इंदौर के हाउसिंग बोर्ड ने वन विभाग पर थोपी अपनी जिम्मेदारी, शहर से बाहर 10 गुना लगाने होंगे पेड़

हाउसिंग बोर्ड ने इस पौधरोपण के लिए वन विभाग पर अपनी जिम्मेदारी थोप दी है। वन विभाग के अनुसार यह पौधारोपण बड़ियाकीमा गांव के इलाके में किया जा रहा है। काटे जाने वाले पेड़ों की तुलना में दस गुना यानि करीब 25000 पौधे लगाए जाएंगे।

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Vishwanath Singh
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Sourabh632
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इंदौर के हुकमचंद मिल की जमीन पर प्रस्तावित हाउसिंग प्रोजेक्ट के कारण पुराने और घने वृक्षों की कटाई का रास्ता साफ हो गया है। इस परियोजना के पहले चरण में लगभग 2500 पेड़ों को हटाया जाएगा, जिनमें सबसे अधिक संख्या बबूल प्रजाति के पेड़ों की है। इसके बदले हाउसिंग बोर्ड ने 10 गुना अधिक पौधे लगाने की जिम्मेदारी वन विभाग को सौंपी है।

शहर की हरियाली के बजाय गांव में लगा रहे पेड़

हाउसिंग बोर्ड ने इस पौधरोपण के लिए वन विभाग पर अपनी जिम्मेदारी थोप दी है। वन विभाग के अनुसार यह पौधारोपण बड़ियाकीमा गांव के इलाके में किया जा रहा है। काटे जाने वाले पेड़ों की तुलना में दस गुना यानि करीब 25000 पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए हाउसिंग बोर्ड ने वन विभाग को 15 लाख रुपये की राशि भी प्रदान की है।

सबसे ज्यादा बबूल के पेड़

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रोजेक्ट क्षेत्र में कई प्रकार के पेड़ मौजूद हैं, लेकिन बबूल का अनुपात सबसे अधिक है। हाउसिंग बोर्ड द्वारा दिए गए निर्देशों और राशि के अनुसार सभी पौधे नियमानुसार लगाए जाएंगे और उनका संरक्षण भी सुनिश्चित किया जाएगा।

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संतुलन बनाने की कोशिश

इस निर्णय का उद्देश्य हरियाली के नुकसान की भरपाई करना और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना है। हालांकि स्थानीय स्तर पर वृक्ष कटाई को लेकर चिंता भी जताई जा रही है, लेकिन प्रशासन का मानना है कि दस गुना पौधारोपण से प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखा जा सकेगा।

पर्यावरणविदों ने जताई नाराजगी

हाऊसिंग बोर्ड के इस निर्णय से शहर के पर्यावरणविदों में खासी नाराजगी है। उनका कहना है कि हरियाली की जरूरत असल में शहर को है। शहर के बाहर तो वैसे भी काफी खाली जगह है और वहां पर हरियाली भरपूर है। ऐसे में शहर से पेड़ काटकर उसे सीमेंट का जंगल बना दिया जाएगा और हरियाली के लिए शहर के बाहर पेड़ लगा दिए जाएंगे। इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।

सीएम को लिख चुके हैं पत्र 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को इंदौर के पर्यावरण प्रेमियों ने एक पत्र जारी किया था। इसमें हुकुमचंद मिल परिसर में वर्षों से विकसित हुए प्राकृतिक शहरी वन (Urban Forest) को संरक्षित करने की मांग की थी। नागरिकों ने पत्र में आग्रह किया था कि बिना वैज्ञानिक परीक्षण और पर्यावरणीय मूल्यांकन के इस क्षेत्र में कोई भी निर्माण या विकास कार्य न किया जाए।

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हुकुमचंद मिल की जमीन बनी प्राकृतिक फेफड़ा

पत्र में नागरिकों ने मुख्यमंत्री द्वारा पूर्व हुकुमचंद मिल की भूमि के अधिग्रहण और उससे मिले फंड से वर्षों से लंबित कर्मचारियों की देनदारियों के भुगतान के फैसले की सराहना की थी। उन्होंने लिखा था कि यह निर्णय मानवीय, संवेदनशील और दूरदर्शी रहा। अब जबकि यह भूमि वर्षों से खाली रही, तो यहां स्वतः एक हरित क्षेत्र विकसित हो चुका है, जो अब इंदौर जैसे औद्योगिक शहर का प्राकृतिक फेफड़ा बन चुका है।

पर्यावरणीय महत्व की ओर ध्यान दिलाया

नागरिकों ने पत्र में कहा था कि यह शहरी जंगल इंदौर के तापमान को संतुलित रखने, हवा की गुणवत्ता सुधारने, जैव विविधता को संजोने और नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसे में यदि इसे बिना वैज्ञानिक परीक्षण के हटाया गया, तो इसका सीधा असर इंदौर की पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर होगा।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला

पत्र में टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपद बनाम भारत संघ (W.P. (C) No. 202/1995) और एमसी मेहता बनाम भारत संघ (AIR 2004 SC 4016) जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि "वनों और हरित क्षेत्रों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और यह जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) से जुड़ा हुआ है।" साथ ही नागरिकों ने संविधान के अनुच्छेद 48A और 51A(g), और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 का उल्लेख करते हुए आग्रह किया कि Environmental Impact Assessment (EIA) के बिना किसी भी गतिविधि को आगे न बढ़ाया जाए।

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