सहायक कंट्रोलर बोले- मुस्लिम हूं इसलिए किया ट्रांसफर, HC ने कहा यह सामान्य सरकारी प्रक्रिया
याचिकाकर्ता नसीम उद्दीन ने अपने स्थानांतरण को चुनौती देते हुए कहा था कि यह तब किया गया, जब स्थानांतरण पर प्रतिबंध लागू था। उन्होंने इसे दुर्भावनापूर्ण और असंवैधानिक बताया था।
इंदौर हाईकोर्ट में रतलाम के मौसम विभाग में पदस्थ सहायक कंट्रोलर ने अपने ट्रांसफर आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। उसमें कहा था कि वह मुस्लिम है इसलिए दुर्भावना के चलते उसका ट्रांसफर काफी दूर रतलाम से छिंदवाड़ा कर दिया गया है। इस पर कोर्ट ने तर्क दिया कि ऐसा होता तो कुछ दिन पूर्व आपको रतलाम के साथ इंदौर का प्रभार नहीं देते। इस पर हाईकोर्ट ने असिस्टेंट कंट्रोलर, लीगल मेट्रोलॉजी, रतलाम के स्थानांतरण के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकलपीठ ने याचिका को निराधार मानते हुए कहा कि बिना ठोस प्रमाण के लगाए गए आरोपों को स्वीकार करना प्रशासनिक व्यवस्था में गंभीर बाधा उत्पन्न कर सकता है।
यह था मामला
याचिकाकर्ता नसीम उद्दीन ने अपने स्थानांतरण को चुनौती देते हुए कहा था कि यह तब किया गया, जब स्थानांतरण पर प्रतिबंध लागू था। उन्होंने इसे दुर्भावनापूर्ण और असंवैधानिक बताया था। उनका कहना था कि वे मुस्लिम हैं, इसलिए उनका ट्रांसफर रतलाम से काफी दूर छिंदवाड़ा कर दिया गया है। याचिकाकर्ता ने अदालत से 13 मार्च 2025 और 17 मार्च 2025 को जारी स्थानांतरण आदेशों को रद्द करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने एक दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा था कि भाजपा के स्थानीय नेता के कहने पर यह किया गया। इसमें याचिकाकर्ता और अन्य चार व्यक्तियों को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने की सिफारिश बताई गई है, जो सभी मुस्लिम हैं। वहीं, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि याचिका ही धर्म का लाभ उठाने के इरादे से दायर की गई है। स्थानांतरण के आदेश को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को 22 अक्टूबर 2024 को डिप्टी कंट्रोलर लीगल मेट्रोलॉजी, इंदौर का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा उनका स्थानांतरण दुर्भावना का प्रतीक नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि स्थानांतरण सेवा का एक हिस्सा है और सरकार की नीति निर्देशक होती है, बाध्यकारी नहीं।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने माना कि यदि बिना आधार के सांप्रदायिक भेदभाव के आरोप लगाए जाएंगे, तो प्रशासनिक आदेशों के निष्पादन में बाधा उत्पन्न होगी। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी मुस्लिम अधिकारी द्वारा गैर-मुस्लिम कर्मचारी का स्थानांतरण किया जाए और उसे सांप्रदायिक रंग दिया जाए, तो यह राज्य व्यवस्था के लिए घातक होगा। वहीं, ऐसे निराधार आरोपों को स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे प्रशासनिक आदेशों के क्रियान्वयन में गंभीर उल्लंघन होगा। आने वाले समय में मुस्लिम समुदाय का कोई अधिकारी अपने अधीनस्थों, जो गैर-मुस्लिम समुदाय से हैं, के स्थानांतरण का आदेश देते समय भी सांप्रदायिक पूर्वाग्रह की ऐसी आलोचना के अधीन हो सकता है। इससे राज्य मशीनरी पूरी तरह विफल हो सकती है।