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INDORE. इंदौर के भूमाफिया जो खेल कर रहे हैं, वह कम नहीं हैं। अब तो उन्होंने बीजेपी सरकार और सहकारिता विभाग को भी मोहरा बना दिया है। सहकारिता विभाग (मप्र शासन) ने त्रिशला हाउसिंग सोसायटी में प्रशासक नियुक्त किया है।
यह संस्था एक हजार करोड़ से अधिक की जमीन के विवाद में फंसी हुई है। कांग्रेस सरकार के दौरान केंद्रीय मंत्री रहे कपिल सिब्बल को अधिवक्ता बनाया गया है। वर्तमान में वे यूपी से निर्दलीय सांसद हैं। त्रिशला ने उन्हें केस में अपनी ओर से उतारा है।
सुप्रीम कोर्ट में यह हैं सरकारी पक्षकार
सुप्रीम कोर्ट में संस्था के चुनाव और सदस्यता को लेकर तीन याचिकाएं लगी हैं। इनमें सिद्धार्थ पोखरना, राजेंद्र पोखरना और अजय चौरसिया याचिकाकर्ता हैं। वहीं अब इसमें देखें पक्षकार कौन हैं। इसमें मप्र शासन, रजिस्ट्रार सहकारिता, मप्र सहकारिता विभाग, डिप्टी रजिस्ट्रार, त्रिशला गृह सोसायटी के प्रशासक समीर हरदास, भंवरलाल और इंदौर कलेक्टर यह सभी पक्षकार बने हुए हैं।
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इस तरह से सिब्बल को उतारा
लाखों की फीस लेने वाले सिब्बल को प्रशासक (जो सहकारिता विभाग के समीर हरदास हैं) की ओर से अधिवक्ता के तौर पर उतारा गया है। इसे त्रिशला गृह निर्माण सहकारी संस्था का बचाव करने के लिए उतारा गया है। इस पूरे मामले में मुख्य पार्टी त्रिशला ही है। इसी के जवाब पर पूरा केस टिका हुआ है। ऐसे में सिब्बल ही मोटे तौर पर पूरे केस को लीड करेंगे।
इस खेल की वजह 1000 करोड़ की जमीन
दरअसल यह खेल क्यों हुआ, यह बताते हैं। त्रिशला सोसायटी के हाल ही में चुनाव हुए थे। इसमें कब्जे के लिए भूमाफिया दीपक मद्दा और उनके सहयोगी को चुनाव में उतरा गया था।
द सूत्र के मुद्दा उठाने पर मद्दा और उनके भाई कमलेश सिसौदिया और अन्य ने नाम वापस ले लिया था। वहीं उनके करीबी लोग निर्विरोध संचालक मंडल में आ गए थे। जबकि संस्था से 30 से ज्यादा लोगों को वोटर लिस्ट और सदस्यता से बाहर कर दिया गया था।
इनकी आपत्तियों को सहकारिता ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट में इन्हीं भूमाफिया के व्यक्ति भंवरलाल के जरिए याचिका लगाकर संस्था के चुनाव कराने की मांग की गई थी। इस पर हाईकोर्ट ने तीन माह में चुनाव कराने के आदेश दिए थे।
वहीं, सहकारिता विभाग ने आपत्तियों को नजरअंदाज कर चुनाव कराए। उन्होंने बड़ी सांठगांठ की। शांति से चुनाव कराए गए और नया संचालक मंडल बनाया गया। जो पर्दे के पीछे भूमाफिया का ही था।
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया खारिज
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट गया और पोखरना और चौरसिया की अपील लगी थी। इसमें 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश देते हुए चुनाव को होल्ड कर दिया था। साथ ही, आदेश दिया कि इस मामले में सदस्यता की जांच कराने और चुनाव कराने के लिए क्यों न हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस की अध्यक्षता में कमेटी बना दी जाए। इस पर सभी पक्षकार अपना जवाब अगली सुनवाई में देंगे। इसी सुनवाई में पक्षकारों ने कपिल सिब्बल को उतार दिया है।
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सिब्बल ने दी चुनाव बहाल की ये दलीलें
सिब्बल ने इस केस में त्रिशला सोसायटी के चुनाव को फिर से बहाल करने की जमकर दलीलें दी। उन्होंने कहा कि यह अपील याचिकाकर्ता के सदस्य होने या नहीं होने को लेकर है। इसलिए चुनाव नहीं होल्ड हो सकते हैं, क्योंकि वह तो हो चुके हैं।
ऐसे में चुनाव को बहाल किया जाए। वहीं, यदि याचिकाकर्ता की अपील मंजूर होती है तो उन्हें सदस्य बना लिया जाएगा। वैसे भी वह 2007 से इस्तीफा देकर बाहर हो चुके थे। इसके बाद, 2022 में फिर से आपत्ति लगाने का कोई मतलब नहीं है।
रही जमीन की बात तो वह तो अभी आईडीए के पास है। इसका तो मुद्दा अभी उलझा है, तो जमीन तो है ही नहीं फिर चुनाव होल्ड क्यों किया जा रहा है। साथ ही पूरे सदस्यों की जांच की तो मांग याचिका में है ही नहीं, सिर्फ उनके सदस्य बनने या नहीं बनने का मामला है, जो अपील से तय हो जाएगा।
इस पर सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस ने यह कहा
