रहस्यमयी खदान का खेल! टीकमगढ़ की कारी वन क्षेत्र में अवैध खनन पर वन विभाग की बड़ी कार्रवाई

टीकमगढ़ के कारी वन क्षेत्र में अवैध खनन पर वन विभाग ने कार्रवाई की है। मप्र खनिज निगम के अफसरों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। खनिजों की कीमत करोड़ों में है, और माफिया की नजरें इन खनिजों पर हैं। खनन और परिवहन पर रोक लगाई गई है।

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Ravi Awasthi
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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. टीकमगढ़ जिले के कारी वन क्षेत्र में खनन पर वन विभाग ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इस मामले में मध्यप्रदेश खनिज निगम के ​स्थानीय अफसरों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किया गया है।

मामला टीकमगढ़ जिले के कारी वन क्षेत्र का है। जहां डायस्फोर और पायरोफिलाइट जैसे बेशकीमती खनिज बड़ी मात्रा में हैं। इनके खनन को लेकर मप्र खनिज निगम ने साल 1999 में वन विभाग से अनुबंध किया था।

यह अनुबंध 60 सालों के लिए था। इसके तहत वन विभाग ने कारी वन क्षेत्र के कक्ष क्रमांक 48 में 5 हेक्टेयर का पट्टा मप्र खनिज निगम के नाम स्वीकृत किया।

मामला टीकमगढ़ जिले के कारी वन क्षेत्र का है। जहां डायस्फोर और पायरोफिलाइट जैसे बेशकीमती खनिज बड़ी मात्रा में हैं। इनके खनन को लेकर मप्र खनिज निगम ने साल 1999 में वन विभाग से अनुबंध किया था।

यह अनुबंध 60 वर्षों के लिए था। इसके तहत वन विभाग ने कारी वन क्षेत्र के कक्ष क्रमांक 48 में 5 हेक्टेयर का पट्टा मप्र खनिज निगम के नाम स्वीकृत किया।

पेटी कांट्रेक्ट दिए जाने से बिगड़ी बात

बताया जाता है कि खनिज निगम ने बाद में स्वीकृत खदान ओम कंस्ट्रक्शन नामक कंपनी को आवंटित कर दी। सूत्रों का दावा है कि संबंधित कंपनी के पास खनिज भंडारण का लाइसेंस ही नहीं है। इसके चलते ओम कंस्ट्रक्शन ने खनिज ढुलाई और भंडारण का काम, पेटी कांट्रेक्ट पर एक अन्य फर्म गजानन कंस्ट्रक्शन को सौंप दिया। इस तरह यह खदान एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे ठेकेदार के हाथ में आ गई। 

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विधानसभा में गूंजा मामला, तब चेता वन विभाग

खनिज निगम ने खदान तो आवंटित कर दी,लेकिन निगरानी व्यवस्था में कोताही बरती। नतीजा यह हुआ कि ज्यादा मुनाफे के फेर में पेटी कांट्रेक्टर ने स्वीकृत खदान से बाहर जाकर खुदाई शुरू कर दी। यह मामला  राज्य विधानसभा में भी गूंजा। कांग्रेस विधायक यादवेंद्र सिंह ने सदन में इस पर सवाल उठाए। इसके बाद वन विभाग की नींद खुली।

टीकमगढ़ डीएफओ ने कराई एफआईआर

अवैध खनन का मामला सदन में गूंजने व विभाग मुख्यालय को हुई शिकायत के बाद मामले की जांच हुई। इसमें स्वीकृत खदान के अलावा करीब पौने तीन हेक्टेयर रकबे में अतिक्रमण होना पाया गया। इसे लेकर डीएफओ राजाराम परमार ने अनुबंध कर्ता मप्र खनिज निगम के स्थानीय उप प्रबंधक व प्रभारी अधिकारी के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26(1)ज के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किया। 

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खनन और परिवहन पर भी लगाई रोक

