इंदौर के 71 करोड़ के आबकारी घोटाले में ठेकेदार की जमानत खारिज, ED अब अधिकारियों की ओर

इंदौर के 71 करोड़ के आबकारी घोटाले में आरोपी ठेकेदार अंश त्रिवेदी की जमानत खारिज कर दी गई। ईडी अब अधिकारियों की जांच पर ध्यान केंद्रित कर रही है। घोटाले में सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है।

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Sanjay Gupta
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INDORE. इंदौर के 71 करोड़ के आबकारी घोटाले में गिरफ्तार आरोपी अंश त्रिवेदी और राजू दशवंत अब जमानत की कोशिश में जुटे हैं। ईडी की आपत्ति के बाद ठेकेदार अंश त्रिवेदी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है। ईडी ने साफ कहा है कि अंश मुख्य आरोपी है। उसने अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर फर्जी चालानों से उत्पाद शुल्क की चोरी की। इस घोटाले में सरकार को 71 करोड़ का नुकसान पहुंचाया है।

अंश ने बीमारी का बहाना बनाकर मांगी जमानत

अंश ने कोर्ट में पीठ दर्द होने और प्रतिष्ठित परिवार का सदस्य बताते हुए जमानत मांगी थी। हालांकि, ईडी के विशेष लोक अभियोजक चंदन ऐरन के तर्कों के बाद जमानत खारिज कर दी गई।

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अब अधिकारियों पर लटक रही तलवार

इस मामले में मुख्य आरोपी अंश और राजू से जानकारी जुटाने के बाद ईडी आबकारी अधिकारियों की गहन जांच में लग गई है। इसके लिए पहले ही इंदौर के तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे से घंटों पूछताछ की खबर है। इसके साथ ही कई अन्य आरोपी अधिकारियों को ईडी समन जारी कर पूछताछ के लिए बुला रही है। इन सभी के बयान को क्रॉस चेक किया जा रहा है और इसके बाद जरूरत होने पर ईडी अधिकारियों की भी गिरफ्तारी ले सकती है। इस मामले में दुबे के समय ही रावजी बाजार थाने में 11 अगस्त 2017 को केस दर्ज हुआ था। इसमें ठेकेदार और अन्य को आरोपी बनाया गया था।

इस तरह दुबे की पोस्टिंग के दौरान हुआ घोटाला

इंदौर के तत्कालीन आबकारी एसी संजीव कुमार दुबे की 11 नवंबर 2015 को पोस्टिंग हुई थी और दिसंबर 2015 से 70 करोड़ के आबकारी घोटाले की शुरुआत हुई। दिसंबर 2015 से जून 2016 तक की मासिक तौजी को कोषालय से सत्यापित करवाए बिना आबकारी आयुक्त को भेज दी गई।

इसे संजीव दुबे की गंभीर लापरवाही माना गया। दिसंबर 2015 से जुलाई 2017 की अवधि में आरोपी बैंक चालानों में लगातार फर्जीवाड़ा करते रहे और कुल 1195 चालानों के जरिए 71 करोड़ का घोटाला कर दिया। यदि दुबे जनवरी 2016 में दिसंबर 2015 के चालान का सत्यापन कोषालय से करवा लेते तो सरकार के साथ तीन साल तक हुआ ये फर्जीवाड़ा नहीं होता और एक माह में ही यह पकड़ में आ जाता।

विविध जांच प्रतिवेदन और ईडी जांच में भी कूटरचना की बात कही गई है। हैरानी की बात है कि राजू और अंश लाइसेंसधारक ही नहीं थे।

बताया जाता है कि दुबे और अंश की पुरानी पहचान थी। इसी के चलते यह सांठगांठ से काम हुआ।

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इस मामले में ईडी इन अधिकारियों से करेगी पूछताछ

तत्कालीन इंदौर सहायक आबकारी आयुक्त संजीव कुमार दुबे के साथ लसूड़िया आबकारी वेयरहाउस के प्रभारी डीएस सिसोदिया, महू वेयर हाउस के प्रभारी सुखनंदन पाठक, सब इंस्पेक्टर कौशल्या सबवानी, हेड क्लर्क धनराज सिंह परमार और अनमोल गुप्ता भी इस मामले में उलझे हुए हैं और सस्पेंड भी हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार इन सभी को ईडी ने पूछताछ के लिए समन जारी कर दिया है। इसी मामले में तब शिवराज सिंह चौहान सरकार ने 20 अन्य अधिकारियों के तबादले भी किए थे। जिनमें उपायुक्त विनोद रघुवंशी भी थे।

