इंदौर का फर्जी रजिस्ट्री खेल 700 करोड़ की संपत्ति का, जांच रूकवाने के लिए पंजीयन अधिकारियों को फंसाने की हुई साजिश

इंदौर में हुए फर्जी रजिस्ट्री स्कैम का खुलासा हुआ है, जिसमें 700 करोड़ रुपये की संपत्तियां फर्जी तरीके से बेची गईं। इसमें पंजीयन विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है।

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Sanjay Gupta
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Photograph: (the sootr)

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इंदौर में फर्जी रजिस्ट्री का मामला पहले 100 करोड़ के करीब का माना जा रहा था। लेकिन अब इन संपत्तियों को खंगाला गया तो मामला इन संपत्तियों के बाजार मूल्य के हिसाब से यह 700 करोड़ को छू रहा है। इसमें उन संपत्तियों को निशाना बनाया जा रहा था जिसमें कोई वारिसान नहीं हो या फिर वह कहीं बाहर रहते हो।

इस खेल के जादूगरों ने जांच को रूकवाने के लिए यहां तक साजिश रखी की वरिष्ठ जिला पंजीयक की ही फर्जी शिकायतें कर दी। पूरा खेल रिकार्ड रूम स्तर पर निचले कर्मचारियों और बाहर के लोगों ने मिलकर किया और इसमें पंजीयन विभाग के अधिकारियों को उलझाने के लिए सूचना के अधिकार से लेकर कई तरह के खेल किए गए। 

पहले बताते हैं मामला क्या है

अगस्त-सिंतबर 2024 में मुंबई में रहने वाले हस्तीमल चौकसे की शिकायत से खुलासा हुआ। वह मुंबई रहते हैं और साल में एक बार इंदौर आते हैं और निगम में सभी अपने टैक्स भरते हैं। जब वह बीते साल टैक्स भरने आए तो बताया गया जोन 3 में शिवविलास पैलेस का प्लाट तो उनके नाम पर है ही नहीं। इस पर वह चौंक गए। उन्होंने इसकी शिकायत कलेक्टर, निगमायुक्त और पंजीयन विभाग में की।

कलेक्टर ने वरिष्ठ जिला पंजीयक दीपक शर्मा को इसकी जांच का जिम्मा दिया। जांच में सामने आया कि रिकार्ड पंजी में फर्जी रजिस्ट्री लगाई गई और फिर इसकी सत्यापित कॉपी लेकर निगम में अपने नाम पर चढ़वा ली गई। इसमें पंजीयन के रिकार्ड कर्मचारी मर्दन सिंह रावत की भूमिका सामने आई। इसमें थाने में केस दर्ज कराया गया। वहीं इसके बाद ही कलेक्टर ने इस तरह के मामलों की जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर दी। जांच में 20 रजिस्ट्रियां संदिग्ध पाई गई। 

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चौंकाने वाले मामले में ऐसे हो रहा था खेल

जांच कमेटी ने पाया कि रिकार्ड में रजिस्ट्री के कागज रखे हुए रहते हैं। इसमें निचले स्तर के कर्मचारी के साथ जमीन के जादूगरों ने सांठगांठ की, इसमें वह संपत्तियां चिन्हित की गई जिसमें कोई वारिस नहीं या फिर जिन पर उनके संपत्ति मालिक ध्यान नहीं दे रहे।

इसके बाद यह रिकार्ड में पहले फर्जी रजिस्ट्री बाहर से बनवाते थे और फिर उसे कर्मचारी के साथ मिलकर रिकार्ड पुस्तिका में मूल रजिस्ट्री कागज हटाकर, उन्हें चिपका दिया जाता था। साथ ही अंगुली पंजी से वह पन्ना फाड़ देते थे, जिसमें अंगुली हस्ताक्षर होते थे।