डीएफओ परमार ने स्वीकृत खदान से खनिज की खुदाई व इसके परिवहन पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। उन्होंने खनिज निगम के अफसरों को पत्र लिखकर खदान का नए सिरे से  सीमांकन कराने के निर्देश भी दिए। इसके लिए 24 नवंबर तक की मोहलत दी गई है। परमार ने पत्र में​ लिखा कि मौके पर की गई जांच में स्वीकृत खदान सीमाकंन के लिए लगाई गई मुनारे ​गायब मिली। 

अवैध खनन नजरअंदाज, सिर्फ अतिक्रमण का केस 

सूत्रों का दावा है कि वन विभाग की ओर से की गई इस जांच में भी खेल हुआ। विभाग ने स्वीकृत खदान के अलावा,2.62 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अतिक्रमण तो बताया,लेकिन इस क्षेत्र में हुए अवैध खनन की बात छिपा ली। दरअसल,जांच में अवैध खनन सामने आने पर संबंधित कंपनी को भारी जुर्माना अदा करना पड़ सकता था। 

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कागजी सड़क बनाने की तैयारी

खनिज परिवहन के लिए ठेकेदार कंपनी ने कारी क्षेत्र के बीट नंबर 15 में खरंजा व मुरम सड़क तैयार की है। जो खदान से वन क्षेत्र समाप्ति तक है। सूत्रों का दावा है कि वनमंडल कार्यालय ने इसी सड़क को  प्रस्तावित पहुंच मार्ग बताकर एक नया प्रस्ताव मुख्यालय को भेजा था। जो स्वीकृत भी हो चुका है। इसके निर्माण की राशि भी वन मंडल को मिल चुकी है। अब सिर्फ कागजों पर नई सड़क होना तैयार है।

बजट दूसरी सड़क का

वन मंडल अधिकारी राजाराम परमार किसी तरह की गड़बड़ी से इंकार करते हैं।  उन्होंने कहा कि वन क्षेत्र में सड़क निर्माण का जो बजट स्वीकृत हुआ है,उससे कारी क्षेत्र की दूसरी बीट में सड़क बनाई जानी है। जहां तक अवैध खनन की बात तो फिलहाल अतिक्रमित क्षेत्र पर खनन से निकला खनिज का मलबा सालों से पड़ा है। यह पहाड़ी इलाका है, यदि इस स्थान पर खुदाई के साक्ष्य मिलते हैं तो इसे लेकर भी कार्रवाई की जाएगी। 

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करोड़ों की कीमत वाले खनिज- माफिया की नजरें तिरछी...

  1. डायस्फोर व पायरोफिलाइट दोनों ही बेशकीमती खनिज हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी इनकी मांग है। 
  2. ऐलुमिनियम ऑक्साइड-हाइड्रॉक्साइड से बना डायस्फोर ऐलुमिना उत्पादन का महत्वपूर्ण स्रोत है। औद्योगिक रूप में इसकी कीमत लगभग 6 से 7 हजार रुपए प्रति टन है,जबकि रत्न ग्रेड डायस्फोर की अंतरराष्ट्रीय कीमत लगभग 42,000 से 1.68 लाख रुपए प्रति कैरट के बीच है।
  3. इसी तरह,औद्योगिक ग्रेड पायरोफिलाइट भारत में पांच से दस हजार रुपए प्रति टन और वैश्विक बाजार में 34 हजार रुपए प्रति टन तक है। जिसका उपयोग सिरेमिक, टाइल, रिफ्रैक्टरी और पेंट उद्योगों में होता है। 

बुंदेलखंड में है विशाल भंडार

भू-वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में टीकमगढ़,छतरपुर, दमोह और पन्ना जिलों में डायस्फोर-पायरोफिलाइट खनिज व्यापक रूप से पाए जाते हैं। विशेषकर कारी,जतारा और मोहनगढ़ क्षेत्रों में इनका भंडार उच्च ग्रेड का माना जाता है।

यहां से निकला खनिज देश-विदेश के सिरेमिक, रिफ्रैक्टरी, पेंट व ग्लास उद्योगों तक पहुंचता है। अंचल में दोनों ही बेशकीमती खनिजों के विपुल भंडार को देखते हुए खनिज माफिया की निगाहें इस क्षेत्र पर है।

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