मध्य प्रदेश में शराब कारोबार का काला सच - 71 करोड़ का गबन और 1309 करोड़ बकाया

मध्य प्रदेश में शराब कारोबार सरकार के राजस्व का बड़ा जरिया है, लेकिन सिस्टम की खामियों और अफसरों की ढिलाई से सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है।

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Ravi Awasthi
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रवि अवस्थी, भोपाल।

इंदौर के फर्जी बैंक गारंटी शराब ठेका कांड में करीब 71 करोड़ रुपए के गबन का मामला सामने आया है। इसका खुलासा प्रकरण में केंद्रीय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एंट्री के बाद हुआ। वाणिज्यकर विभाग अब समूची राशि का आकलन कर इसकी वसूली की तैयारी में है।

फर्जी बैंक गारंटी से शराब दुकान का ठेका हथियाने का यह मामला साल 2022–23 का है। इसमें ठेका पाने के एवज में दी गई बैंक गारंटी और डीडी में हेरफेर उजागर होने पर इंदौर के रावजी बाजार थाने में आपराधिक मामला दर्ज हुआ। प्रारंभिक तौर पर प्रकरण में वेलवर्थ बेंगलुरू के मोहन कुमार राय और अनिल सिन्हा के अलावा विभागीय डिप्टी कमिश्नर संजय तिवारी तथा असिस्टेंट कमिश्नर राजनारायण सोनी की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी। बाद में संजय तिवारी को भोपाल ट्रांसफर कर दिया गया था। इसी साल उनकी पुनः इंदौर में पदस्थापना कर दी गई। विधानसभा में इस पर सवाल उठा तो सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि घोटाले के समय तिवारी इंदौर में फ्लाइंग स्क्वॉड में पदस्थ थे।

ईडी ने जगाई नींद, विभाग फिर भी सुस्त

गबन सामने आने पर शुरुआती दौर में तत्कालीन प्रमुख सचिव ने जांच के आदेश दिए। बाद में जांच के नाम पर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन बीते साल इस प्रकरण में केंद्रीय प्रवर्तन निदेशालय ने रुचि दिखाई। उसने आबकारी आयुक्त ग्वालियर और उपायुक्त इंदौर से पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की। ईडी की ओर से पहला पत्र बीते साल 6 मई को भेजा गया, लेकिन आबकारी अफसरों ने इसे अधिक तवज्जो नहीं दी। इसके बाद ईडी ने पुनः 21 मई को सख्त लहजे में पत्र लिखा, जिसके बाद विभागीय अफसर बैकफुट पर आए।

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जांच में 71 करोड़ का गबन सामने आया

सूत्रों के मुताबिक, साल 2023 में गठित समिति ने गबन की रकम करीब 41 करोड़ 65 लाख 21 हजार 890 रुपए बताई थी। इस रिपोर्ट को भी विभागीय स्तर पर दबा दिया गया। लेकिन ईडी की सख्ती के बाद गबन राशि का नए सिरे से आकलन हुआ। तब यह रकम बढ़कर 71 करोड़ 58 लाख 52 हजार 47 रुपए पाई गई। विभाग अब इस रकम की वसूली की तैयारी में है, लेकिन इससे पहले एक बार और विभागीय वित्तीय अधिकारियों से इसके परीक्षण का बहाना तलाशा जा रहा है।

1309 करोड़ की रकम बकाया 

प्रदेशभर में शराब और अन्य मादक पदार्थों से जुड़े कारोबार में राज्य सरकार की करीब 1309 करोड़ रुपए की लेनदारी बकाया है। यह रकम संबंधित ठेकेदारों से वसूली जानी है, लेकिन विभागीय अफसरों की इसमें कोई खास रुचि नहीं है। बल्कि कई मामलों में अफसर स्वयं ही ठेकेदारों को वॉकओवर देने वाले अंदाज में काम कर रहे हैं।

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ठेकेदारों से वसूली की जानी है, लेकिन विभागीय अफसरों की लापरवाही के कारण अरबों रुपए की यह रकम डूबत खाते में है। उदाहरण के तौर पर, साल 1998–99 में शिवनारायण जायसवाल ने रीवा में शराब दुकानों का ठेका लिया। जायसवाल ने ठेके की करीब 21 लाख की रकम आज तक अदा नहीं की। विभाग जायसवाल से इसलिए वसूली नहीं कर पा रहा है, क्योंकि उसे ठेकेदार का पता-ठिकाना ज्ञात नहीं है। जबकि यही ठेकेदार बाद के वर्षों में भी रीवा व अन्य जगहों पर शराब दुकानों के ठेके लेता रहा।