फिर सूचना के अधिकार में या फिर आवेदन लगाकर इस फर्जी रजिस्ट्री की सत्यापित कॉपी निकलवाई जाती थी। इस तरह से दो नंबर की फर्जी रजिस्ट्री को पंजीयन विभाग से ही सत्यापित कराके लिया जाता था। फिर इसका नामांतरण कराकर संपत्ति को बेचने, बैंक से लोन लेने जैसे कांड हो रहे थे। 

ऐसे समझे 700 करोड़ के इस रजिस्ट्री फर्जीवाडे़ को 

  1. 700 करोड़ रुपये की संपत्तियों में फर्जी रजिस्ट्री:  इंदौर फर्जी रजिस्ट्री घोटाले का पर्दाफाश हुआ, जिसमें 700 करोड़ रुपये की जमीन और संपत्तियों को फर्जी तरीके से बेचा गया।
  2. निशाना बनीं बिना वारिस वाली संपत्तियां: खेल उन संपत्तियों पर था जिनके मालिक या तो बाहर रहते थे या जिनके पास कोई वारिस नहीं था, जिन्हें फर्जी रजिस्ट्री से निशाना बनाया गया।
  3. पंजीयन विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत: इस घोटाले में पंजीयन विभाग के कर्मचारियों ने अपनी भूमिका निभाई, और फर्जी रजिस्ट्री की सत्यापित कॉपी हासिल करने में मदद की।
  4. फर्जी शिकायतों के जरिए जांच रोकने की साजिश: घोटाले में शामिल लोगों ने जांच रोकने के लिए पंजीयन अधिकारियों को फंसाने के लिए फर्जी शिकायतें दर्ज करवाईं।
  5. एफआईआर और पुलिस जांच जारी: कलेक्टर के आदेश पर इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई, और पुलिस जांच में जुटी है कि इन फर्जी रजिस्ट्री का इस्तेमाल कैसे किया गया और कौन-कौन से लोग इसमें शामिल थे।

 

20 रजिस्ट्री में 32 हेक्टेयर जमीन, कीमती प्लाट शामिल

इन संदिग्ध 20 रजिस्ट्री की जांच में आया कि अन्य रजिस्ट्री कागज और इनके कागज में अंतर है, गोंद से अलग से चिपकाए दिख रहे हैं, अंगुली पंजी से पन्ना फटा हुआ है। इन 20 रजिस्ट्री में अलग-अलग जगह की 32 हेक्टेयर जमीन की संपत्ति जुड़ी हुई है, इस के साथ मनोरमागंज, मित्रबंधु नगर, शिव विलास पैलेस प्लाट, न्याय नगर का प्लाट, उषा नगर दशहरा मैदान भूखंड जैसी संपत्तियां शामिल है। इनकी बाजार कीमत 700 करोड़ के करीब होती है। 

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कॉपी नहीं मिली तो बड़ा खेल अधिकारियों को उलझाने का

इस पूरे कांड में पंजीयन विभाग के रिकार्ड रखने वाले कर्मचारी मर्दन सिंह रावत का नाम आया था, जिसे सस्पेंड किया है। वहीं इस मामले में जादूगरों ने मामला खुलने पर जांच कमेटी और वरिष्ठ जिला पंजीयक को ही फंसाने का षड़यंत्र रचा। इसमें राहुल चौहान, अमित सिंह राठौर और अजय शुक्ला व अंकित यादव ने कलेक्टर के पास आवेदन दिए।

इसमें अंकित यादव ने तो वरिष्ठ जिला पंजीयक पर रजिस्ट्री की सत्यापित कॉपी नहीं दिए जाने पर रिश्वत मांगने तक के आरोप लगा दिए। जबकि यह पूरा खेल ही फर्जी रजिस्ट्री की सत्यापित कॉपी लेकर किया जाता था। यह मामला जांच कमेटी के सामने आ गया था, इसके चलते यह रजिस्ट्री की कॉपी नहीं दी गई।

