया जाता है कि इसी के चलते यह आदेश बना और इसे डीसीपी के समय दिया गया, इसके बाद ही उन्हें आईएएस अवार्ड हो सका।

वर्मा पर एक युवती ने आरोप लगाए थे

प्रशासनिक अधिकारी संतोष वर्मा पर एक युवती ने आरोप लगाए थे। इस केस के चलते उनके पदोन्नत होकर आईएएस बनने की राह में रोड़ा आ गया था। आरोप है कि इस मामले में बरी होने का फर्जी आदेश पारित कराया था। 

खुद न्यायाधीश रावत ने कराई थी शिकायत

एमजी रोड थाने में 27 जून 2021 को यह फर्जी कोर्ट आदेश बनाने का केस दर्ज हुआ था। इसमें अज्ञात आरोपी पर आईपीसी धारा 120बी, 420, 467, 468, 471 व 472 में केस हुआ था। अपराध होने का समय 6 अक्टूबर 2020 बताया गया। थाने में न्यायाधीश विजेंद्रसिंह रावत द्वारा केस दर्ज कराने के लिए आवेदन दिया था।

आवेदन में न्यायाधीश रावत ने कहा कि- लसूडिया थाने में संतोष वर्मा पर दर्ज एफआईआर क्रमांक 851/2016 (धारा 323, 294 व 506) का फौजदारी केस 1621/2019 चल रहा है। 

यह केस अन्य कोर्ट से ट्रांसफर होकर मेरी (न्यायाधीश रावत) कोर्ट में 3 अक्टूबर 2020 को चढ़ाया गया। सुनवाई के लिए 23 नवंबर 2020 लगाई गई। फिर इसमें साक्ष्य क्े लिए 22 फरवरी 2021 तारीख लगाई गई। फिर अगली तारीख 31 मई 2021 लगी।

इस मामले में मेरी कोर्ट द्वारा 6 अक्टूबर 2020 को कोई आदेश पारित नहीं किया गया। कोर्ट की डायरी व सीआईएस में इस दिन का कोई रिकार्ड नहीं है। ना ही इस दिन मेरे हस्ताक्षर से कोई निर्णय हुआ। मेरी पत्नी बीमार है इसलिए इस दिन 6 अक्टूबर को मैं अवकाश पर था। 

जिला अभियोजन अधिकारी अकरम शेख द्वारा मौखिक तौर पर मेरी कोर्ट में आकर यह बताया गया कि इस केस में समझौता हो गया है इस आधार पर निर्णय हुआ है और इसकी स्कैन कापी है। इसमें भी इस निर्णय की तारीख 6 अक्टूबर लिखी हुई थी। सील मेरी कोर्ट की लगी थी और हस्ताक्षर अंग्रेजी में अपठनीय थे। लेकिन इस दिनांक को मेरे द्वारा कोई आदेश नहीं किए गए। यह फैसला कॉपी कूटरचित तैयार की गई है।

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