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ऐसे है 71 करोड़ का घोटाला

ईडी ने इंदौर में कुछ शराब ठेकेदारों के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत इंदौर के रावजी पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की थी। इसमें कथित तौर पर सरकारी ट्रेजरी के माध्यम से राज्य के खजाने को लगभग 49.42 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया था। हालांकि, बाद में जब शासन स्तर पर इसकी जांच हुई तो यह घोटाला 71 करोड़ तक पहुंच गया। हाल ही में इसी घोटाले में ईडी ने अधिकारियों के यहां भी दबिश दी थी।

ईडी ने अभी तक यह बताया

ईडी ने बताया कि जांच में धोखाधड़ी योजना का पर्दाफाश हुआ है। इसमें आरोपी ठेकेदारों ने शुरुआत में नाममात्र राशि वाले ट्रेजरी चालान जमा किए, लेकिन जानबूझकर रुपए में शब्द वाला भाग खाली छोड़ दिया। जमा करने के बाद, उन्होंने धोखाधड़ी से अंकों और शब्दों, दोनों में बढ़ा-चढ़ाकर राशि भर दी।

चालान की इन नकली प्रतियों को बाद में देशी शराब के गोदामों या जिला आबकारी कार्यालयों (विदेशी शराब के मामले में) में आबकारी शुल्क, मूल लाइसेंस शुल्क, या न्यूनतम गारंटी प्रतिबद्धताओं के भुगतान के झूठे प्रमाण के रूप में जमा किया गया। इन जाली दस्तावेजों के आधार पर, आरोपियों ने अवैध अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) और शराब लाइसेंस अनुमोदन प्राप्त किए, जिससे राज्य सरकार के साथ धोखाधड़ी की गई।

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अंश और राजू की भूमिका

ईडी ने बताया कि अंश त्रिवेदी और राजू दशवंत दोनों की पहचान मुख्य षड्यंत्रकारियों के रूप में हुई है। इन्होंने इस धोखाधड़ी को रचा और उसे अंजाम दिया। इससे शराब ठेकेदारों को अवैध रूप से मुनाफा कमाने में मदद मिली। राज्य के खजाने को भी भारी नुकसान हुआ। दोनों आरोपियों को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।

पहले भी हुई थी कार्रवाई

इस घोटाले को लेकर 11 अगस्त 2017 को रावजी बाजार पुलिस स्टेशन में 14 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया था। तब विभाग ने भी आबकारी विभाग के कई अधिकारियों को सस्पेंड किया था। इनकी विभागीय जांच अभी भी जारी है। हालांकि बाद में कई को बहाल कर दिया गया। आरोप है कि आबकारी विभाग के अफसरों को हर 15 दिन में चालान को क्रॉस चेक करना (तौजी मिलान) होना था, लेकिन उन्होंने तीन साल तक ऐसा किया ही नहीं।

इससे सांठगांठ का संदेह गया और अधिकारियों पर भी एक्शन हुआ। तब तत्कालीन सहायक आयुक्त इंदौर संजीव कुमार दुबे के साथ लसूड़िया आबकारी वेयरहाउस के प्रभारी डीएस सिसोदिया, महू वेयर हाउस के प्रभारी सुखनंदन पाठक, सब इंस्पेक्टर कौशल्या सबवानी, हेड क्लर्क धनराज सिंह परमार और अनमोल गुप्ता को सस्पेंड किया गया था। और साथ ही 20 अन्य अधिकारियों के तबादले भी किए थे, जिनमें उपायुक्त विनोद रघुवंशी भी थे।

ईडी इंदौर में मार चुकी है छापे

इसके पहले ईडी 28 अप्रैल को इंदौर में 18 जगह पर छापे मार चुकी है। तब ईडी की टीम एमजी रोड समूह के शराब ठेकेदार अविनाश और विजय श्रीवास्तव, जीपीओ चौराहा के राकेश जायसवाल, तोपखाना समूह के योगेंद्र जायसवाल, बायपास चौराहा राहुल चौकसे, गवली पलासिया समूह के सूर्यप्रकाश अरोरा, गोपाल शिवहरे, लवकुश और प्रदीप जायसवाल के ठिकानों पर गई थी।
मंदसौर में डीईओ दांगी पर भी मारा था छापा

साथ ही ईडी ने सितंबर माह में ही मंदसौर में डीईओ बीएल दांगी के यहां दबिश दी थी। तब खबर आई थी कि इस घोटाले के मुख्य आरोपी राजू दशवंत के साथ दांगी के करीबी संबंधों की जानकारी ईडी को मिली थी। यह जानकारी दशवंत के यहां अप्रैल में मारे गए छापे से सामने आई थी।

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