India justice report: भारत में 50 हजार से अधिक बच्चे न्याय का इंतजार कर रहे, एमपी की हालत सबसे खराब

भारत में 50 हजार से अधिक बच्चे अब भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) में 55% केस लंबित हैं। जजों की कमी, बाल देखभाल गृह की स्थिति और कमजोर डाटा प्रणाली जैसी समस्याएं बड़ी रुकावटें हैं।

author-image
Sanjay Dhiman
New Update
india justice

Photograph: (the sootr)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

भारत में बच्चों के लिए न्याय की राह अब भी लंबी है। यह तथ्य एक नई रिपोर्ट में सामने आया है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ( India justice report ) के अनुसार, देशभर में 50 हजार से अधिक बच्चे आज भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं। उनके मामलों का समाधान अब तक नहीं हो सका। 

जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) यानी किशोर न्याय बोर्ड में 55 प्रतिशत मामलों का अभी भी निपटारा नहीं हुआ है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश की न्यायिक प्रणाली में कई खामियां हैं, जिनकी वजह से न्याय मिलने में देरी हो रही है।

इसी संदर्भ में, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) ने यह भी खुलासा किया है कि 2023 में 31 अक्टूबर तक 100,904 मामलों में से आधे से अधिक अभी भी लंबित हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें जजों की कमी, जुवेनाइल होम्स का अपूर्ण निरीक्षण, और कमजोर डाटा प्रणाली जैसी समस्याएं शामिल हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार, इन मुद्दों का असर बच्चों के न्यायाधिकार पर पड़ रहा है। इससे वे लंबे समय तक न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में कई राज्यों में गंभीर कमी देखी जा रही है। ओडिशा और कर्नाटक जैसे राज्यों में स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है। 

जहां ओडिशा(Odisha) में 83 प्रतिशत मामले लंबित हैं, वहीं कर्नाटक(Karnataka) में 35 प्रतिशत मामले अभी तक हल नहीं हो सके हैं। खास बात यह है कि कई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में पूरी टीम मौजूद नहीं है, जिससे न्याय प्रक्रिया में और भी रुकावटें आती हैं। 

5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला?

50,000+ Juvenile Cases Stuck as Systemic Gaps Stall Justice: India Justice  Report - News Verse India

  • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने खुलासा किया कि है 50 हजार से अधिक बच्चे न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
  • मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 58 हजार 689 केस पेंडिंग हैं।
  • 362 जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में 55% मामले अटके हैं, जिनमें सबसे ज्यादा ओडिशा और कर्नाटक में हैं।
  • जुवेनाइल होम्स में अपर्याप्त निरीक्षण और जजों की कमी से न्याय प्रक्रिया धीमी है।
  • देश में बाल देखभाल गृहों की कमी और बुरी स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। 

यह खबरें भी पढ़ें...

एमपी में 28 हजार करोड़ से बनेंगे 5 फोर लेन, देखें इनमें आपका शहर है क्या

एमपी के किसानों को बड़ी राहत: हाईटेंशन लाइन खेत से गुजरने पर मिलेगा 200% मुआवजा

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) की स्टडी, जुवेनाइल जस्टिस एंड

चिल्ड्रन इन कॉन्फ्लिक्ट विद द लॉ: 

ए स्टडी ऑफ कैपेसिटी एट द फ्रंटलाइन्स, से पता चलता है कि 31 अक्टूबर 2023 तक 362 जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board) के सामने आधे से ज़्यादा (55%) मामले पेंडिंग(Pending Juvenile Cases) थे। जबकि भारत के 765 जिलों में से 92% ने JJB बनाए हैं, जो कानून से जूझ रहे बच्चों से निपटने वाली अथॉरिटी है, पेंडेंसी रेट बहुत अलग-अलग है। ओडिशा में 83% से लेकर कर्नाटक में 35% तक, जो जुवेनाइल जस्टिस डिलीवरी को कमज़ोर करने वाली गहरी असमानताओं का संकेत है।

कोऑर्डिनेशन और डेटा-शेयरिंग की कमी: क्राइम इन इंडिया 

2023 क्राइम इन इंडिया डेटा के मुताबिक, इंडियन पीनल कोड और स्पेशल और लोकल लॉज़ इन इंडिया के तहत 31,365 केस में 40,036 नाबालिग पकड़े गए। इसमें शामिल चार में से तीन से ज्यादा बच्चे 16 से 18 साल के थे। 

जुवेनाइल जस्टिस (JJ Act 2015) एक्ट, 2015 के पास होने के एक दशक बाद, IJR स्टडी में पाया गया है कि बच्चों पर फोकस करने वाली सर्विस देने के लिए बनाया गया डीसेंट्रलाइज्ड आर्किटेक्चर सिस्टम की कमियों से जूझ रहा है। जिसमें इंटर-एजेंसी कोऑर्डिनेशन और डेटा-शेयरिंग की कमी शामिल है। 

इसके अलावा, नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के उलट, JJBs पर जानकारी का कोई सेंट्रल और पब्लिक रिपॉजिटरी नहीं है। इस वजह से IJR ने 250 से ज़्यादा RTI रिक्वेस्ट फाइल कीं। 21 राज्यों¹ से मिले जवाबों से पता चला कि 31 अक्टूबर, 2023 तक, JJBs ने 100,904 केस में से आधे से भी कम केस निपटाए थे।