वसूली में जिम्मेदारों की ​कोई रुचि नहीं

साल 2020-21 में टीकमगढ़ में शराब दुकानों का ठेका हासिल करने वाले अल्सस इंडस्ट्रीज प्रा.लि. के दुष्यंत सिंह बुंदेला से 13 करोड़ के ठेके के बदले विभाग को सिर्फ पौने तीन करोड़ रुपए मिले। बकाया 10 करोड़ रुपए के मामले में कंपनी ने हाईकोर्ट दिल्ली से स्थगन आदेश ले लिया। इस स्टे को निरस्त कराने के लिए वाणिज्यकर विभाग ने कोई प्रयास नहीं किया। नतीजतन दुष्यंत महज 3 करोड़ चुकाकर मजे में हैं और विभाग उनसे बकाया वसूली के लिए भाग्य भरोसे है।

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रकम डूबत खाते में डालने की सिफारिश

प्रदेशभर में आबकारी से जुड़ी वसूली के सैकड़ों प्रकरण हैं। इनमें अधिकांश को पुराना बताकर रकम को अपलेखन (राइट-ऑफ) यानी डूबत खाते में डालने की सिफारिश संबंधित अधिकारियों ने कर दी है। कई मामलों में यह तर्क दिया गया कि बकायादार के नाम कोई चल-अचल संपत्ति नहीं है, इसलिए वसूली संभव नहीं। रीवा में ही 61 लाख रुपए की वसूली प्रकरण में कहा गया कि अमर सिंह नामक ठेकेदार डभौरा बैंक घोटाले में जेल में है, इसलिए उससे वसूली की संभावना क्षीण है।

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इंदौर में 6 अरब, भोपाल में 99 करोड़ रुपए बकाया

आबकारी विभाग में संभागवार बकाया रकम की बात करें तो इंदौर इस मामले में भी नंबर वन है। इंदौर संभाग में आबकारी ठेकेदारों पर करीब 689 करोड़ रुपए बकाया हैं। दूसरा स्थान उज्जैन संभाग का है, जहां 166 करोड़, रीवा संभाग में 159 करोड़ और भोपाल–नर्मदापुरम संभाग भी एक अरब के आंकड़े को छू रहे हैं। दोनों संभागों में 99 करोड़ रुपए से अधिक आबकारी ठेकेदारों से वसूले जाने हैं। ग्वालियर चंबल संभागों में 43 करोड़ रुपए से अधिक की वसूली लंबित है।

जिला स्तर पर बकायादारी में बुरहानपुर अव्वल

जिला स्तर पर शराब ठेकेदारों पर बकाया रकम की बात करें तो बुरहानपुर जिला इंदौर से आगे है। यहां करीब 425 करोड़ रुपए की बकायादारी है, जबकि इंदौर जिले की बकाया राशि करीब सौ करोड़ है। राजगढ़, सीहोर और हरदा मात्र तीन जिले ऐसे हैं, जहां ठेकेदारों पर कोई रकम बकाया नहीं है।

जानें, शराब ठेकेदारों पर कहां कितनी रकम बकाया

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संभाग           बकाया राशि (करोड़ रुपए में)

इंदौर                        689.64
उज्जैन                      166.56
रीवा                         159.72
जबलपुर                     85.56
सागर                         65.10
भोपाल                       57.06
ग्वालियर–चंबल           43.42
नर्मदापुरम                  42.14

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वसूली को लेकर अफसरों का बेपरवाह अंदाज

गबन हो या अरबों रुपए की बकायादारी, इसकी वसूली को लेकर जिम्मेदार अफसरों का रवैया बेहद लापरवाह है। विभाग के प्रमुख सचिव अमित राठौर का कहना है-“15–20 हजार करोड़ के ठेकों में इतनी रिकवरी की पेंडेंसी सामान्य बात है। फिर यह कोई एक साल की तो नहीं। कई मामले 10 से 15 साल पुराने भी हैं। वसूली की कार्रवाई चलती रहती है।”

वहीं भोपाल संभाग के उपायुक्त यशवंत कुमार धनोरा का कहना है-“कई मामले कोरोनाकाल के हैं, जिनमें विवाद की स्थिति है। कुछ लोग कोर्ट भी गए हैं। बावजूद इसके वसूली के प्रयास जारी हैं।”

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