MP में 21 हजार छात्रों के अवैध दाखिले का खुलासा, HC में पैरामेडिकल काउंसिल पर झूठ बोलने का आरोप

मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों में 21,000 छात्रों के अवैध दाखिले का खुलासा हुआ। हाईकोर्ट ने एमपी पैरामेडिकल काउंसिल पर झूठी गवाही देने का आरोप लगाया। काउंसिल ने उच्चतम और उच्च न्यायालय में विरोधाभासी शपथपत्र दिए, दाखिलों की वैधता पर सवाल उठाए गए।

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Neel Tiwari
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MP Paramedical Council

Photograph: (thesootr)

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मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों में दाखिले और मान्यता को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की युगलपीठ ने गंभीर नाराजगी जताई है।

मामला एमपी पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार शैलोज जोशी द्वारा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दिए गए दो अलग-अलग और विरोधाभासी शपथपत्रों का है। कोर्ट का कहना है कि यह प्रथम दृष्टया साफ दिख रहा है कि दोनों में से केवल एक ही सच हो सकता है।

हाईकोर्ट में एक बात, सुप्रीम कोर्ट में दूसरी

याचिकाकर्ता के वकील आलोक वागरेचा ने बताया कि 21 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट में दायर जवाब में काउंसिल ने दावा किया था कि सत्र 2023-24 अभी शुरू नहीं हुआ है और बिना मान्यता या संबद्धता किसी कॉलेज को एडमिशन की अनुमति नहीं है।

महज एक हफ्ते बाद 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में काउंसिल ने कहा कि जनवरी से जुलाई के बीच 21,894 छात्रों ने एडमिशन ले लिया है और सत्र 2023-24 पहले से चल रहा है।

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बिना मान्यता के एडमिशन, नियमों के खिलाफ

एमपी पैरामेडिकल काउंसिल के नियम और मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के परिनियम साफ कहते हैं कि किसी भी कोर्स में प्रवेश तभी संभव है जब कॉलेज को विश्वविद्यालय से मान्यता मिल चुकी हो। याचिकाकर्ता के मुताबिक, मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी ने अब तक किसी भी पैरामेडिकल कॉलेज को सत्र 2023-24 की मान्यता नहीं दी है, इसलिए इन दाखिलों का कोई कानूनी आधार ही नहीं था।

हाईकोर्ट पहले भी लगा चुका है जुर्माना

यह पहली बार नहीं है जब पैरामेडिकल काउंसिल पर ऐसे आरोप लगे हैं। अक्टूबर 2022 में नर्मदा पैरामेडिकल कॉलेज के मामले में हाईकोर्ट ने बिना संबद्धता एडमिशन को अवैध बताते हुए कॉलेज को 25 हजार रुपए प्रति छात्र मुआवजा देने का आदेश दिया था और काउंसिल पर 50 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने तब भी कहा था कि काउंसिल की चुप्पी ने छात्रों का भविष्य खतरे में डाला।

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हाईकोर्ट ने की कड़ी टिप्पणी

सुनवाई के दौरान काउंसिल ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट में दिए गए तथ्यों पर वहीं बहस होनी चाहिए। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर हाईकोर्ट के सामने झूठे तथ्य पेश किए गए हैं तो इसका संज्ञान हाईकोर्ट भी ले सकता है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि अगर संज्ञान लिया गया तो संबंधित अधिकारी को जवाब देने का पूरा मौका दिया जाएगा।

अगली सुनवाई 20 अगस्त को

याचिकाकर्ता की ओर से रजिस्ट्रार शैलोज जोशी के खिलाफ झूठी गवाही (Perjury) और आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। हाईकोर्ट ने इस पर निर्णय सुरक्षित रखते हुए अगली सुनवाई की तारीख 20 अगस्त तय की है।

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