जैन समाज अल्पसंख्यक या हिंदू समाज का हिस्सा, फैमिली कोर्ट का विवाद पहुंचा हाईकोर्ट

एडवोकेट रोहित मंगल ने बताया कि उनके पक्षकार ने पति से तलाक लेने के लिए फैमिली कोर्ट में आवेदन किया था। कोर्ट ने यह कहते हुए सुनवाई करने से इनकार कर दिया था कि वे माइनॉरिटी में आते हैं।

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Vishwanath Singh
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इंदौर के हाईकोर्ट में जैन समाज के तलाक के मामलों को लेकर लगी याचिका पर मंगलवार को हुई बहस के बाद फैसला 5 मई को आएगा। फैमिली कोर्ट ने जैन समाज के तलाक के मामलों में सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। उनका तर्क था कि जैन समाज को माइनॉरिटी का दर्जा मिल गया है तो उनके तलाक के केस को भी स्पेशल कोर्ट में ही सुना जाए। इसी को जैन समाज की महिला के एडवोकेट रोहित मंगल की तरफ से हाईकोर्ट में चैलेंज करते हुए पिटीशन दायर की थी। 

फैमिली कोर्ट ने कहा, जैन समाज माइनॉरिटी में है

हाई कोर्ट एडवोकेट रोहित मंगल और रोमेश दवे ने बताया कि उनके पक्षकार ने पति से तलाक लेने के लिए फैमिली कोर्ट में आवेदन किया था। कोर्ट ने यह कहते हुए सुनवाई करने से इनकार कर दिया था कि वे माइनॉरिटी में आते हैं। इसलिए उनके तलाक के केस में सुनवाई यहां पर नहीं की जा सकती है। इसके लिए उन्हें स्पेशल कोर्ट जाना होगा।

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हाईकोर्ट में दिया संविधान का हवाला

उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट जस्टिस एसए धर्माधिकारी और संजीव एस कालगांवकर के समक्ष मंगलवार को बहस हुई। उस दौरान तर्क रखा गया कि हिंदू मैरिज एक्ट में सेक्शन 2 में जैन समाज को भी शामिल किया है। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 25 में हिंदुओं के अधिकार किसे मिलेंगे, इसका भी उल्लेख है। इसके अलावा 2014 में जैन समाज को माइनॉरिटी का दर्जा मिला है। हिंदू मैरिज एक्ट में जैन समाज को लेकर कोई संशोधन भी नहीं किया गया है।

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रैफरेंस कर सकते थे केस

कोर्ट में बहस के दौरान यह बात भी सामने आई कि फैमिली कोर्ट अगर इस केस की सुनवाई नहीं कर सकती थी तो वह इस केस को हाईकोर्ट में रेफरेंस भी कर सकती थी। इस पर बहस हुई कि मसला केस को रैफरेंस करने का है ही नहीं। जैन समाज के तलाक के केस को फैमिली कोर्ट में ही अन्य केस की तरह ही सुना जाना चाहिए। इस पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला 5 मई तक के लिए सुरक्षित रखा है।

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