राजेश मेहता के इंदौर बीसीएम अस्पताल ने फायदा उठाने के लिए बदली बैलेंस शीट, RBI बैंकिंग लोकपाल की टिप्पणी

इंदौर के प्रमुख बिल्डर राजेश मेहता और उनकी कंपनी बीसीएम अस्पताल ने बैलेंस शीट में बदलाव किया था। आरबीआई के बैंकिंग लोकपाल ने इस पर कड़ी टिप्पणी की है। अब मेहता ग्रुप ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है।

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Sanjay Gupta
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INDORE. इंदौर के जाने-माने बिल्डर और बीसीएम ग्रुप के प्रमुख राजेश मेहता बैलेंस शीट में फेरबदल करने के मामले में उलझ गए हैं। आरबीआई के बैंकिंग लोकपाल (ओंबड्समैन) ने बीसीएम अस्पताल कंपनी को लेकर अपने आदेश में तीखी टिप्पणी की है। यह कंपनी बिल्डर राजेश मेहता और रिषभ मेहता के डायरेक्टरशिप वाली है। वहीं लोकपाल के फैसले के खिलाफ मेहता ग्रुप ने हाईकोर्ट में अपील की है।

बैंक लोन का है मामला 

मामला यह है कि बीसीएम अस्पताल कंपनी ने बैंक लोन लिया था। बाद में कंपनी ने एसबीआई को इसके फोर क्लोजर के लिए आवेदन किया। यह फोर क्लोजर समय से पहले बैंक लोन चुकता करने के लिए किया जाता है।

इस प्रक्रिया में एसबीआई ने बाकी बचे लोन राशि पर दो फीसदी शुल्क लिया था। एसबीआई ने इस पर 65 लाख रुपए वसूले थे। मेहता ने इस पर आपत्ति जताई और आरबीआई के बैंकिंग लोकपाल से इसकी शिकायत की। जब लोकपाल ने सभी दस्तावेजों की जांच की तब मेहता की कंपनी के बैलेंस शीट में गड़बड़ी सामने आई।

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मेहता ने फायदे के लिए खुद को माइक्रो कंपनी दिखाया

मेहता की कंपनी के सीए ने 15 जून 2022 को एक सर्टिफिकेट दिया था। इसमें बताया गया कि कंपनी ने 20.73 करोड़ का निवेश किया था। यह निवेश प्लांट और मशीनरी में किया गया था। यह राशि मीडियम इंडस्ट्री कैटेगरी में आती है। बैंक ने पत्र संख्या IFB/KS/2022-23/ADV/51 में दिनांक 27 अक्टूबर 2022 को पत्र भेजकर कंपनी को सूचित किया था।

बैंक ने बताया कि वे मध्यम उद्यम के अंतर्गत आते हैं। इसके बाद कंपनी ने अपनी बैलेंस शीट में बदलाव किया। उन्होंने 20.73 करोड़ को निवेश के रूप में बदल दिया था। लोकपाल ने अपने आदेश में कहा कि जानबूझकर कंपनी ने खुद को माइक्रो इंडस्ट्री में बदल दिया था। इसका उद्देश्य फोर क्लोजर शुल्क से बचना और लाभ प्राप्त करना था।

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बैंक के जवाब-दस्तावेज से उलझे मेहता

एसबीआई ने जवाब में कहा कि संयंत्र और मशीनरी के मूल्य की गणना का आधार ABS 2022 और CA प्रमाणपत्र दिनांक 15.06.2022 है। दोनों विवरणों में संयंत्र और मशीनरी के लिए पहले से किए गए व्यय शामिल हैं। इसलिए, ये अनुमानित आंकड़े नहीं हैं। संयंत्र और मशीनरी में निवेश के आधार पर मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया गया था, इसलिए बैंक द्वारा खाते में पूर्व भुगतान जुर्माना लगाया गया है।

इस पूरे मामले में एसबीआई ने दिसंबर 2024 में एक सवाल पूछा था। उन्होंने पूछा कि सीए के 20.73 करोड़ के सर्टिफिकेट के बावजूद कंपनी ने खुद को माइक्रो इंडस्ट्री कैसे शिफ्ट किया। वहीं कंपनी ने बैंक की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे।

इसके जवाब में बैंक ने लोकपाल को विस्तार से जवाब दी। एसबीआई ने बताया कि संयंत्र और मशीनरी का मूल्य ABS 2022 और 15 जून 2022 के सीए प्रमाणपत्र पर आधारित था। इन दोनों दस्तावेजों में पहले से किए गए व्यय शामिल थे। इसलिए, ये आंकड़े अनुमानित नहीं थे।

बैंक ने कहा कि संयंत्र और मशीनरी में निवेश के आधार पर कंपनी को मध्यम उद्यम के रूप में क्लासिफाइड किया गया था। इस कारण बैंक ने खाते में पूर्व भुगतान जुर्माना लगाया था।

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बैंकों से इस तरह 73.68 करोड़ बैंक लोन लिया मेहता ने

इंदौर बीसीएम अस्पताल एलएलपी को 28 जुलाई 2022 को 49.68 करोड़ रुपए का लोन मिला था। इसमें 31 करोड़ का लोन टीएफसीआई (भारतीय पर्यटन वित्त निगम) से था। इसके अलावा 15 करोड़ का अतिरिक्त लोन और 3.68 करोड़ का जीईसीएल शामिल था। कुल मिलाकर इकाई को 73.68 करोड़ का लोन मिला था।

इसमें एसबीआई से 31 करोड़, यस बैंक से 30.68 करोड़ और कैनरा बैंक से 12 करोड़ था। प्रोजेक्ट की लागत में कंपनी ने 12.29 करोड़ का प्लांट एंड मशीनरी मूल्य घोषित किया था। सीए के 15 जून 2022 के सर्टिफिकेट में प्लांट एंड मशीनरी का मूल्य 20.73 करोड़ बताया गया था। संयंत्र और मशीनरी में निवेश के आधार पर इकाई को मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया था।

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रीजनल पार्क का टेंडर भी उलझ गया है

सूत्रों ने मेहता की कंपनी के रीजनल पार्क टेंडर को लेकर खुलासा किया। उन्होंने बताया कि पूरी टेंडर प्रक्रिया संदिग्ध थी और इसमें खेल हुआ। इस खुलासे के बाद नगर निगम इंदौर में हड़कंप मच गया था। तत्कालीन निगमायुक्त ने पत्र लिखकर टेंडर को फिर से डीपीआर बनाकर करने का आदेश दिया। यह मामला अब भी उलझा हुआ है।

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