आईएएस संतोष वर्मा, न्यायाधीश के बीच मिलीभगत से हुआ आदेश, लेन-देन बिगड़ा तो हुई रिपोर्ट, पुलिस जांच इसी ओर जुटी

आईएएस संतोष वर्मा के महिला अपराध संबंधी केस में बरी होने के बाद कोर्ट के आदेश की जांच की जा रही है। पुलिस महकमा अब इस केस में मिलीभगत और अवैध गतिविधियों की जांच में जुटा है।

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Sanjay Gupta
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INDORE. आईएएस संतोष वर्मा के महिला अपराध संबंधी केस में बरी होने के कोर्ट आदेश की जांच चल रही है। वहीं, ब्राह्मणों पर विवादित बयान देने वाले बयान पर मध्यप्रदेश शासन ने वर्मा की बर्खास्तगी का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया है।

वहीं, केवल बयान बर्खास्तगी का आधार नहीं बनते हैं। ऐसे में वर्मा ने कोर्ट का आदेश मिलीभगत से बनवाया और इसमें अवैध कृत्य किया यह साबित करना जरूरी है। पुलिस महकमे की जांच अब इसी एंगल पर टिक गई है।

संतोष वर्मा यह दे रहे हैं सफाई

इस पूरे मामले में संतोष वर्मा मुख्य रूप से यह सफाई दे रहे हैं कि कोर्ट ने आदेश किया था। इसकी उन्हें सत्यापित कॉपी मिली और यही डीपीसी में लगाई है। इसके आधार पर आईएएस अवार्ड हुआ। आदेश फर्जी हुआ या क्या हुआ इसमें उनका कोई लेना-देना नहीं।

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इधर न्यायाधीश कह रहे हैं मैंने आदेश नहीं किया

उधर संतोष वर्मा के केस से बरी होने का आदेश 6 अक्टूबर 2020 को हुआ था। यह आदेश न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत की कोर्ट ने लिया था। इस पर रावत ने 27 जून 2021 में एमजी रोड थाने में अज्ञात के खिलाफ आवेदन कर खुद एफआईआर कराई थी।

इसमें उन्होंने कहा कि वह 6 अक्टूबर को छुट्टी पर थे। यह आदेश उनकी कोर्ट से नहीं बना, यह फर्जी है। न्यायाधीश रावत ने कहा कि- लसूडिया थाने में संतोष वर्मा पर दर्ज एफआईआर क्रमांक 851/2016 (धारा 323, 294 व 506) का फौजदारी केस 1621/2019 चल रहा है।

यह केस अन्य कोर्ट से ट्रांसफर होकर मेरी (न्यायाधीश रावत) कोर्ट में 3 अक्टूबर 2020 को चढ़ाया गया था। सुनवाई के लिए 23 नवंबर 2020 लगाई गई थी। फिर इसमें साक्ष्य के लिए 22 फरवरी 2021 तारीख लगाई गई थी। फिर अगली तारीख 31 मई 2021 लगी थी। मेरी कोर्ट के जरिए 6 अक्टूबर 2020 को कोई आदेश पारित नहीं किया गया था। मेरी पत्नी बीमार हैं, इसलिए इस दिन 6 अक्टूबर को मैं अवकाश पर था।

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बीच में जिला अभियोजन अधिकारी की भूमिका

इस मामले में जिला अभियोजन अधिकारी अकरम शेख की भूमिका भी संदिग्ध रही है। न्यायाधीश रावत ने आवेदन में बताया कि शेख ने मौखिक रूप से कहा था कि इस केस में समझौता हो गया है। इसकी स्कैन कॉपी भी है। इसमें भी इस निर्णय की तारीख 6 अक्टूबर लिखी हुई थी। सील मेरी कोर्ट की लगी थी और हस्ताक्षर अंग्रेजी में अपठनीय थे। वहीं, इस दिनांक को मेरे जरिए कोई आदेश नहीं किए गए था। यह फैसला कॉपी कूटरचित तैयार की गई है।

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फिर 114 बार बात क्या इसलिए हुई

इस मामले में एक बात और आई है कि वर्मा और न्यायाधीश रावत के बीच में 114 बार मोबाइल पर बात हुई है। दोनों की कई बार मोबाइल लोकेशन एक जैसी रही यानी मुलाकात भी हुई है। इसके लिए पुलिस इस एंगल पर जांच कर रही है कि यह बातचीत कोर्ट आदेश यानी 6 अक्टूबर 2020 के बाद अधिक हुई है।

क्योंकि इस आदेश को लेकर दोनों के बीच में जो लेन-देन की डील थी वह बिगड़ गई थी। कोर्ट में बने आदेश के बाद यह लेन-देन पूरा नहीं हुआ था। इसके चलते दोनों के बीच कई बार फोन कॉल हुए थे और इस कमिटमेंट को पूरा किया जाए।

हालांकि इसके लिए कहा जा रहा है कि पत्नी की तबीयत (वर्मा और रावत दोनों की) खराब थी। बड़वानी में एक जगह इस रोग के उपचार को देख रहे थे, इसलिए यह बात हुई थी।

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आदेश भी कोर्ट में सुबह 4 से 7 बजे के बीच

पुलिस ने अपनी जांच में यह भी पाया है कि आदेश को भी चतुराई से कोर्ट में 6 अक्टूबर को सुबह 4 से 7 बजे के बीच किया गया था। फिर न्यायाधीश अवकाश पर रहे। इन्हीं बातों को जुटाने के लिए न्यायाधीश के मोबाइल को भी पुलिस ने मांगा है। यह अभी तक उन्हें नहीं मिला है।

हालांकि पुलिस ने कोर्ट से कई अहम फाइल और दस्तावेज, रिकॉर्ड जब्त किए हैं। फिलहाल न्यायाधीश रावत को जिला कोर्ट से इसमें अग्रिम जमानत मिल चुकी है।

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