लड़कियों के लिए सिर्फ 40 जुवेनाइल होम्स 

जुवेनाइल होम्स (Child Care Homes) की स्थिति भी बहुत खराब है। रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश में लड़कियों के लिए महज 40 बाल देखभाल गृह उपलब्ध हैं, जो बच्चों के लिए सुरक्षित जगहों की भारी कमी को दर्शाता है। इसके अलावा, कई राज्यों में किशोरों के लिए आवश्यक चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस (CCIs) की निगरानी भी ठीक से नहीं की जा रही है। इस कमी की वजह से बच्चों को उचित देखभाल नहीं मिल रही है।

सबसे बड़ी चिंता: जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम पर कोई डाटा प्रणाली ही नहीं

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट ने यह भी खुलासा किया है कि किशोर न्याय के लिए कोई राष्ट्रीय डाटा प्रणाली नहीं है। इसके कारण, बच्चों के मामलों पर सही और समग्र आंकड़े नहीं जुटाए जा रहे हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार, न्यायिक डाटा ग्रिड की कमी के कारण RTI के जरिए 500 से अधिक जवाब हासिल किए गए, लेकिन फिर भी जरूरी आंकड़े जुटाने में मुश्किलें आईं। 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 30 फीसदी जेजेबी में लीगल सर्विस क्लिनिक की कमी है, जो बच्चों को कानूनी सहायता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते थे।

इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा संदेश यह है कि अगर हम बच्चों को न्याय प्रदान करना चाहते हैं, तो हमें जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम में सुधार की दिशा में तत्काल कदम उठाने होंगे। 

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के लागू होने के दस साल बाद भी, देश की न्यायिक प्रणाली में बहुत सी खामियां और असमानताएं हैं। इन सुधारों के बिना, बच्चों को न्याय(child rights) की उम्मीद और लंबी हो सकती है।

डेटा की कमी से अकाउंटेबिलिटी खोखली 

Maja Daruwala Email & Phone Number | India Justice Report Chief Editor  Contact Information

 "जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम(Juvenile Justice System) पिरामिड जैसा है। इसका सबसे अच्छा काम इस बात पर निर्भर करता है कि पुलिस स्टेशन और केयर इंस्टीट्यूशन जैसे अलग-अलग इंस्टीट्यूशन में फर्स्ट रिस्पॉन्डर से रेगुलर जानकारी डिस्ट्रिक्ट, स्टेट और नेशनल लेवल पर निगरानी करने वाली अथॉरिटी तक जाए।

फिर भी, IJR की हर जगह से भरोसेमंद डेटा पाने की कोशिशें इस बात का सबूत हैं कि ऑथराइज्ड निगरानी करने वाली बॉडी को न तो यह रेगुलर मिलता है और न ही इस पर जोर दिया जाता है। बिखरा हुआ और अनियमित डेटा सुपरविजन को एपिसोडिक और अकाउंटेबिलिटी को खोखला बना देता है।"
-माजा दारूवाला, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की चीफ एडिटर 

यह खबरें भी पढ़ें...

एमपी में प्रेमिका के साथ पकड़ाया ASI, पुलिस चौकी के सामने बीवी ने चप्पलों से पीटा

एमपी में आवासहीन परिवारों को पक्के मकान के लिए मिलेगा लाल-पीला पट्टा, प्रदेशभर में मेगा सर्वे 13 दिसंबर तक

बच्चों पर केंद्रित नेशनल डेटा ग्रिड बने

"JJ एक्ट, 2015 को लागू हुए 10 साल हो गए हैं। यह जानना चिंता की बात है कि एक चौथाई JJB में पूरी बेंच नहीं हैं और चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन में स्टाफ के काफी पद खाली हैं। सुप्रीम कोर्ट में मेरे कार्यकाल के दौरान और उसके बाद भी, मेरी कोशिश बच्चों के अधिकारों और बच्चों के लिए न्याय पर बातचीत को बढ़ावा देना था। उनके रहने के हालात को बेहतर बनाना और न्याय देना इंसानी और दयालु बनाना, जिसका आखिरी मकसद उन्हें फिर से जोड़ना और उनका पुनर्वास करना हो।

RTI से मिला डेटा काफी नहीं है और अधूरा है, यह चिंता की बात है। यह जरूरी है कि बच्चों पर केंद्रित नेशनल डेटा ग्रिड, बच्चों के काम करने के तरीके के बारे में जानकारी को एक साथ लाए। जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम और इसमें शामिल सभी अथॉरिटी बच्चों के संबंध में अपने कामकाज के बारे में रेगुलर स्टैंडर्ड डेटा पब्लिश करती हैं। जब तक इन्फॉर्मेशन स्पाइन नहीं बनती और इस्तेमाल नहीं होती, तब तक सिस्टम सही मायने में बच्चे के सबसे अच्छे हितों की सेवा नहीं कर सकता।"
-जस्टिस मदन बी. लोकुर, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के पूर्व जज  

FAQ

भारत में 50 हजार से अधिक बच्चे क्यों न्याय का इंतजार कर रहे हैं? 
रिपोर्ट के अनुसार, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में लंबित मामलों की संख्या अधिक है, जिससे बच्चों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है।
भारत के किन राज्यों में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड पर सबसे अधिक बैकलॉग है?
ओडिशा और कर्नाटक में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड पर सबसे अधिक लंबित मामले हैं, जो चिंताजनक स्थिति को दर्शाते हैं।
क्या भारत में जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम में सुधार की आवश्यकता है?
हां, रिपोर्ट बताती है कि जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम में कई खामियां हैं, जैसे जजों की कमी, बाल देखभाल गृह की स्थिति, और डेटा प्रणाली की कमजोरी। इन सुधारों की आवश्यकता है।

Karnataka Odisha child rights India Justice Report Juvenile Justice System Pending Juvenile Cases Child Care Homes JJ Act 2015 Juvenile Justice Board
Advertisment