यह बेंच खुद सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस सूर्यकांत की थी। उन्होंने इस पर कहा कि हम कमेटी को अथॉरिटी दे रहे हैं। इसमें समस्या क्या है यदि वह सदस्यों की सदस्यता देखें और फिर चुनाव कराएं तो।
हमें मामला संदिग्ध लगा, इसलिए जरूरी है कि सदस्यता देखी जाए। एक न्यूट्रल कमेटी के जरिए इसकी जांच कराई जाए और चुनाव कराए जाएं। वैसे भी बहुत कम सदस्य हैं, इसमें अधिक समय नहीं लगेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ लिख दिया है कि इसमें अब 9 फरवरी को सुनवाई होगी। तब तक सोसायटी रजिस्ट्रार सहित राज्य का कोई भी प्राधिकरण, सोसायटी की सदस्यता या चुनाव की प्रमाणिकता निर्धारित करने के लिए मामले की कोई कार्रवाई नहीं करेगा। यानी कि नया संचालक मंडल होल्ड ही रहेगा।
कलेक्टर के पास रखी है शिकायत
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने सहकारिता विभाग और कलेक्टर इंदौर के पास कई शिकायतें की। इसके बावजूद इसमें कोई जांच नहीं हुई है। वहीं सहकारिता ने इन आपत्तियों को यह कहकर खारिज कर दिया कि उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है।
वहीं याचिकाकर्ताओं का साफ कहना है कि जब संस्था का मूल रजिस्टर ही नहीं है तो फिर यह कैसे चुनाव कराए जा रहे हैं। आडिट शीट में उनके नाम रहे हैं। वहीं, सहकारिता विभाग ने यह सभी खारिज कर चुनाव करा लिए। ऐसे में बैकडोर से संस्था भूमाफिया के पास चली गई, जिस पर अब रोक लगी है।
क्या बोल रहे सहकारिता विभाग अधिकारी
इस मामले में सहकारिता की ओर से संस्था के प्रशासक समीर हरदास ने मामला कोर्ट का होने से कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। वहीं उपायुक्त डॉ. मनोज जायसवाल ने कहा कि हमारी ओर से तो सरकारी ही अधिवक्ता थे, संस्था की ओर से कौन थे, मुझे जानकारी नहीं है।
जब द सूत्र ने पूछा कि वह तो प्रशासक आपके ही ओर से सरकारी हैं तो उपायुक्त ने कहा कि हां, लेकिन इसे भोपाल स्तर पर अधिकारी देख रहे हैं। मामला कोर्ट में है, तो इसमें कुछ नहीं कह सकते हैं।
हाईकोर्ट के सिंगल और डबल बेंच आदेश में यह था
हाईकोर्ट सिंगल बेंच ने जुलाई में भंवरलाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन माह में चुनाव कराने के आदेश दिए थे। इसके बाद सिद्धार्थ पोखरना सहित 30 से अधिक सदस्यों ने आपत्ति लगाई थी।
उन्होंने कहा था कि उन्हें मतदाता सूची से ही बाहर कर दिया गया है, पहले उनकी सदस्यता तय हो। वहीं, इस पर सहकारिता अधिकारियों ने जमकर खेल किया था। यह कहकर आपत्तियों को दरकिनार किया कि संस्था की मूल पंजी नहीं है। वहीं जो आडिट पंजी है, इसमें उनके नाम ही नहीं हैं, ऐसे में वह सदस्य नहीं हैं।
जबकि पोखरना तो साल 2000 से 2006 तक संस्था में अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जैसे पदों पर ही रहे हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में लगी सभी याचिकाएं खारिज कर दी थीं। इसके बाद चुनाव समय पर हुए और भूमाफिया ने मनचाहा संचालक बोर्ड बनवा लिया।
विवाद होने पर मद्दा और दोनों भाइयों ने नामांकन वापस लिया था
द सूत्र के जरिए खुलासा करने के बाद दीपक मद्दा के साथ ही उनके दोनों भाई कमलेश जैन और निलेश जैन ने भी नाम वापस ले लिया था। साथ ही उनके करीबी नरसिंह गुप्ता, हाईकोर्ट में चुनाव में याचिका लगाने वाले भंवरलाल गुर्जर ने भी नामांकन वापस लिया था। साथ ही चंद्रप्रकाश सामिलदास परिहार, पवन ओमप्रकाश सिंह, भाग्यश्री चिटणीस, वर्षा पिता ओमप्रकाश, आशा रामकुमार उमरिया, संजय सेंगर, नीरज गाले ने नाम वापस लिया था।
संचालक बोर्ड में यह निर्विरोध आए
अन्य के नाम वापस लेने के बाद संस्था के संचालक बोर्ड में 10 पदों पर निर्विरोध उम्मीदवार आ गए। निर्विरोध आए उम्मीदवारों में नंदकिशोर छगनलाल गौड़, रामचंद्र कंवरलाल बागौरा, निखिल सदाशिव अग्रवाल, ईश्वर कालूराम अग्रवाल, मोहन गोपाल सिंह झाला, महेंद्र हुकुमचंद वोरा (जैन), नीरज मांगीलाल माते, अन्नुलाल मलकु कुमरे, ममता दिलीप जैन और सपना मंगेश जैन शामिल थे।
मामला संज्ञान में आया है, कार्रवाई करेंगे
कलेक्टर शिवम वर्मा ने कहा कि मामला बेहद गंभीर है। मामले में नियम अनुसार सरकारी अधिवक्ता ही नियुक्त होने चाहिए। संस्था के प्रशासक के जरिए इस तरह से कैसे किया गया है, इसकी जांच होगी। साथ ही, जिम्मेदारों से जवाब मांगा जाएगा।
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