वहीं इन्हें भी पता चल गया था कि जांच कमेटी ने उनकी रजिस्ट्री फर्जी है यह ढूंढ लिया है और मामला पुलिस के पास जाना है, ऐसे में इन्होंने कलेक्टर के पास आवेदन कर दिए। यह आवेदन जून अंत में लगाए गए, जबकि जांच कमेटी अपनी प्रारंभिक जांच पूरी कर चुकी थी और इसके बाद उन्होंने कलेक्टर को 14 जुलाई को रिपोर्ट दे दी। 

इन आवेदनों में करोड़ों की संपत्ति शामिल

इन शिकायतों में जिन संपत्तियों की सत्यापित कापी मांगी गई इसमें करोड़ों की जमीन शामिल है। राहुल चौहान द्वारा की गई शिकायत में सुनील पाटीदार, चंदन पाटीदार, नंदकिशोर पाटीदार के साथ रजिस्ट्री कार्यालय के कर्मचारियों के मिलीभगत के आरोप है और कहा गया है कि मेरा नामांतरण रूकवाने के लिए यह खेल किया गया है।

एक अन्य शिकायत में है कि संजय, सुभाष, नंदन किशोर, होलकर द्वारा पंजीयन कार्यालय के नरेंद्र भारतीय व मर्दन रावत से मिलकर साजिश की जा रही है और मेरी रजिस्ट्री को फर्जी बताया जा रहा है। अमित सिंह ठाकुर की शिकायत में है कि सुनील पाटीदार, चंदन पाटीदार और नंदकिशोर पाटीदार द्वारा रजिस्ट्रार आफिस में सांठगांठ कर मेरी रजिस्ट्री को फर्जी बताने का प्रयास किया जा रहा है।

सत्यापित कॉपी निकलवाने लगातार काट रहे चक्कर

इस मामले की जबसे कलेक्टर सिंह ने जांच बैठाई है तभी से कई आवेदक पंजीयन दफ्तर में इन रजिस्ट्री के दस्तावेज की सत्यापित कॉपी निकलवाने में लग गए थे। अभी भी लगातार कई लोग चक्कर लगा रहे हैं। इसके लिए आवेदन खारिज होने पर यह सूचना के अधिकार में भी आवेदन लगाकर इनकी सत्यापित कॉपी निकलवाने में लगे हैं। पंजीयन अधिकारियों के खिलाफ शिकायती आवेदन देने के साथ ही चार बार यह सूचना के अधिकार में सत्यापित कॉपी पाने की कोशिश कर चुके हैं। 

कलेक्टर ने करवा दी है एफआईआर

कलेक्टर के आदेश पर 9 दिसंबर 2024 को उप पंजीयकों की पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई थी, जिसकी रिपोर्ट 17 जुलाई को प्राप्त हुई। इसमें 20 रजिस्ट्री फर्जी मिली, जिसमें दो मामले में पहले ही एमजी रोड थाने पर केस हो चुका है। बाकी 18 मामलों में अब पंढरीनाथ थाने में केस दर्ज करा दिया गया है।

अब पुलिस इस मामले में सभी दस्तावेज जब्त करके पता लगाएगी कि इनकी फर्जी कॉपी किसने प्राप्त की, किसने इसका उपयोग किया और कैसे किया, आवेदन किसने लगाया था, नामांतरण के आवेदन करके संपत्ति का क्या किया, क्या कोई बैंक लोन भी लिया है और इसमें दलाल के साथ ही किसी विभाग के कर्मचारियों की कोई भूमिका है या नहीं। इसमें जिनके नाम आएंगे वह सभी नामजद आरोपी बनेंगे। 

रजिस्ट्री की फारेंसिक जांच भी जरूरी

पुलिस को इसके लिए यह भी देखना हो कि जो कागज, दस्तावेज हैं, उसकी सत्यता कितनी है. फर्जी रजिस्ट्री कब बनी, यह दस्तावेज किस अवधि के हैं और इसमें सील, बाइडिंग, स्याही आदि का उपयोग किस समय हुआ। इसके लिए फारेंसिकं जांच होगी। 

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