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इंदौर एमवायएच के चूहा कांड जिसमें चूहों द्वारा एनआईसीयू में कुतरने से दो नवजातों की मौत हो गई थी, इसे लेकर जयस का सात दिन का जन आक्रोश आंदोलन आखिरकार स्थगित हो गया है। इसे अभी हाईकोर्ट की अगली सुनवाई 6 अक्टूबर तक स्थगित किया गया है।
इस आंदोलन ने तब महाआंदोलन का रूप ले लिया था, जब रविवार को हजारों कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए और अर्धनग्न होकर एमवाय से कलेक्टोरेट तक रैली निकाली। इसके पहले यह सात दिन-रात तक एमवाय परिसर में धरने पर रहे और बिस्तर डालकर वहीं सोए। लेकिन इस आंदोलन को स्थगित करने में और आदिवासियों की बात सुनकर उन्हें शांत करने में पुलिस कमिशनरी की कार्यशैली फिर ठंडी रही और आखिरकार कलेक्टरी और जिला प्रशासन ही अहम भूमिका में रहा।
पुलिस और प्रशासन दोनों के अलग रुख
पूरे मामले में शुरू से ही इसे लेकर पुलिस के उच्च स्तर से लेकर स्थानीय स्तर के अधिकारियों ने कानून और व्यवस्था के हिसाब से कोई रुचि नहीं ली। पुलिस कमिशनरी में मजिस्ट्रियल पावर होने के बाद भी पुलिस की ओर से कोई आंदोलनकारियों से बात करने और समझाने के लिए मैदान में नहीं उतरा।
इस पर कलेक्टर शिवम वर्मा ने इस मामले में अपने क्षेत्रीय अधिकारियों एसडीएम जूनी इंदौर प्रदीप सोनी और उनकी टीम को पूरे मामले की मॉनीटरिंग करने और आदिवासियों की बात सुनने का जिम्मा सौंपा। इसके बाद सात दिन तक लगातार प्रशासनिक अधिकारी मौके पर जाते रहे और उनसे बात करते रहे, जिसके चलते किसी तरह का विवाद नहीं हुआ और आदिवासियों की हर बात सुनकर उनकी समस्याएं दूर की जाती रही जिससे विवाद नहीं हुआ और मामला शांति और सौहार्द से निपटा।
महाआंदोलन के दिन फिर काटी कन्नी
महाआंदोलन की घोषणा हो चुकी थी कि 28 सितंबर रविवार को रैली निकलेगी। इसके लिए फिर एक बार नजर पुलिस की ओर गई लेकिन अधिकारियों ने इस मामले में पड़ने से दूरी बनाना उचित समझा और कन्नी काट ली। इसके चलते एक बार फिर कलेक्टर के पास बात गई और उन्होंने मामला संवेदनशील होते हुए प्रशासनिक टीम को हिदायत दी कि कोई विवाद नहीं हो और शांति से बात सुनकर आंदोलन को खत्म कराया जाए।
इसके चलते रात तक एडीएम रोशन राय और एसडीएम प्रदीप सोनी कलेक्टोरेट में जमे रहे। सभी को समझाया, उनकी बात सुनी, जिसके बाद आंदोलन स्थगित हुआ। उधर फिर एमवाय में जाकर व्यवस्थाएं दुरुस्त की गई। हद तो यह रही कि देर रात होने पर पुलिस वाले पीड़ित परिजनों, जिनके नवजात की मौत हुई थी, उन्हें देवास जिले जाने के लिए भी तैयार नहीं थे, फिर प्रशासन की टीम ने गाड़ी की व्यवस्था की और उन्हें छुड़वाया गया।
पुलिस कमिशनरी में अब मजिस्ट्रियल पावर उन्हीं के पास
उल्लेखनीय है कि इंदौर शहर में पुलिस कमिशनरी लागू होने के बाद किसी तरह के आंदोलन, धरना, प्रदर्शन की मंजूरी अब पुलिस अधिकारियों द्वारा दी जाती है। उनके पास मजिस्ट्रियल पावर आ गए हैं और उन्हें ही इस तरह के मामले डील करने हैं। हाईकोर्ट भी पुलिस से पूछ चुका है कि इस मामले में एफआईआर क्यों नहीं हुई। लेकिन इसमें जिला प्रशासन को बीच में आना पड़ा और मामले को शांति से निपटाया।
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