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मध्य प्रदेश के इंदौर के कुटुंब न्यायालय में एक आम-सा तलाक मामला शुरू हुआ। अब यह मामला अचानक पेचीदा हो गया। पति ने खुद को पीड़ित बताते हुए कहा कि पत्नी ने रिश्ता छोड़ दिया और अपनी सेहत के बड़े राज छिपाए। इन बातों के कारण पूरा मामला अचानक नए मोड़ पर पहुंच गया।
इन पांच प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला
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इंदौर की फैमिली कोर्ट में अनोखा तलाक केस
इंदौर के कुटुंब न्यायालय में एक मामला एक आम तलाक याचिका की तरह शुरू हुआ। पति ने खुद को पीड़ित बताते हुए कहा कि पत्नी ने न सिर्फ उसका साथ छोड़ दिया, बल्कि अपनी तबीयत से जुड़े अहम तथ्य भी छिपाए।
याचिका में पति ने आरोप लगाया कि विवाह से पहले पत्नी और उसके परिवार ने उसकी बीमारी की जानकारी जानबूझकर नहीं दी। पति ने यह भी कहा कि शादी के बाद पत्नी का व्यवहार खराब हो गया और माहौल असहनीय हो गया।
पति के गंभीर आरोप, मगर तस्वीर कुछ और निकली
पत्नी पर लगाए गए आरोपों में दो बड़े दावे थे। पहला, क्रूरता यानी मानसिक और व्यवहारिक प्रताड़ना, दूसरा, चिकित्सा स्थिति को छिपाकर शादी करना। पति की तरफ से कहा गया कि यदि बीमारी के बारे में पहले पता होता, तो शायद वह यह रिश्ता स्वीकार ही न करता।
उसने अदालत से गुहार लगाई कि ऐसी परिस्थितियों में साथ रहना संभव नहीं है, इसलिए वैवाहिक संबंध खत्म किए जाएं।
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सुनवाई के दौरान टैटू ने बदल दी पूरी दिशा
कानूनी बहस के बीच अदालत ने एक अलग ही बात पर गौर किया। पति अपने हाथ पर बने टैटू को लगातार ढकने की कोशिश कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कुछ छिपाना चाहता हो।
पत्नी की ओर से वकीलों ने दलील दी कि यह टैटू किसी दूसरी महिला से जुड़े उसके निजी रिश्ते का संकेत है। कोर्ट ने नोट किया कि यदि पति साफ है, तो उसे टैटू छुपाने की जरूरत क्यों पड़ रही है।
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अदालत की नजर में असली गलती किसकी थी
साक्ष्य और बयान दर्ज होने के बाद अदालत ने पूरा रिकॉर्ड ध्यान से देखा। सामने आया कि घर और बच्चों को छोड़कर जाने वाला पति ही था, न कि पत्नी। कोर्ट ने माना कि वैवाहिक जीवन में दिक्कतें थीं।
पति ने अपना दायित्व छोड़कर दूर जाने का फैसला लिया। ऐसे में सिर्फ पत्नी पर बीमारी छिपाने और कुप्रवृत्ति के आरोप लगाकर तलाक लेना न्यायसंगत नहीं माना गया।
बीमारी छिपाने का आरोप कितना ठोस साबित हुआ
अदालत ने यह भी जांचा कि बीमारी छिपाने वाले आरोप के क्या सबूत हैं। मेडिकल दस्तावेज, शुरुआती बातचीत और गवाहों के बयान को तौला गया। रिकॉर्ड से यह साफ नहीं हो पाया कि पत्नी के परिवार ने जानबूझकर कोई अहम जानकारी छिपाई थी। इस पर अदालत ने कहा कि सिर्फ आरोप काफी नहीं, ठोस सबूत भी जरूरी होते हैं।
तलाक याचिका खारिज, परिवार के लिए क्या मायने
इन सभी तथ्यों के आधार पर कुटुंब न्यायालय ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी। अदालत ने साफ किया कि झूठे या कमजोर आधार पर वैवाहिक संबंध तोड़ना उचित नहीं है।
इस फैसले का सीधा असर पत्नी और बच्चों पर पड़ा, जो अब कानूनी रूप से अपने संबंधों को बरकरार पा रहे हैं। कोर्ट ने यह संकेत भी दिया कि जिम्मेदारी छोड़कर भागने वाले जीवनसाथी को कानून संरक्षण नहीं देगा।
इस मामले में अदालत ने माना कि पति का झुकाव परिवार से ज्यादा किसी और ओर दिख रहा है। ऐसे में केवल पत्नी को दोषी ठहराकर तलाक देना न्यायसंगत नहीं, इसलिए याचिका को स्वीकार नहीं किया गया।
टैटू, सोशल लाइफ और वैवाहिक केस में सबक
इस केस ने दिखाया कि आज की डिजिटल और सोशल लाइफ का हर निशान अदालत में सबूत बन सकता है। एक टैटू से सच्चाई उजागर हो गई।
कई बार लोग निजी रिश्ते छुपाकर नया रिश्ता शुरू करते हैं, लेकिन उनकी आदतें और निशान सच बता देते हैं। अदालत ऐसे संकेतों को नजरअंदाज नहीं करती, खासकर जब भरोसे के उल्लंघन के सवाल सामने हों।
झूठे आरोपों पर तलाक नहीं
परिवार न्यायालयों में तलाक के कई मामले सिर्फ आरोपों के दम पर दाखिल होते हैं। न्यायालय हर केस में यह देखता है कि क्या वैवाहिक संबंध वास्तव में टूट चुके हैं या आरोप बढ़ा‑चढ़ाकर लगाए गए हैं।
विवाह केवल दो व्यक्तियों का साथ नहीं, भरोसे और सचाई पर टिके रिश्ते का नाम है। बीमारी, आर्थिक स्थिति या पुराने रिश्तों जैसी अहम बातें छुपाना आगे चलकर बड़े विवाद की वजह बन सकता है।
साथ ही, झूठे आरोप लगाकर कानूनी रास्ते से छुटकारा पाने की कोशिश भी उलटी पड़ सकती है।
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